सीएम नीतीश कुमार के बारे में धारणा है कि वह अपनी पार्टी छोड़कर भागने वालों को माफ़ नहीं करते हैं बल्कि ऐसे लोगों को राजनीतिक रूप से ‘साफ़’ करने की नीति में विश्वास रखते हैं। कृष्ण की आत्मकथा और चाणक्य के अर्थशास्त्र को ‘सिरहाने’ लेकर सोने वाले नीतीश कुमार का मानना रहा है कि ‘भगोड़ों’ पर फिर से विश्वास करना घातक होता है।
इसी धारणा को केन्द्र में रखते हुए सियासी गलियारों में गंभीर चर्चा है कि जिन लोगों ने अपने सुनहरे राजनीतिक भविष्य की तलाश में नीतीश कुमार का साथ छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया है, वे रतजगा बिता रहे हैं। क्योंकि अब उन्हें इस बात का डर सता रहा है कि ‘दगाबाज़ी’ को नहीं भूलने वाले सीएम नीतीश कुमार उन्हें क्षमा नहीं करने वाले हैं। यही नहीं नीतीश कुमार किसी भी क़ीमत पर उन्हें लोकसभा का उम्मीदवार नहीं बनने देंगे। ख़ौफ़ की ‘बीमारी’ से जूझ रहे इन नेताओं में कम से कम आधा दर्जन भगवा पार्टी के वर्तमान सांसद भी हैं।
उपेन्द्र को लगाया था ठिकाने
याद रहे कि महागठबंधन में रहते हुए शरद यादव को निपटाने के बाद सीएम नीतीश कुमार ने राजग में पुनर्वापसी के बाद बहुत ही सलीके से उपेन्द्र प्रसाद कुशवाहा को ठिकाने लगाया था। बीजेपी के एक बड़े नेता ने बताया, ‘हमलोग कुशवाहा को 3 सीट देने के लिए राज़ी थे लेकिन नीतीश कुमार ने साफ़ चेतावनी दी कि आप लोगों को मेरे और कुशवाहा में से किसी एक को चुनना होगा। हमलोगों के पास कोई विकल्प नहीं था और अब परिणाम सामने है।'
एक ज़माने में कुशवाहा, नीतीश के विश्वासपात्र हुआ करते थे। 2010 में चुनाव हारने के बाद नीतीश ने कुशवाहा को राज्यसभा में भी भेजा था। कुशवाहा को चमकाने के लिए नीतीश को बहुत कुछ करना पड़ा।
सीएम की सलाह पर ही रालोसपा अध्यक्ष कुशवाहा ने अपने नाम में कुशवाहा टाइटल जोड़ा ताकि वह अपनी जमात के नेता बन सकें। लेकिन कालान्तर में नीतीश कुमार को भला-बुरा कह कर कुशवाहा उनके दुश्मन नम्बर वन बन गए और फिर बीजेपी में जा मिले।
छेदी पासवान को है डर
सासाराम रिजर्व सीट से बीजेपी सांसद छेदी पासवान को भी इस बात का डर सता रहा है कि उनकी गर्दन पर इस बार रेती चलेगी। इस बारे में कई बार लोकल अख़बारों तक में छप चुका है कि छेदी पासवान को चुनाव मैदान से ‘साफ़’ करने की रणनीति बन रही है।कर्पूरी ठाकुर के सानिध्य में 1980 में लोकदल से राजनीति की शुरुआत करने वाले, पटना विश्वविद्यालय में स्पोर्टस चैम्पियन रहे छेदी पासवान चार बार विधायक रह चुके हैं। छेदी पासवान सासाराम से तीसरी बार एमपी भी हैं। 1989 तथा 1991 में जनता दल के टिकट पर जीते छेदी पासवान कई दलों की गणेश परिक्रमा करने के बाद अंततः बीजपी के चुनाव चिन्ह पर 2014 में लोकसभा का चुनाव जीते थे।
कहते हैं कि नीतीश कुमार को इस बात का मलाल है कि राजनीतिक हाशिए पर चले गए पासवान को उन्होंने ज़िंदा किया। पासवान कभी सामने से तो कभी पीछे से उनके ख़िलाफ़ शब्द बाण छोड़ते हुए उस वक़्त के उनके दुश्मन नम्बर वन बीजेपी के ख़ेमे में चले गए थे।
पार्टी के अंदर बहुत विरोध के बाद भी नीतीश कुमार ने 2004 के लोकसभा चुनाव में राम विलास पासवान के ख़िलाफ़ छेदी पासवान को हाजीपुर से टिकट दिया था और हारने के बाद भी मोहनिया सीट से विधायक बनाकर सरकार में मंत्री बनाया था।
नीतीश ने कर दिया माफ़
औरंगाबाद से बीजेपी सांसद सुशील कुमार सिंह के बारे में भी चर्चा है कि वह नीतीश कुमार की फ़ायरिंग रेंज में हैं। नीतीश कुमार ने सुशील कुमार सिंह की राजनीतिक बेहतरी के लिए भी कई बार लीक से हटकर निर्णय लिए हैं। सिंह के पिता स्वर्गीय राम नरेश सिंह भी सांसद थे, उनके इंतकाल के बाद नीतीश कुमार ने सुशील को पुत्र की तरह स्नेह दिया था। 2014 में जनता दल (यू) से सुशील का टिकट भी फ़ाइनल था, केवल घोषणा करनी बाक़ी थी। लेकिन चुनाव से कुछ दिन ही पहले ही सुशील ने नीतीश कुमार के भरोसे को तोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया।वैसे, सुशील कुमार सिंह के नज़दीकी अब दावा करते हैं कि सीट और कैंडिडेट दोनों जनता दल (यू) में शिफ्ट हो जाएँगे। बात हो गई है और नीतीश कुमार ने माफ़ भी कर दिया है।
कोई ठीक नहीं है!
राबड़ी देवी सरकार में मंत्री रहे बीजेपी नेता सम्राट चौधरी के बारे में भी चर्चा है कि उनपर सीएम नीतीश कुमार की वक्र दृष्टि तभी से है जब वह जनता दल (यू) को छोड़कर जीतन राम माँझी के साथ चले गए थे और हाथ में कमल का फूल लेकर घूमने लगे थे।दाढ़ी रखने के शौकीन सम्राट चौधरी बीजेपी के टिकट पर खगड़िया लोकसभा से चुनाव लड़ने की तैयारी ज़ोर-शोर से कर रहे हैं। हालाँकि पिछले चुनाव में इस सीट पर लोजपा जीती थी। लोजपा ने इस सीट पर अपना दावा नहीं छोड़ा है, लेकिन आज के बदले राजनीतिक माहौल में रामविलास पासवान को नीतीश कुमार का साथ मिल गया है। चौधरी को भी इस बात का आभास हो गया है कि नीतीश कुमार से राजनीतिक बैर लेना भारी पड़ सकता है। लगता है तभी चुनाव लड़ने के सवाल पर चौधरी अपने समर्थकों को जवाब देते हैं कि ‘कोई ठीक नहीं है।’
नीतीश मिश्रा का डोल रहा भरोसा
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ.जगन्नाथ मिश्रा के पुत्र नीतीश मिश्रा पिछले तीन साल से मधुबनी लोकसभा सीट से तैयारी कर रहे हैं। उन्हें पक्का विश्वास है कि बीजेपी नेतृत्व उनको इस सीट पर मौक़ा देगा। दूसरी ओर सिटिंग एमपी हुकुम नारायण यादव ने राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा कर दी है। लेकिन राजग में नीतीश कुमार की एंट्री के बाद से ही मिश्रा का विश्वास डोल रहा है और वह बस भगवान भरोसे ही बैठे हुए हैं।नीतीश कुमार ने नीतीश मिश्रा को अपनी पहली सरकार में मंत्री बनाया था। आप एक आरोपित भ्रष्ट नेता के पुत्र को मंत्री बना रहे हैं इस सवाल के जवाब में सीएम ने हंसते हुए कहा था, ‘नीतीश मिश्रा पिता के स्वभाव के बिल्कुल विपरीत हैं, कर्मठ हैं, लंदन से पढ़ाई की है और राजनीति में लम्बी रेस का घोड़ा साबित होंगे।'
अरे यह क्या नीतीश कुमार जब जीतन राम माँझी और बीजेपी से राजनीतिक वजूद की लड़ाई लड़ रहे थे तो ‘लम्बी रेस का घोड़ा’ अपने नेता को मझधार में ही छोड़कर फुर्र हो गया। बहरहाल, अपवाद केवल जल संसाधन मंत्री राजीव रंजन प्रसाद सिंह उर्फ ललन सिंह हैं, जिन्हें सीएम ने साफ़ नहीं बल्कि माफ़ कर दिया है।
राजग से जुड़े कई बड़े नेताओं का कहना है कि ये राजनीतिक डेवलपमेन्ट हम लोगों के संज्ञान में आया है। और हम लोग तो यहाँ तक जानते हैं कि नीतीश कुमार की फ़ायरिंग रेंज में केन्द्रीय राज्यमंत्री गिरिराज सिंह भी हैं। इन राजग नेताओं का कहना है कि हम लोग नीतीश कुमार से निवेदन कर रहे हैं कि सबको माफ़ कर दें क्योंकि इस बार का चुनाव जीतना बहुत ज़रूरी है।