अशोक विश्वविद्यालय में सब्यसाची दास के एक शोध से उठा तूफान थमता नहीं दिख रहा है। पहले तो शोध पर विवाद के बाद अर्थशास्त्र विभाग के प्रोफेसर सब्यसाची दास ने इस्तीफ़ा दे दिया था, लेकिन बाद में उनके समर्थन में अर्थशास्त्र विभाग के एक अन्य प्रोफ़ेसर ने भी इस्तीफा दे दिया। इस बीच संकाय सदस्यों ने विश्वविद्यालय प्रशासन को पत्र लिखकर शैक्षणिक स्वतंत्रता पर चिंता जताई। और अब राजनीति विज्ञान, समाजशास्त्र और मानव विज्ञान विभागों ने दास के साथ एकजुटता व्यक्त करते हुए बयान जारी किए हैं।
राजनीति विज्ञान विभाग ने एक बयान में कहा है, 'अशोक विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान विभाग सर्वसम्मति से प्रोफेसर सब्यसाची दास के साथ अपनी एकजुटता व्यक्त करता है। प्रोफेसर दास के काम से खुद को अलग करने के विश्वविद्यालय के रुख और उनके शोध की जांच करने के सरकारी परिषद के फैसले के बाद उन्होंने अर्थशास्त्र विभाग से इस्तीफा दिया।'
राजनीति विज्ञान विभाग की यह प्रतिक्रिया तब आई है जब अर्थशास्त्र विभाग ने बुधवार को एक खुले पत्र में कहा था कि दास के शोध की जांच करने की प्रक्रिया में अशोक विश्वविद्यालय के शासी निकाय के 'हस्तक्षेप' से संकाय के पलायन में तेजी आने की संभावना है।
विश्वविद्यालय के एक संकाय सदस्य रहे सब्यसाची दास द्वारा प्रकाशित एक शोध पत्र में 2019 के आम चुनाव में भाजपा द्वारा वोट में संभावित हेरफेर का संकेत दिया गया है। विवाद बढ़ता देख विश्वविद्यालय ने एक अगस्त को ही कह दिया था कि इसके संकाय, छात्रों या कर्मचारियों द्वारा उनकी 'व्यक्तिगत क्षमता' में सोशल मीडिया गतिविधि या सार्वजनिक सक्रियता विश्वविद्यालय के रुख को प्रतिबिंबित नहीं करती है।
'डेमोक्रेटिक बैकस्लाइडिंग इन द वर्ल्ड्स लार्जेस्ट डेमोक्रेसी' नाम के शोध पत्र में दास ने कहा है कि करीबी मुकाबले वाले निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा की असंगत जीत काफी हद तक चुनाव के समय पार्टी द्वारा शासित राज्यों में केंद्रित है। उन्होंने लिखा कि भाजपा ने उन निर्वाचन क्षेत्रों में असंगत रूप से अधिक जीत हासिल की, जहां वह सत्ताधारी पार्टी थी और जहां करीबी मुकाबला था। पेपर मुख्य रूप से चुनाव में हेरफेर की परिकल्पना के पक्ष में सबूतों की खोज करता है, यह भी तर्क देता है कि हेरफेर बूथ स्तर पर स्थानीय है। इसने कहा है कि इसका अर्थ यह है कि हेरफेर उन निर्वाचन क्षेत्रों में केंद्रित हो सकता है जहाँ बड़ी संख्या में पर्यवेक्षक हैं जो बीजेपी शासित राज्य के राज्य सिविल सेवा के अधिकारी हैं।
अशोक विश्वविद्यालय ने दास के काम से खुद को दूर कर लिया था और गवर्निंग काउंसिल ने उनके शोध की जांच करने का फ़ैसला किया था। इसी को लेकर अर्थशास्त्र विभाग ने खुला ख़त लिखा।
अर्थशास्त्र संकाय ने मांग की है कि दास को बिना शर्त उनका पद वापस दिया जाए और पुष्टि की जाए कि शासी निकाय संकाय अनुसंधान के मूल्यांकन में कोई भूमिका नहीं निभाएगा। इसने कहा है कि यदि ऐसा किया जाता है तो यह शैक्षणिक गतिविधियों में 'हस्तक्षेप' होगा।
बहरहाल, राजनीति विज्ञान विभाग ने ख़त में कहा है, 'हम उन कारणों के बारे में अधिक पारदर्शिता की मांग करते हैं जिनके कारण प्रोफेसर दास को अपना इस्तीफा देना पड़ा और विश्वविद्यालय द्वारा इसे जल्दबाजी में स्वीकार कर लिया गया, खासकर ऐसे समय में जब सभी विभागों के छात्र और शिक्षक डॉ. दास के समर्थन में लामबंद हो गए हैं। अब इस पैटर्न से हम भी बहुत परिचित हो चुके हैं। हमारा मानना है कि डॉ. दास ने अकादमिक अभ्यास के किसी भी स्वीकृत मानदंड का उल्लंघन नहीं किया है। हम शासी निकाय के कार्यों की कड़ी निंदा करते हैं... शासी निकाय के कार्यों ने छात्रों को संकेत दिया है कि आलोचनात्मक जांच के गंभीर परिणाम हो सकते हैं और इस प्रकार हम कक्षा के भीतर और बाहर जो काम करते हैं वह कमजोर हो जाता है।'
अशोक विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र और मानवविज्ञान विभाग ने भी गुरुवार सुबह बयान जारी कर कहा, 'पिछले कुछ दिनों में हमें पता चला है कि प्रोफेसर दास को उनके शैक्षणिक कार्यों में असामान्य और परेशान करने वाले हस्तक्षेप का सामना करना पड़ा... हमें उम्मीद है कि शासी निकाय प्रोफेसर दास और संकाय से बिना शर्त माफी मांगेगा। हम उनसे अपेक्षा करते हैं कि वे अकादमिक स्वतंत्रता पर विश्वविद्यालय की नीति और उन आदर्शों के प्रति निष्ठा की पुष्टि करें जिन पर अशोक की स्थापना की गई थी।'
बता दें कि अशोक विश्वविद्यालय ने मंगलवार को एक औपचारिक बयान जारी कर पुष्टि की थी कि अर्थशास्त्र विभाग में सहायक प्रोफेसर सब्यसाची दास ने अपना इस्तीफा सौंप दिया है। दास के पद छोड़ने के बाद अर्थशास्त्र विभाग द्वारा भी इसी तरह का एक बयान जारी किया गया था, जिसके बाद उसी विभाग से प्रोफेसर पुलाप्रे बालकृष्ण ने भी इस्तीफा दे दिया था।