दरांग ज़िले के सिपाझार इलाक़े में गुरुवार को अतिक्रमण हटाओ अभियान के दौरान जो कुछ हुआ, वह असम पुलिस के चरित्र पर तो सवाल ख़ड़े करता ही है, यह सवाल भी उठाता है कि आखिर विरोध प्रदर्शन कर रही उग्र भीड़ को नियंत्रित करने के लिए तय प्रोटोकॉल का पालन पुलिस ने क्यों नहीं किया?
क्या पुलिस कर्मी किसी तरह के पूर्वाग्रह से ग्रस्त थे और प्रदर्शनकारियों के साथ ज़्यादती इसलिए की गई कि वे एक समुदाय विशेष के थे? क्या पुलिस की कमान संभाल रहे व्यक्ति के राजनीतिक संपर्क होने की वजह से सारे पुलिस कर्मी पूरी तरह निश्चिन्त थे?
सबसे अहम सवाल तो यह है कि क्या सरकार के 'अतिक्रमण हटाओ अभियान' के पीछे राजनीतिक ध्रुवीकरण बढ़ाने की रणनीति है और असम बीजेपी की एक और प्रयोगशाला बन रहा है?
क्या हुआ था?
गुरुवार को हुई पुलिस कार्रवाई का वीडियो देखने से इनमें से कई सवालों के जवाब मिल जाते हैं।वीडियो में यह देखा जा सकता है कि एक प्रदर्शनकारी हाथ में एक डंडा लिए आगे बढ़ता है, लगभग 20 पुलिस वाले उसे दौड़ाते हैं, चारों ओर से घेर कर लाठियों की बौछार कर देते हैं, वह जमीन पर गिरता है और उसके बाद उसे लाठियों से बुरी तरह मारा जाता है।
कौन है यह कैमरामैन?
उसके बाद पुलिस प्रशासन की ओर से तैनात एक फोटोग्राफर तेजी से दौड़ता हुआ आता है और ऊपर उछल कर ज़मीन पर पड़े हुए प्रदर्शनकारी के ऊपर गिरता है और फिर लातों से तब तक मारता है, जब तक उसे ऐसा करने से रोक नहीं लिया जाता है।
सोशल मीडिया पर वायरल तसवीरों में उस प्रदर्शनकारी की छाती पर गोलियों के निशान दिखते हैं, समझा जाता है कि वह मर गया, हालांकि असम पुलिस ने इसकी पुष्टि नहीं की है।
कैमरामैन गिरफ़्तार
पुलिस ने उस कैमरामैन को गिरफ़्तार कर लिया है।
असम के पुलिस महानिदेशक भास्कर ज्योति महंता ने ट्वीट कर कहा है कि कैमरामैन बिजय बोनिया को गिरफ़्तार कर लिया गया है।
बिजय बोनिया सिपाझार के ही धोलपुर गाँव का रहने वाला है।
सोशल मीडिया उससे जुड़े ट्वीटों और तसवीरों से भरा पड़ा है, जिनमें वह पुलिस वालों के साथ और ज़िला प्रशासन की ऑफ़िशियल गाड़ी के साथ दिखता है।
पुलिस प्रोटोकॉल?
सवाल यह उठता है कि यदि यह मान लिया जाए कि भीड़ उग्र हो गई थी और उनमें से एक आदमी के हाथ में डंडा था तो पुलिस ने भीड़ को नियंत्रित करने के लिए हवा में गोलियाँ क्यों नहीं चलाई? पुलिस को गोली चलानी ही पड़ी तो प्रदर्शनकारियों के पैरों को निशाना बनाने के बजाय उनकी छाती को निशाना क्यों बनाया गया?
क्या यह महज संयोग है कि जिस दरांग पुलिस ने यह ज़्यादती की, उसके सुपरिटेंडेंट सुशांत बिस्व सरमा मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा के सगे भाई हैं?
पहले दिन सीएम ने क्या कहा था?
हिमंत बिस्व सरमा ने पुलिस कार्रवाई के पहले दिन ट्वीट कर कहा था कि उन्हें खुशी है कि पुलिस अपना काम कर रही है। इतना बड़ा कांड होने के बाद मुख्यमंत्री ने ट्वीट कर कहा कि पुलिस वाले अपनी ड्यूटी निभा रहे थे।तबादले की माँग
असम काग्रेस के रिपुन बोरा ने मांग की है कि एसपी सुशांत बिस्व सरमा का तबादला किया जाना चाहिए ताकि निष्पक्ष जाँच की जा सके।दरांग के मुसलमान!
बता दें कि दरांग ज़िले में बांग्लाभाषी मुसलमान बड़ी तादाद में रहते हैं। ये वे लोग हैं जो बहुत पहले ही मौजूदा बांग्लादेश से रोजी- रोटी की तलाश में यहाँ आए और यहीं के होकर रह गए।
साल 2011 की जनगणना के समय, दरांग ज़िले की आबादी 928,500 थी, जिसमें से 64.34 प्रतिशत मुसलमान थे। यहाँ हिन्दू आबादी सिर्फ 35.25 प्रतिशत है।
बीजेपी दरांग के पूरी मुसलिम आबादी को ही बांग्लादेशी मानती है और उन्हें वहाँ से निकालने की माँग कई बार कर चुकी है।
असम बीजेपी की रणनीति
असम की मौजूदा बीजेपी सरकार का कहना है कि बांग्लादेश से आए अवैध घुसपैठियों ने दरांग के बड़े हिस्से पर ग़ैरक़ानूनी क़ब्ज़ा कर लिया है और उनके क़ब्जे से वह ज़मीन लेना ज़रूरी है।
असम बीजेपी ने 2016 और 2021 में विधानसभा चुनावों के समय कहा था कि बांग्लादेश से आए घुसपैठिए मुसलमानों ने हिन्दुओं के मंदिरों व मठों और उनकी ज़मीन पर क़ब्जा कर लिया। बीजेपी सरकार वह ज़मीन छुड़ाएगी और भूमिहीन हिन्दुओं में बाँट देगी।
अतिक्रमण हटाओ अभियान
इस साल जून में असम सरकार ने अतिक्रमण हटाओ अभियान चला कर होजाई ज़िले के लंका शहर में 70 और शोणितपुर ज़िले के जामुगुड़ीहाट शहर में 25 परिवारों को बाहर निकाल दिया।
राज्य सरकार ने सिपाझार में 'गारुखूटी परियोजना' का एलान कर रखा है। इसके तहत ज़मीन छुड़ा कर मूल निवासियों नें बाँटी जाएगी और उन्हें उस पर खेती और वृक्षारोपण करने को कहा जाएगा।
गुरुवार को क्या हुआ?
इसके तहत सरकार ने 20 सितंबर को 800 परिवारों को उनके घर व ज़मीन से बेदखल कर दिया। सरकार का कहना है कि पुलिस ने इन लोगों के पास से 4,500 बीघा ज़मीन छुड़ा ली है।
पुलिस ने पहले 20 सितंबर को धोलपुर 1 गाँव और धोलपुर 2 गाँव में अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाया।
पुलिस ने बुधवार की रात को बाकी लोगों को नोटिस दिया और गुरुवार की सुबह जेसीबी लेकर वहाँ पहुँच गई। गाँव वाले सिर्फ थोड़ा समय मांग रहे थे ताकि वे अपना सामान घरों से निकाल सकें।
लेकिन पुलिस ने बगैर चेतावनी और समय दिए हुए ही जेसीबी लगा दिया और घर तोड़े जाने लगे। स्थानीय लोगों ने इसका विरोध किया और प्रदर्शन यहीं से शुरू हुआ।
ब्रह्मा कमेटी
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एच. एस. ब्रह्मा ने 2017 में एक रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपी थी, जिसमें कहा गया था कि असम के 33 में से 15 ज़िलों पर बांग्लादेश से आए लोगों का क़ब्ज़ा है।
ब्रह्मा कमेटी ने यह भी कहा था कि असम की 18 जात्राओं यानी वैश्वणव संप्रदाय के लोगों के मठ और उससे जुड़े सांस्कृतिक केंद्रों को बांग्लादेशी घुसपैठियों से ख़तरा है।
नॉर्थ ईस्ट पॉलिसी इंस्टीच्यूट ने 2012 में कहा था कि 26 जात्राओं की 5,548 बीघा ज़मीन पर घुसपैठियों का अवैध क़ब्ज़ा है।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि असम की बीजेपी सरकार इसे राजनीतिक मुद्दा बनाना चाहती है और इस आधार पर वह ध्रुवीकरण करना चाहती है। उसकी योजना है कि बीजेपी यहाँ बांग्लादेशी घुसपैठियों के नाम पर मुसलमानों को निशाने पर लेकर पूरे राज्य के हिन्दुओं को संकेत देना चाहती है कि वह पार्टी हिन्दू हितों और राज्य के मूल निवासियों के प्रति हमदर्द है।
असम बीजेपी असम को पूर्वांचल की अपनी प्रयोगशाला बनाना चाहती है।