असम में पूरी तरीक़े से शांति है और 12 दिसंबर के बाद से कोई हिंसा नहीं हुई है। यह दावा किया है असम के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक जीपी सिंह ने। नागरिकता क़ानून बनने के बाद 11 और 12 दिसंबर को हिंसा भड़की थी। उसके बाद जीपी सिंह को एनआईए से ट्रांसफ़र कर असम बुलाया गया था। सिंह का दावा है कि शांतिपूर्ण प्रदर्शन की इजाज़त है और अभी भी पूरे प्रदेश में विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं। लेकिन अगर प्रदर्शन हिंसक हुआ तो उन्हें क़ानून के ग़ुस्से का सामना करना पड़ेगा।
‘सत्य हिंदी.कॉम’ से ख़ास बातचीत में जीपी सिंह ने कहा कि ‘मौजूदा प्रशासन की सबसे बड़ी चुनौती है कि उल्फा और एनडीएफ़पी जैसे संगठन दुबारा सिर न उठा पाएँ या फिर आपस में कोई साझा काम न करें। असम ने एनडीएफ़पी और उल्फा के उग्रवाद को झेला है और इस तरह की जानकारी मिली है कि ऊपरी असम के तिनसुकिया और डिब्रूगढ़ में उल्फा एक बार फिर सक्रिय है। मौजूदा विरोध-प्रदर्शन के संदर्भ में इसको नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। हमारी पूरी कोशिश है कि ये दोनों संगठन अपना सिर न उठा पाएँ।’
फ़िलहाल विरोध-प्रदर्शनों के दौरान हुई हिंसक वारदातों और उनके पीछे के षड्यंत्रों की पड़ताल की जा रही है। असम में हुई हिंसा के दौरान 60 पुलिसवाले और 75 नागरिकों को चोटें आई हैं। 75 में से 28 नागरिकों को रबर बुलेट और बंदूक़ की गोलियों से चोटें लगी हैं, जबकि चार जानें गई हैं। पूरे मामले में हिंसा की इन वारदातों के पीछे के षड्यंत्रकारियों की पड़ताल एनआईए कर रही है। इसके साथ-साथ असम सीआईडी और गुवाहाटी शहर की क्राइम ब्रांच की पुलिस भी साज़िशों का पर्दाफ़ाश करने की कोशिश कर रही है।
गुवाहाटी हाई कोर्ट के निर्देश के बाद से पिछले शुक्रवार से असम में इंटरनेट और ब्रॉडबैंड बहाल कर दिए गए हैं। हालाँकि सोशल मीडिया चैट और ऑनलाइन एक्टिविटी पर पुलिस कड़ी निगरानी बरत रही है और ऐसे लोगों की पहचान की जा रही है जो हिंसक वारदातों को भड़काने की कोशिश की जा रही है। अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक सिंह के मुताबिक़ सोशल मीडिया में 179 केसों की पड़ताल की जा रही है और रविवार से अब तक 6 लोगों को गिरफ़्तार किया जा चुका है।
सिंह ने ‘सत्य हिंदी’ को बताया, ‘हमने यह तय किया है कि सोशल मीडिया पर भड़काऊ पोस्ट लिखने वालों के ख़िलाफ़ फ़िलहाल हम ज़्यादा कड़े क़दम नहीं उठाएँगे। अधिकतर मामलों में ऐसी पोस्ट लिखने वालों के पारिवारिक सदस्यों, उनके दोस्तों और स्थानीय लोगों को बुलाते हैं और उनकी उपस्थिति में उनको समझाने-बुझाने का प्रयास करते हैं। ज़्यादातर मामलों में पोस्ट लिखने वाले ख़ुद ही अपनी पोस्ट वापस कर लेते हैं। फिर भी हमने 26 मामले दर्ज किए हैं। छह लोगों को गिरफ़्तार किया गया है और पूरे हालात पर कड़ी नज़र रखी जा रही है।’
जीपी सिंह का कहना है, ‘जो कुछ भी आप लिखें सोच-समझकर लिखें और सावधानी से लिखें और किसी भी पोस्ट को फ़ॉरवर्ड करने से पहले पूरी तरह जाँच पड़ताल कर लें। आइए हम सब माहौल को सामान्य बनाए रखने में मदद करें।’
उनके मुताबिक़ शांति इसलिए भी ज़रूरी है कि इन दिनों ढेरों पर्यटक आते हैं और इससे राज्य को कोई नुक़सान न हो।
एनआईए में नियुक्ति से पहले असम-मेघालय कैडर से सीनियर आईपीएस ऑफ़िसर सिंह पंजाब में भी काम कर चुके हैं जहाँ पर उन्होंने इसलामिक स्टेट और भगवा आतंकवाद के मामलों को डील किया है।
सिंह ने ‘सत्य हिंदी’ को बताया कि इंटरनेट, सोशल मीडिया और चैट प्लेटफ़ॉर्म का बेजा इस्तेमाल होता है। चूँकि यह नई तकनीक है और दुनिया भर में फैली हुई है इसलिए सरकार और ग़ैर-सरकारी लोग सीमा पार से बेजा हरक़तों को अंजाम देते हैं और सुरक्षा के लिए एक बड़ी चुनौती पेश करते हैं। उन्होंने यह बात लंबे समय तक इंटरनेट बंद करने के संदर्भ में पूछे गए सवाल के जवाब में कही। जब उनसे पूछा गया कि जामिया मिल्लिया इसलामिया, उत्तर प्रदेश जैसे जगहों पर प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने बर्बर रवैया अख़्तियार किया और कर्नाटक में रामचंद्र गुहा जैसे विश्व प्रसिद्ध इतिहासकार को हिरासत में लिया, इसको किस आधार पर सही ठहराया जा सकता है। इस पर सिंह का जवाब था कि दीर्घकाल में पुलिस की साख इस बात से तय होती है कि उसने कितनी निष्पक्षता के साथ काम किया। अगर आप निष्पक्ष बने रहे तो लोग ज़्यादा आलोचना नहीं करते हैं।