फ़िरोज़ ख़ान को आख़िरकार बनारस हिंदू विश्वविद्यालय यानी बीएचयू के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान में संस्कृत के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर का पद छोड़ना पड़ा। साफ़-साफ़ कहें तो फ़िरोज़ ख़ान को इस्तीफ़ा देना पड़ा। इसकी घोषणा भी फ़िरोज़ ने नहीं, बल्कि बीएचयू प्रशासन ने की। वही बीएचयू प्रशासन जिसने फ़िरोज़ को नियुक्त किया था और कहा था कि उनकी नियुक्ति पूरी तरह नियमानुसार है और वह इस पद के लिए सबसे योग्य हैं। वह बीएचयू प्रशासन जिसके कुलपति ने ही उनकी नियुक्ति पर मुहर लगाई थी। और यह वही बीएचयू प्रशासन है जो पहले कह रहा था कि फ़िरोज़ की नियुक्ति का विरोध करने वाले ग़लत कर रहे हैं। कई छात्र फ़िरोज़ के मुसलिम होने के कारण संस्कृत प्रोफ़ेसर बनाए जाने का क़रीब एक महीने से विरोध कर रहे थे। और बीएचयू प्रशासन की इस घोषणा के बाद विरोध करने वाले छात्रों ने मिठाइयाँ बाँट कर खुशियाँ मनाईं। क्या इन छात्रों द्वारा मिठाइयाँ बाँटकर खुशियाँ मनाना विश्वविद्यालय प्रशासन के लिए कोई संदेश है
ख़ैर, यह संदेश क्या है यह तो बीएचयू प्रशासन को फ़िरोज़ के इस्तीफ़े की घोषणा से पहले भी समझ आ गया होगा! यह उस पत्र में भी ज़ाहिर होता है जिसमें यह आदेश निकाला गया। संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान यानी एसवीडीवी के कार्यवाहक डीन कौशलेंद्र पाण्डेय ने 10 दिसंबर को जारी पत्र में कहा है, 'यह सूचित किया जाता है कि फ़िरोज़ ख़ान, जिन्हें एसवीडीवी के साहित्य विभाग में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर नियुक्त किया गया था, ने 9 दिसंबर 2019 को इस्तीफ़ा दे दिया है। छात्रों से आग्रह है कि वे अपनी पढ़ाई और परीक्षा के लिए लौट जाएँ।' 'द इंडियन एक्सप्रेस' के अनुसार, बीएचयू के जन संपर्क अधिकारी राजेश सिंह ने कहा कि ख़ान ने कला संकाय में संस्कृत विभाग को ज्वाइन किया है। राजेश सिंह ने कहा, 'उन्हें आयुर्वेद और कला दोनों संकायों में पद की पेशकश की गई थी। उन्होंने कला संकाय को चुना। वह जल्द ही वहाँ पढ़ाना शुरू कर देंगे।' बता दें कि यह ख़बर ऐसे समय पर आई है जब प्रदर्शन करने वाले छात्रों ने सेमेस्टर एक्ज़ाम के बहिष्कार की घोषणा की थी।
इस मामले में अभी फ़िरोज़ ख़ान की प्रतिक्रिया नहीं आई है। कुछ छात्रों के लगातार विरोध के बाद फ़िरोज़ ख़ान बीएचयू कैंपस से चले गये थे। तब बताया गया था कि सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए वह अपने घर जयपुर के बगरू लौट गए हैं।
एसवीडीवी में संस्कृत के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर के रूप में फ़िरोज़ की नियुक्ति के बाद से संस्कृत में एक भी कक्षा नहीं ली जा सकी है। उनकी नियुक्ति के बाद 6 नवंबर को जब फ़िरोज़ पहली कक्षा लेने गए थे तो कुछ छात्रों ने उनके मुसलिम होने के कारण विरोध शुरू कर दिया था। उन्होंने वाइस चांसलर के आवास के बाहर प्रदर्शन किया था। इनके विरोध के बाद बीएचयू प्रशासन ने साफ़ कर दिया था कि फ़िरोज़ की नियुक्ति पूरी तरह नियमानुसार हुई है और वह इस पद के लिए पूरी तरह योग्य हैं।
केंद्रीय विश्वविद्यालय के नियमों व निर्देशों और भारतीय संविधान के ख़िलाफ़ इन छात्रों के प्रदर्शन के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
एक रिपोर्ट यह ज़रूर आई थी कि बीएचयू के वाइस चांसलर ने छात्रों से अपना विरोध-प्रदर्शन वापस लेने का आग्रह किया था। कई स्तर पर विरोध-प्रदर्शन करने वाले छात्रों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने की माँग भी उठी थी। सोशल मीडिया पर इन छात्रों के ख़िलाफ़ कार्रवाई किए जाने की माँग उठी थी, लेकिन इस मामले में कुछ भी नहीं किया गया। तब अभिनेता और बीजेपी के पूर्व सांसद परेश रावल ने भी फ़िरोज़ का समर्थन किया था। उन्होंने ट्वीट कर फ़िरोज़ की नियुक्ति का विरोध करने वालों की निंदा की थी। परेश रावल ने ट्वीट में लिखा था, 'मैं प्रोफ़ेसर फ़िरोज़ ख़ान की नियुक्ति पर विरोध से स्तब्ध हूँ। भाषा का धर्म से क्या लेनादेना है। यह तो विडंबना ही है कि प्रोफ़ेसर फ़िरोज़ ख़ान ने अपनी मास्टर और पीएचडी संस्कृत में की है। भगवान के लिए यह मूर्खता बंद की जानी चाहिए।’
इतना दबाव पड़ने के बावजूद प्रदर्शन करने वाले छात्रों के ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं हुई और वे लगातार विरोध-प्रदर्शन करते रहे। अब जब फ़िरोज़ के इस्तीफ़े की ख़बर आई तो उन्होंने मिठाइयाँ बाँटीं।
क्या कहा प्रदर्शन करने वाले छात्रों ने
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ की रिपोर्ट के अनुसार, एसवीडीवी में पीएचडी शोधार्थी और प्रदर्शन का नेतृत्व करने वाले शशिकांत मिश्रा ने कहा, 'हमें बताया गया है कि डॉ. ख़ान ने इस्तीफ़ा दे दिया है। हमने अपना प्रदर्शन वापस ले लिया है।' प्रदर्शन करने वाले दूसरे छात्र चक्रपाणि ओझा ने कहा, 'मैं डॉ. ख़ान को एसवीडीवी से इस्तीफ़ा देने के लिए धन्यवाद देता हूँ। हम उन्हें बधाई देते हैं और उम्मीद करते हैं कि वह जीवन में सफलता पाएँ। यह व्यक्तिगत लड़ाई नहीं थी।’
प्रदर्शन का नेतृत्व चार छात्र कर रहे थे। इसमें शशिकांत मिश्रा, कृष्णा कुमार, शुभम तिवारी और चक्रपाणि ओझा शामिल थे। प्रदर्शन के किसी राजनीतिक नेतृत्व से जुड़े होने के आरोपों को मिश्रा ने सिरे से खारिज कर दिया। 'द इंडियन एक्सप्रेस' के अनुसार, मिश्रा ने दावा किया कि वह पहले कभी आरएसएस के सदस्य रहे थे। रिपोर्ट के अनुसार ओझा एबीवीपी के सदस्य रहे थे और तिवारी एबीवीपी और केंद्रीय ब्राह्मण महासभा के सदस्य रहे थे।
एकबारगी तो यह मामला पूरी तरह से सुलझ गया लगता है, लेकिन जिस तरह यह इस मुकाम तक पहुँचा है वह कई सवाल छोड़ता है। सवाल यह है कि क्या बीएचयू प्रशासन कुछ छात्रों के सामने झुक गया और इसलिए फ़िरोज़ ख़ान को इस्तीफ़ा देना पड़ा जिस फ़िरोज़ ख़ान की नियुक्ति को बीएचयू प्रशासन ने नियमानुसार और बिल्कुल सही बताया था उसे संकाय क्यों बदलना पड़ा और प्रदर्शन करने वाले छात्र किस ख़ुशी में मिठाइयाँ बाँट रहे हैं