अररिया गैंगरेप: पीड़िता को रिहा करने के लिए 376 वकीलों ने हाईकोर्ट को लिखा ख़त

12:28 pm Jul 16, 2020 | नीरज सहाय - सत्य हिन्दी

बिहार के अररिया ज़िले में एक युवती के साथ छह जुलाई को गैंगरेप होता है। इसके बाद जब वह 10 जुलाई को मजिस्ट्रेट के सामने अपनी मददगारों के समक्ष 164 के बयान पढ़े जाने की माँग करती है तो ज़िला न्यायालय पीड़िता और उसकी दो मददगारों को कोर्ट की अवमानना के मामले में जेल भेज देता है। न्यायिक संवेदनहीनता का यह मामला तूल पकड़ता है और इसकी गूंज राष्ट्रीय स्तर तक जाती है। इस मामले में इंदिरा जय सिंह, प्रशांत भूषण, वृंदा ग्रोवर, रेबेका जॉन, मुकुल तलवार समेत देश भर के 376 जाने-माने वकीलों ने पटना उच्च न्यायालय से बुधवार को अनुरोध किया है कि पीड़िता और उसके दो सहयोगियों को तत्काल रिहा किया जाए। 

अब ख़बर है कि पटना हाई कोर्ट ने आख़िरकार इस मामले में सुनवाई करने का फ़ैसला किया है। अदालत ने इससे पहले अररिया सत्र न्यायाधीश से घटना पर रिपोर्ट माँगी थी।

यही नहीं, एक ओर जहाँ यह मामला सत्तारूढ़ गठबंधन के दावे पर संशय खड़ा कर रहा है तो दूसरी ओर विपक्ष को हमलावर होने का एक मौक़ा दे रहा है। बुधवार को बिहार प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल ने सत्तापक्ष पर तंज कसते हुए कहा, 'कोर्ट की अवमानना के आरोप में यहाँ गैंगरेप पीड़िता को ही जेल भेज दिया गया है। इससे बीजेपी के साथ मिलने पर बिहार में चल रहे कुशासन का एक और नमूना सबके सामने आया है। हम माँग करते हैं कि ऊपरी कोर्ट इसपर संज्ञान ले और न्याय करे।'

उधर जन जागरण शक्ति संगठन के सदस्य आशीष रंजन बताते हैं कि, 'हमलोगों ने पीड़िता समेत दो सामाजिक कार्यकर्ताओं की जमानत के लिये आवेदन दे दिया है, लेकिन सात दिनों तक कोर्ट बंद है।'

इन जटिल स्थितियों के बीच जो सामूहिक आवेदन देश भर के 376 वकीलों ने पटना उच्च न्यायालय को दिये हैं उसमें कहा गया है कि, 'पीड़िता और उसकी दो मददगारों को रिहा किया जाए। इस घटना को बहुत संवेदनशील होकर देखना चाहिये। बयान दर्ज होने वाले दिन पीड़िता मानसिक रूप से बहुत तनाव में थी। वह भूखी थी...।'  ख़त में आगे कहा गया है-

घटना से उपजे मानसिक अवसाद के कारण वह ठीक से सो भी नहीं पा रही थी। इस मनःस्थिति के बीच उसे बार-बार पुलिस और अन्य लोगों को उस घटना के बारे में जानकारी देनी पड़ रही थी। इसलिये उसके कथित दुर्व्यवहार को संवेदना के साथ देखने की ज़रूरत है।


376 वकीलों के ख़त में बयान

पत्र में इस बात का भी उल्लेख किया गया है, 'पीड़िता की इस नाजुक मानसिक स्थिति को समझने के बजाये जेल भेज दिया गया और 10 जुलाई को कोर्ट में हुई घटना को बढ़ा-चढ़ाकर तीन घंटे के अंदर मीडिया में दुष्कर्म की शिकार पीड़िता का नाम-पता सब सार्वजनिक कर दिया गया। यहाँ तक कि कोर्ट की ओर से दर्ज प्राथमिकी में न्यायालय की अवमानना से जुड़ी अमान्य धारा 188, 228 और 353 लगायी गयी और पीड़िता समेत उसकी दो मददगारों को अररिया शहर से लगभग 250 किलोमीटर दूर जेल भेज दिया गया।'

सामूहिक आवेदन में अदालत को यह भी बताया गया है, 'इन्हें जेल भेजना ज़्यादती बरतने के जैसा है और पीड़िता की मनःस्थिति को संवेदनशीलता के साथ नहीं देखा गया है।'