राम मंदिर के चक्रव्यूह में फँसे पीएम मोदी

12:52 pm Feb 07, 2019 | प्रदीप सिंह - सत्य हिन्दी

सुप्रीम कोर्ट ने आज अयोध्या में राम जन्म भूमि मामले की सुनवाई के लिए तीन सदस्यीय खंडपीठ का गठन करने और सुनवाई के लिए दस जनवरी की तारीख़ तय कर दी। यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए राहत की ख़बर है। पर यह राहत टिकाऊ होगी या क्षणजीवी, यह दस जनवरी को पता चलेगा।

दरअसल, राम मंदिर के मुद्दे पर संघ परिवार और प्रधानमंत्री की सोच में अंतर नज़र आ रहा है। प्रधानमंत्री अदालत के फ़ैसले से पहले किसी तरह का क़दम उठाने के पक्ष में नहीं हैं। वह जानते हैं कि चुनाव के समय इस मुद्दे पर फ़ैसला आने की संभावना कम है। यदि फ़ैसला आ भी गया तो उसका राजनीतिक फ़ायदा उठाने के लिए जो क़दम उठाने पड़ेंगे उनके लिए तो बिल्कुल ही समय नहीं है। चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद प्रधानमंत्री के हाथ बँध जाएँगे।

प्रधानमंत्री नहीं चाहते कि एक आधे-अधूरे मुद्दे को लेकर इतने अहम चुनाव में जाएँ। वे अपनी योजनाओं और उनके लाभार्थियों के बूते चुनाव में जाना चाहते हैं। ऐसा लगता है कि उन्हें राम मंदिर मुद्दे के चुनावी फ़ायदे पर भी भरोसा नहीं है। यही कारण है कि वे पिछले 5 साल में देश-विदेश के तमाम मंदिरों में गए लेकिन अयोध्या कभी नहीं गए।

संघ और बीजेपी कहते रहे हैं कि केंद्र और उत्तर प्रदेश में स्पष्ट बहुमत की सरकार बनने पर ही राम मंदिर मुद्दे का हल निकल सकता है। अब दोनों जगह सरकार बनने के बाद संघ और बीजेपी के पास कोई बहाना नहीं बचा है।

संघ परिवार की राय अलग

हाल में एक एजेंसी को दिए इंटरव्यू में राम मंदिर के विषय में पूछे गए सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि अदालत का आदेश आने के बाद वह अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करेंगे। इसके साथ ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके आनुषांगिक संगठनों की इस मुद्दे पर अध्यादेश लाने की माँग पर उन्होंने विराम लगा दिया। पर संघ परिवार इस बात से सहमत नज़र नहीं आता। उसे लग रहा है कि इस मुद्दे पर उसकी साख दाँव पर है।

अब क्या कहें संघ, बीजेपी

संघ का कहना है कि उसे इस मुद्दे पर आंदोलन शुरू किए तीन दशक से ज़्यादा का समय हो गया पर अभी तक इसका हल नहीं निकला। संघ और बीजेपी लोगों से कहते रहे हैं कि जब केंद्र और राज्य (उत्तर प्रदेश) में उनकी स्पष्ट बहुमत की सरकार होगी तभी इस मुद्दे का हल निकल पाएगा। देश के लोगों ने दोनों जगह बीजेपी की सरकार बनवा दी। अब संघ और बीजेपी के सामने कोई बहाना नहीं बचा है। 

इतना ही नहीं, बीजेपी चुनाव दर चुनाव अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनवाने का वादा अपने चुनाव घोषणा पत्र में करती रही है। प्रधानमंत्री को पता है कि उनके पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं है कि 5 साल उनकी सरकार ने इस मुद्दे पर क्या किया। अपनी सरकार के काम काज के बारे में उनके पास कहने के लिए बहुत कुछ है। विपक्ष भले ही उस पर सवाल उठाए लेकिन उनके पास जवाब देने के लिए काम और बातों की कमी नहीं है।

क्या रोजाना होगी सुनवाई?

सुप्रीम कोर्ट ने आज सुनवाई की पहली तारीख़ तय करके उन लोगों को चुप करा दिया है जो अदालत पर इस मामले के प्रति संवेदनहीनता का आरोप लगा रहे थे। मोदी और संघ के लिए परीक्षा की असली घड़ी 10 जनवरी को आएगी। 10 जनवरी को 3 जजों की बेंच को तय करना है कि वह आगे की सुनवाई कब से करगी। क्या अदालत इस मामले की रोजाना सुनवाई करेगी? उससे भी बड़ा सवाल यह है कि इस बात की कितनी संभावना है कि यदि सुनवाई पूरी भी हो जाती है तो फ़ैसला भी उसी समय आ जाएगा। 

साल 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव के ख़िलाफ़ आय से अधिक सम्पत्ति के मामले की सुनवाई पूरी कर ली लेकिन फ़ैसला नहीं दिया। अदालत ने कहा कि विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और इस फ़ैसले से चुनाव प्रभावित हो सकता है। यह दीगर बात है कि वह फ़ैसला आज तक सुरक्षित है।

सुनवाई टली तो बढ़ेगा संकट 

10 जनवरी को यदि रोजाना सुनवाई शुरू होती है तो संघ और मोदी की मुश्किलें थोड़ी कम हो जाएँगी। लेकिन सुनवाई लोकसभा चुनाव के बाद के लिए टाल दी गई तो सबसे बड़ा संकट प्रधानमंत्री के सामने होगा। उसके बाद संघ परिवार और संत समाज का इस मुद्दे पर अध्यादेश लाने का दबाव बढ़ जाएगा। तब मोदी सरकार के लिए अदालत के पीछे छिपना कठिन हो जाएगा। प्रधानमंत्री को इन बातों का अंदाजा है। इसीलिए वह नहीं चाहते कि लोकसभा चुनाव में राम मंदिर का मुद्दा मुख्य मुद्दा बने।

संभलकर चल रही कांग्रेस 

अदालत का रुख क्या होगा इसे लेकर कांग्रेस में भी आशंका है। शायद इसी को ध्यान में रखकर राहुल गाँधी ने कहा है कि लोकसभा चुनाव में राम जन्म भूमि मुद्दा नहीं होगा। कांग्रेस इस मुद्दे पर बीजेपी के जाल में नहीं फँसना चाहती। बीजेपी बार-बार कोशिश कर रही है कि कांग्रेस राम मंदिर के विरोध में खड़ी नजर आए। कांग्रेस पहले इस जाल में फँसती रही है। राहुल गाँधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस इस मामले में बहुत स्पष्ट है कि किस रास्ते पर उसे नहीं जाना है। राम मंदिर का मुददा ऐसा ही है। क्योंकि कांग्रेस को पता है कि वह समर्थन करे तब भी मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त करने का श्रेय या चुनावी लाभ उसे नहीं मिलेगा।