अयोध्या मामले में मुसलिम पक्षकारों के वकील रहे राजीव धवन ने दावा किया है कि उन्हें अब इस केस से हटा दिया गया है। उन्होंने कहा कि उनके अस्वस्थ होने का कारण बताकर उन्हें केस से अलग किया गया है। इसके साथ ही धवन ने इस दावे को खारिज कर दिया कि वह अस्वस्थ हैं। हालाँकि इसके साथ ही उन्होंने यह भी साफ़ कर दिया कि इस केस से हटाए जाने के बाद वह अब अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ दायर पुनर्विचार याचिका में शामिल नहीं हैं। इस मामले में जमीअत उलेमा-ए-हिंद ने सोमवार को ही इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की है। जमीअत से अलग मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड भी 9 दिसंबर से पहले ही पुनर्विचार याचिका दाखिल करने वाला है। मीडिया रिपोर्टों में मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से कहा जा रहा है कि राजीव धवन उनके वकील रहेंगे। हालाँकि धवन ने मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वकील होने पर सफ़ाई नहीं दी है। सुन्नी वक़्फ बोर्ड ने पुनर्विचार याचिका दाखिल करने से इनकार कर दिया है।
लेकिन राजीव धवन मामले में विवाद जमीअत उलेमा-ए-हिंद के मामले में हुआ है। फ़ेसबुक पर राजीव धवन ने लिखा, 'जमीयत का प्रतिनिधित्व कर रहे एओआर (रिकॉर्ड में अधिवक्ता) एजाज़ मक़बूल द्वारा बाबरी मामले से मुझे बर्खास्त कर दिया गया। मैंने एक औपचारिक पत्र भेजा है जिसमें बर्खास्तगी को बिना आपत्ति के स्वीकार कर लिया है। अब पुनर्विचार या इस मामले में शामिल नहीं हूँ। मुझे सूचित किया गया है कि श्री मदनी ने संकेत दिया है कि मुझे मामले से हटा दिया गया था क्योंकि मैं अस्वस्थ था। यह पूरी तरह बकवास है। उन्हें अपने वकील एओआर एजाज़ मक़बूल को मुझे बर्खास्त करने का निर्देश देने का अधिकार है, जो उन्होंने निर्देशों के आधार पर किया। लेकिन इसका जो कारण बताया गया वह दुर्भावनापूर्ण है और सही नहीं है।’
हालाँकि, वकील एजाज़ मक़बूल ने कहा कि धवन का नाम सोमवार को दायर समीक्षा याचिका में नहीं दिया गया क्योंकि वह उपलब्ध नहीं थे। उन्होंने मीडिया के सामने सफ़ाई दी कि ‘यह कहना ग़लत है कि श्री राजीव धवन को उनकी बीमारी के कारण केस (अयोध्या मामले में जमीअत उलेमा-ए-हिंद की पुनर्विचार याचिका) से हटा दिया गया है। मुद्दा यह है कि मेरे मुवक्किल (जमीअत उलेमा-ए-हिंद) कल ही समीक्षा याचिका दायर करना चाहते थे। इसे श्री राजीव धवन द्वारा दायर किया जाना था। मैं उनका नाम याचिका में नहीं दे सका क्योंकि वह उपलब्ध नहीं थे। यह एक बड़ा मुद्दा नहीं है।’
मूल पक्षकार एम. सिद्दीक के क़ानूनी वारिस और जमीअत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना सैयद अशद रशीदी ने यह याचिक दायर की है। हालाँकि सुन्नी सेंट्रल वक़्फ बोर्ड और जमीअत उलेमा-ए-हिंद (जेयूएच) के मौलाना महमूद मदनी गुट ने पुनर्विचार याचिका नहीं दायर करने का फ़ैसला लिया है। ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा है कि यह 9 दिसंबर से पहले पुनर्विचार याचिका दायर करेगा। यह मानता है कि कोर्ट के फ़ैसले से उन्हें न्याय नहीं मिला है।
इधर 'एनडीटीवी' की रिपोर्ट के अनुसार, मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य कमल फारूक़ी ने कहा है, 'यह जमीअत की बहुत बड़ी ग़लती है। राजीव धवन से हम माफ़ी माँगते हैं। वह हमारे वकील रहेंगे और हम इसके लिए उन्हें राज़ी करेंगे। उन्होंने एक रुपया भी फीस नहीं ली है। हम उनके प्रति आभारी हैं।'
बता दें कि नौ नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने एक बेहद अहम फ़ैसले में अयोध्या की विवादित ज़मीन राम लला विराजमान को देने का निर्णय सुनाया है। इसके साथ ही मुसलमानों को मसजिद बनाने के लिए 5 एकड़ ज़मीन अलग से दी जाएगी। इस फ़ैसले के बाद सुन्नी वक़्फ बोर्ड ने फ़ैसले से नाख़ुशी ज़ाहिर ज़रूर की थी लेकिन पुनर्विचार याचिका दाखिल करने से इनकार कर दिया था। हालाँकि, मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड शुरू से ही पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की बात कहता रहा है।
पुनर्विचार याचिका दाखिल नहीं करने के सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के फ़ैसले पर ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य ज़फरयाब जिलानी ने तल्ख बयान दिया था। उनका कहना था कि मुसलिम समुदाय आज भी पर्सनल लॉ बोर्ड के साथ है और रिव्यू पिटिशन के फ़ैसले को मंज़ूर करता है। जिलानी ने कहा था कि सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के साथ मुसलिम समुदाय कितना जुड़ा है यह सभी जानते हैं।
सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आने के बाद ही पुनर्विचार याचिका दाखिल करने को लेकर मुसलिम पक्षों में दो राय रही है। एक पक्ष इसकी वकालत करता है तो दूसरा इसका विरोध। हालाँकि, अब तय हो गया है कि इस मामले में पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई होगी ही क्योंकि जमीअत उलेमा-ए-हिंद ने याचिका दायर कर दी है और मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड दायर करने वाली है। लेकिन अब सवाल है कि धवन बोर्ड के वकील होंगे या नहीं।