आख़िर जिस एलान का इंतजार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बेसब्री से कर रहे थे, वह हो ही गया। एलान यह है कि हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के प्रमुख जीतन राम मांझी गुरूवार को एनडीए में शामिल होंगे। मांझी ने 20 अगस्त को महागठबंधन से नाता तोड़ लिया था और तभी से उनके एनडीए में शामिल होने की अटकलें लगाई जा रही थीं।
मांझी बिहार के बड़े दलित चेहरे हैं और उनके जाने से एनडीए में खटपट हो सकती है क्योंकि चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) मांझी के एनडीए में आने की ख़बरों के बाद से ही नाख़ुश दिख रही है।
ज़रूरी हैं नीतीश कुमार
2020 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मांझी के एनडीए में आने का क्या असर होगा, इस पर बात करने से पहले थोड़ा पीछे चलते हैं। 2015 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने एलजेपी, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था लेकिन बिना नीतीश के साथ के यह गठबंधन फ़ेल हो गया था और मोदी-शाह के पूरा जोर लगाने के बाद भी एनडीए औंधे मुंह गिर गया था और उसे सिर्फ 58 सीटें मिली थीं।
हालांकि बिहार बीजेपी में कई नेताओं की राज्य के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने की इच्छा है लेकिन हाईकमान इस बात को जानता है कि नीतीश के बिना बिहार की सत्ता मिलना लगभग असंभव है।
इसलिए ही पार्टी अध्यक्ष रहते हुए भी अमित शाह कई बार इस बात को साफ कर चुके थे कि बिहार में अगला चुनाव नीतीश कुमार के ही नेतृत्व में लड़ा जाएगा। क्योंकि 2015 के विधानसभा चुनाव के नतीजों से बीजेपी समझ गयी थी कि बिहार में वह नीतीश के बिना कोई बड़ा कमाल नहीं कर सकती।
2015 में उसे 53 सीटें मिलीं थीं जबकि नीतीश ने महागठबंधन के साथ लड़कर 71 सीटें अपनी झोली में डाली थीं। जबकि वह अगर एनडीए के साथ मिलकर लड़ते तो निश्चित रूप से ज़्यादा सीटें जीतते क्योंकि वह उसके साथ 8 साल तक सरकार चला चुके थे और डेढ़-दो साल पहले ही महागठबंधन में आए थे।
2017 में जब नीतीश एनडीए में वापस लौटे तो इसका असर साफ दिखाई दिया। 2019 के लोकसभा चुनावों में एनडीए ने 40 में से 39 सीटें जीती।
पासवान की नकेल कसने की कोशिश
पिछले काफी समय से एलजेपी मुखिया और सांसद चिराग पासवान के हमलों से परेशान नीतीश कुमार को मांझी के आने से कुछ राहत ज़रूर मिलेगी। क्योंकि मांझी को नीतीश ने ही मुख्यमंत्री बनाया था और वो ही उन्हें एनडीए में वापस लाए हैं। राजनीति के जानकारों का मानना है कि नीतीश कुमार को मांझी के एनडीए में आने से चिराग पासवान की ओर से आए दिन दी जा रही बंदर घुड़की से निजात मिलेगी। ऐसे में अगर एलजेपी एनडीए का साथ छोड़ती भी है तो भी नीतीश की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
मांझी की वापसी को नीतीश का मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है।
चिराग पासवान को दिक्कत यह है कि मांझी के आने से बिहार एनडीए में दो दलित नेता हो जाएंगे और उनकी सियासी पूछ कम हो जाएगी। बहरहाल, मांझी की वापसी को नीतीश का मास्टर स्ट्रोक तो माना ही जा रहा है।
एलजेपी का राज्य में कोई ठोस जनाधार नहीं है। 2015 में उसने एनडीए के साथ मिलकर 42 सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन वह सिर्फ़ दो सीटों पर जीत हासिल कर सकी थी। उसके बाद भी वह इस बार कम से कम 42 सीटों पर अपना दावा बरक़रार रखना चाहती है।
कभी-कभी एलजेपी के नेता सभी सीटों पर या सौ से ज़्यादा सीटों पर लड़ने का दावा भी करते हैं, लेकिन वे भी जानते हैं कि एनडीए से बाहर जाकर उनकी वही सियासी हैसियत होगी, जो आज उपेन्द्र कुशवाहा की है।
लोकसभा चुनाव 2019 में सीटों के बंटवारे से नाखुश होकर राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा ने एनडीए का साथ छोड़ दिया था। इसके साथ ही कुशवाहा की केंद्रीय मंत्री की कुर्सी भी चली गई थी और आज हालात यह हैं कि महागठबंधन में भी सीटों को लेकर बहुत ज़्यादा मोल-भाव करने की उनकी सियासी हैसियत नहीं है।
चिराग पासवान उसी रणनीति पर काम कर रहे हैं, जिस पर उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले काम किया था। तब अपने बयानों के ज़रिए दबाव बनाकर ही एलजेपी ने लोकसभा की 6 सीटों के साथ ही रामविलास पासवान के लिए राज्यसभा की सीट भी हासिल कर ली थी।
सियासी रसूख हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा का भी बहुत ज़्यादा नहीं है और पिछली बार मिली 21 सीटों में से वह सिर्फ 1 सीट जीत सकी थी। इस सीट पर मांझी खुद ही जीते थे और एक सीट से वह चुनाव हार गए थे।
9 सीटें मिल सकती हैं
कहा जा रहा है कि मांझी को 9 सीटें देने की बात तय हुई है। मांझी इस बात को जानते थे कि नीतीश के बिना उनका सियासी बेड़ापार होना संभव नहीं दिखता, इसलिए उन्होंने फिर से अपने सियासी आका का हाथ पकड़ लिया और राजनीति में सफल होने के लिए इसी तरह की समझदारी की ज़रूरत होती है। लेकिन देखना होगा कि ये 9 सीटें जेडीयू अपने कोटे से देती है या कुछ सीटें एलजेपी से देने के लिए उस पर दबाव बनाती है, इसका एलान भी जल्द ही हो जाएगा क्योंकि बिहार में 29 नवंबर से पहले नई विधानसभा का गठन हो जाना है।