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बिहारः ‘छोटे सरकार’ की रिहाई क्या नीतीश सरकार के लिए शर्म की बात है?

बिहारः ‘छोटे सरकार’ की रिहाई क्या नीतीश सरकार के लिए शर्म की बात है?

बिहार में पूर्व विधायक अनंत सिंह उर्फ छोटे सरकार की रिहाई पर तमाम सवाल उठ रहे हैं। यह शख्स कभी आरजेडी रहता है, कभी जेडीयू में। मूल रूप से इसे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नजदीकी माना जाता है। बिहार में राजनीति का एक चेहरा अनंत सिंह भी हैं। जानिए पूरी राजनीतिः  

मोकामा के बाहुबली पूर्व विधायक अनंत सिंह को पटना हाई कोर्ट द्वारा एके-47 और इंसास राइफल रखने के मामले में बरी कर दिया जाना बिहार सरकार के लिए शर्म की बात मानी जा सकती है। हाई कोर्ट के आदेश के बाद अनंत सिंह को पटना के बेऊर जल से रिहा कर दिया गया। अनंत सिंह को छोटे सरकार भी कहा जाता है और फिलहाल बिहार सरकार उन पर मेहरबान नजर आती है। 

दिलचस्प बात यह है की जेल से रिहा होने के बाद अनंत सिंह ने आईपीएस अधिकारी लिपि सिंह को दोषी ठहरा दिया जिनके आदेश पर उनकी गिरफ्तारी हुई थी। लिपि सिंह कभी नीतीश कुमार के करीबी रहे पूर्व जदयू नेता आरसीपी सिंह की बेटी हैं।

पटना हाई कोर्ट ने अनंत सिंह के मामले में साफ तौर पर सबूत के अभाव को आधार बनाकर उन्हें बरी करने का फैसला सुनाया है। बिहार सरकार के पास अब लाज रखने के लिए एक ही काम बचा है और वह यह है कि वह तुरंत इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर करे और मजबूत ढंग से सबूत पेश करे। 

अनंत सिंह एक जमाने में नीतीश कुमार के करीबी बाहुबली नेता माने जाते थे लेकिन बाद में वह राजद में शामिल हो गए थे। अवैध तरीके से हथियार रखने के मामले में सजा होने के बाद जब अनंत सिंह अयोग्य घोषित किए गए तो उनकी पत्नी नीलम देवी ने राजद के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की थी। लेकिन विश्वास मत के दौरान नीलम देवी ने जदयू का हाथ थाम लिया और एक बार फिर अनंत सिंह व सरकार की नज़दीकी सामने आ गयी।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आजकल शांत रहते हैं और इस मामले में उनका कोई बयान सामने नहीं आया है लेकिन उनके करीबी माने जाने वाले मंत्री और जदयू नेता अशोक चौधरी ने कहा है कि सरकार ने अनंत सिंह को दोषमुक्त नहीं किया है और यह न्यायालय का मामला है। अशोक चौधरी ने यह नहीं बताया कि अगर न्यायालय ने उन्हें दोषमुक्त करार दिया है तो क्या सरकार उनके खिलाफ अपील करने के लिए सुप्रीम कोर्ट जाएगी। सवाल तो यह भी है कि जब सरकार ने ही उन्हें दोषी घोषित किया था तो सरकार उन्हें दोष मुक्त कैसे करार दे सकती थी?

अगर अनंत सिंह के घर हथियार मिलने की एफआईआर सही थी तो उसी के अनुसार हाई कोर्ट में सबूत भी पेश किए जाने थे। अगर पटना हाई कोर्ट के फैसले के अनुसार अनंत सिंह के घर से हथियार मिलने का कोई सबूत नहीं है तो यह सवाल है कि पुलिस ने एफआईआर कैसे की और हथियारों की बरामदगी कैसे दिखाई?

इस मामले में पुलिस और सरकार का बयान अभी सामने नहीं आया है और यह साफ नहीं है कि सरकार इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करेगी या नहीं। फिलहाल पुलिस और सरकार को अगर अपनी इज्जत का ख्याल है तो उसे तुरंत सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर करनी चाहिए।

अब इस बात की चर्चा करना जरूरी है कि आखिर अनंत सिंह आईपीएस अधिकारी लिपि सिंह को क्यों दोषी करार दे रहे हैं। अनंत सिंह ने तो आईपीएस लिपि सिंह के खिलाफ सीबीआई की जांच की मांग तक कर दी। इस बयान से अनंत सिंह ने लिपि सिंह के बहाने परोक्ष रूप से उनके पिता आसीरपी सिंह पर भी हमला किया है।

इस मामले का राजनीतिक पहलू भी बहुत महत्वपूर्ण है। ऐसा आरोप लगाया जाता है कि जब अनंत सिंह ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का साथ छोड़कर आरजेडी का दामन थामा था तो अनंत सिंह को सबक सिखाने के लिए ऐसी एफआईआर की गई थी। अब यह कहा जा रहा है कि क्योंकि अनंत सिंह ने एक बार फिर पलटी मार ली है और अब वह और उनकी विधायक पत्नी जदयू के साथ हो गई हैं तो सरकार उन पर नरम पड़ रही है और यही कारण है कि सबूत न पेश किए जाने के आधार पर उन्हें हाई कोर्ट से बरी करने का फैसला सामने आया है। 

यह इस बात से भी समझा जा सकता है कि अनंत सिंह ने कहा है कि राजद के नेताओं ने उन्हें फंसाए जाने और उनकी गिरफ्तारी पर एक शब्द नहीं बोला। अनंत सिंह के अनुसार उन्होंने उसी समय फैसला कर लिया था कि राजद से बदला लेंगे। दिलचस्प बात यह है कि अनंत को फंसाने का आरोप उस आईपीएस अधिकारी पर है जिसके पिता जदयू के करीबी माने जाते थे लेकिन अनंत सिंह बदला आरजेडी से लेना चाहते हैं।

इस मामले में राजद और तेजस्वी यादव को भी क्लीन चिट नहीं दी जा सकती क्योंकि उन्होंने भी अनंत सिंह का इतिहास जानते हुए उन्हें अपनी ओर करने की कोशिश की और उनकी पत्नी को अपनी पार्टी का टिकट देकर विधायक बनवाया था। इसी राजनीति के कारण जदयू नेता अशोक चौधरी कह रहे हैं कि राजद को आपत्ति है तो वह न्यायालय में अपील करे। उन्हें भी पता है कि राजद ऐसा नहीं करने वाला है।

अनंत सिंह को लेकर राजनीति चाहे जितनी गंदी हो रही हो, यह सरकार और पुलिस के इकबाल का मामला है। अगर बिहार सरकार इस मामले में सुप्रीम कोर्ट नहीं जाती है तो यही माना जाएगा कि उसने पुलिस का इस्तेमाल एक फर्जी केस बनाने में किया और इस तरह वह किसी भी दूसरे व्यक्ति को फर्जी केस में फंसा सकती है। कुल मिलाकर यह पूरा मामला नीतीश कुमार की छवि पर बदनुमा दाग बनता जा रहा है।

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