पूर्व आईएएस अधिकारी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नज़दीकी राम चंद्र प्रसाद सिंह को रविवार को जनता दल यूनाइटेड (जदयू) का अध्यक्ष चुन लिया गया। समझा जाता है कि नीतीश कुमार ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से उनके नाम की पैरवी की थी। नीतीश कुमार का पार्टी में बढ़ता हुआ प्रभाव ऐसे समय दिख रहा है जब उनके नेतृत्व में लड़े गए विधानसभा चुनाव में जदयू का प्रदर्शन बेहद बुरा रहा।
बीजेपी का दबाव
यह कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार पर सहयोगी भारतीय जनता पार्टी का बहुत अधिक दबाव है। उन्होंने ख़ुद यह पद छोड़ अपने नज़दीकी को अध्यक्ष बनवा कर बीजेपी को यह संकेत देने की कोशिश की है कि जदयू पर उसका अधिक दबाव अब नहीं चलेगा।
राम चंद्र प्रसाद सिंह जदयू का सारा कामकाज देखेंगे और वे ही बीजेपी से समन्वय भी बनाएंगे।
आरसीपी सिंह उत्तर प्रदेश के काडर में थे। जब नीतीश कुमार अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में रेल मंत्री बने थे, सिंह उनके निजी सहयोगी बने थे। उस समय से वे लगातार उनके साथ काम करते रहे हैं। नीतीश कुमार जब 2005 में मुख्यमंत्री बने, आरसीपी सिंह प्रधान सचिव बनाए गए थे।
जदयू-बीजेपी समन्वय
आरसीपी सिंह 2010 में राज्यसभा सदस्य चुने गए, साल 2017 में जदयू के एनडीए में वापस लौटने के बाद वे राजधानी दिल्ली में जदयू-बीजेपी समन्वय का काम देखने लगे। बीते साल हुए लोकसभा चुनाव में भी जदयू-बीजेपी साझेदारी में उनकी अहम भूमिका थी।
आरसीपी सिंह जदयू के अध्यक्ष ऐसे समय चुने गए हैं, जब खबरों के मुताबिक बीजेपी ने नीतीश कुमार पर यह दबाव बढ़ाना शुरू कर दिया है कि वे गृह मंत्रालय अपने पास न रखें।
अरुणाचल का मामला
इसके पहले अरुणाचल प्रदेश के सात में से छह जदयू विधायकों ने पार्टी छोड़ दी और बीजेपी में शामिल हो गए थे।
बता दें कि अरुणाचल में हुए 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में जेडीयू को 7 सीटें मिली थीं, जबकि बीजेपी को 41 सीटें। 60 सीटों वाली राज्य की विधानसभा में बीजेपी का बहुमत पहले भी था। पर अब उसके विधायकों की संख्या 48 हो गयी है, जबकि जेडीयू के पास सिर्फ़ एक विधायक बचा है। राज्य में कांग्रेस और नेशनल पीपल्स पार्टी के चार-चार विधायक हैं।
बीजेपी के तेवर
बिहार बीजेपी के बढ़ते दबाव को इससे समझा जा सकता है कि उसने सरकार बनते ही अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए। उसने सबसे पहले नीतीश के सबसे नज़दीकी और शुरू से ही उनके उप- मुख्यमंत्री रहे सुशील मोदी को दिल्ली भेज दिया। इसके अलावा उसने संघ की पृष्ठभूमि वाले दो लोगों को उप-मुख्यमंत्री बना दिया, जेडीयू के कोटे से मंत्री मेवालाल चौधरी का नाम भ्रष्टाचार के एक पुराने मामले में उछलने पर इस्तीफ़ा लेने पर नीतीश को मजबूर कर दिया।
समझा जाता है कि नीतीश कुमार पर बीजेपी के बढ़ते दबाव और कसते शिंकजे से बचने के लिए यह फ़ैसला किया गया है।