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बीजेपी को हराना, 'संविधान बचाना' उद्देश्य तो इंडिया ब्लॉक के खा़त्मे की बात क्यों?

बीजेपी को हराना, 'संविधान बचाना' उद्देश्य तो इंडिया ब्लॉक के खा़त्मे की बात क्यों?

इंडिया गठबंधन को आगे जारी रखने पर सवाल उठ रहे हैं। क्या इंडिया गठबंधन ने अपना मक़सद पूरा कर लिया है? क्या इसको ख़त्म करने का समय आ गया है?

इंडिया गठबंधन को भंग करने की चर्चा क्यों शुरू हो गई है? गठबंधन के सहयोगी और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने कहा है कि यह गठबंधन लोकसभा चुनाव तक ही था तो इसे ख़त्म कर देना चाहिए। तो सवाल है कि क्या इसका उद्देश्य लोकसभा चुनाव ही था या कुछ और मक़सद था? इंडिया गठबंधन की शुरुआत के समय या फिर शुरुआती दिनों में गठबंधन के सहयोगियों ने इसका क्या उद्देश्य बताया था? 

इस सवाल का जवाब पाने से पहले यह जान लें कि गठबंधन में हाल के दिनों में क्या चल रहा है और इसके नेताओं का इस मुद्दे पर क्या बयान आ रहे हैं। वैसे तो इंडिया गठबंधन को लेकर ताज़ा चर्चा तब शुरू हो गई जब दिल्ली चुनाव में कांग्रेस व आप के बीच बात नहीं बनी और इंडिया गठबंधन के सहयोगियों ने आप को समर्थन की घोषणा कर दी। इसी बीच जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का बयान आ गया। उन्होंने गुरुवार को इंडिया गठबंधन ख़त्म करने की बात कह दी।

उमर अब्दुल्ला ने कहा कि लोकसभा चुनाव के बाद इंडिया गठबंधन की कोई बैठक नहीं हुई है। उन्होंने कहा कि यह गठबंधन लोकसभा चुनाव तक ही था तो इसे खत्म कर देना चाहिए क्योंकि इसके पास न कोई एजेंडा है और न ही कोई नेतृत्व।

उमर के इस बयान के बाद अब इंडिया गठबंधन की घटक शिवसेना यूबीटी के नेता संजय राउत का शुक्रवार को बयान आया है। संजय राउत ने चेतावनी भरे लहजे में कहा है कि अगर ये गठबंधन एक बार टूट गया तो दोबारा नहीं बनेगा। संजय राउत ने कहा, 'मैं उमर अब्दुल्ला जी की बात से सहमत हूँ। लोकसभा चुनाव हम एक साथ लड़े और अच्छा रिजल्ट भी आया। उसके बाद हमारी सबकी ज़िम्मेदारी थी, ख़ासकर कांग्रेस की जो गठबंधन की बड़ी पार्टी है, कि इंडिया गठबंधन को जिंदा रखे और फिर एक बार सब साथ में बैठकर आगे की चर्चा करें।'

राउत ने आगे कहा कि तेजस्वी यादव, अखिलेश यादव, अरविंद केजरीवाल, उमर अब्दुल्ला, ममता बनर्जी सबका यह कहना है कि इंडिया गठबंधन का कोई वजूद नहीं रहा। उन्होंने कहा, 'लोगों के मन में अगर इस प्रकार की भावना आती है तो इसके लिए गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी ज़िम्मेदार है। कोई कम्युनिकेशन नहीं, डायलॉग नहीं, चर्चा नहीं है, इसका मतलब है कि इंडिया गठबंधन में सबकुछ ठीक है या नहीं, इसके बारे में लोगों के मन में शंका है।'

इंडिया गठबंधन के सहयोगियों के ऐसे बयान क्यों आ रहे हैं? क्या सच में इंडिया गठबंधन का मक़सद सिर्फ़ लोकसभा चुनाव साथ लड़ने का था?

दरअसल, विपक्षी दल तब एकजुट होने शुरू हुए थे जब उनको एहसास हुआ कि मोदी के नेतृत्व में बीजेपी को हराना मुश्किल है। इन दलों को यह भी लग रहा था कि बीजेपी हर क्षेत्रीय दल को ख़त्म करना चाहती है और इसी के तहत उनके नेताओं के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जा रही थी और उनको गिरफ़्तार भी किया जा रहा था। 

इसी बीच विपक्षी दलों के नेता बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजय रथ को रोकने के लिए एकजुट हुए। इसको भारतीय राष्ट्रीय विकासशील समावेशी गठबंधन यानी 'इंडिया' गठबंधन नाम दिया गया। इसमें कांग्रेस के अलावा आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी, टीएमसी, आरजेडी, जेडीयू, एनसीपी समेत कई पार्टियां शामिल थीं। इंडिया गठबंधन को बनाने में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सबसे बड़ी भूमिका रही। उन्होंने सभी क्षेत्रीय पार्टियों को इकट्ठा करने का जिम्मा उठाया और 2 जून 2023 को बिहार के पटना में इंडिया गठबंधन की नींव डाली। 

'इंडिया' का मुख्य एजेंडा क्या?

देश में मोदी सरकार के लगभग एक दशक में अर्थव्यवस्था में दिक्कतें, बेरोजगारी में वृद्धि, विपक्षी नेताओं पर हमले, देश के अल्पसंख्यकों, खासकर मुसलमानों के खिलाफ हिंदू राष्ट्रवादियों के हमले और असहमति और स्वतंत्र मीडिया के लिए सिकुड़ती जगह देखी गई है। 26 दलों के गठबंधन ने इन मुद्दों को लगातार उठाया है। गठबंधन लगातार कहता रहा है कि दांव पर भारत के बहुदलीय लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्ष नींव का भविष्य है। गठबंधन के घटक दलों के नेता लगातार कहते रहे हैं कि देश में 'लोकतंत्र को बहाल करने' के लिए संयुक्त मोर्चा बनाया गया है।

सरकार पर क्या आरोप लग रहे थे?

  • संविधान पर हमला हो रहा है।
  • आर्थिक मोर्चे पर विफलता है। 
  • कोई नई नौकरी नहीं पैदा हुई है। 
  • ध्रुवीकरण, नफ़रत और हिंसा बढ़ी है। 

इंडिया गठबंधन के दलों के ऐसे आरोपों को भाजपा ने गठबंधन को स्वार्थी, भ्रष्ट, वंशवादी दलों का समूह बताकर खारिज कर दिया। बीजेपी ने बार-बार कहा कि उन्हें देश के विकास या देश के किसी अन्य हित की चिंता नहीं है, बल्कि उन्हें एकजुट करने वाली एकमात्र चीज सत्ता की लालसा, भ्रष्टाचार और वंशवाद है। 

बहरहाल, इस बीच लोकसभा चुनाव हुए और इसमें इंडिया गठबंधन ने अच्छा प्रदर्शन किया। लोकसभा चुनाव के नतीजे बीजेपी की अपेक्षा के अनुरूप नहीं रहे। बीजेपी ने एनडीए के लिए 400 पार का नारा दिया था और उसका मानना था कि बीजेपी अकेले 350 से ज़्यादा सीटें लाएगी। हालाँकि ऐसा नहीं हुआ। इंडिया गठबंधन ने बीजेपी को बहुमत से नीचे ही रोक दिया। बीजेपी एनडीए के दम पर ही बहुमत का आँकड़ा छू सकी। जिस यूपी को बीजेपी हिंदुत्व की प्रयोगशाला के तौर पर इस्तेमाल करती रही वहाँ बीजेपी की हालत ख़राब हो गई। समाजवादी पार्टी से वह काफ़ी पीछे रह गई। महाराष्ट्र जैसे राज्यों में बीजेपी काफी पिछड़ गई। कई राज्यों में बीजेपी की स्थिति ठीक नहीं रही। ऐसा लगा मानो बीजेपी का क़िला दरक गया हो। 

हालाँकि, चुनाव के बाद के दिनों में इंडिया गठबंधन में ज़्यादा हलचल नहीं रही। थोड़ी हलचल तब शुरू हुई जब इस मामले में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का बयान आ गया। ममता ने हरियाणा-महाराष्ट्र और उपचुनावों में इंडिया ब्लॉक के खराब प्रदर्शन को लेकर 7 दिसंबर को नाराजगी जताई थी। उन्होंने कहा था, 'मैंने इंडिया गठबंधन बनाया। इसका नेतृत्व करने वाले इसे ठीक से नहीं चला सकते, तो मुझे मौका दें। मैं बंगाल से ही गठबंधन का नेतृत्व करने के लिए तैयार हूं।' इस पर शरद पवार, लालू यादव जैसे कई नेताओं ने ममता का समर्थन किया था। बाद में जब दिल्ली चुनाव की बारी आई तो आप और कांग्रेस के बीच सहमति नहीं बन पाई। अब इंडिया गठबंधन को आगे जारी रखने पर सवाल उठ रहे हैं। तो सवाल यही है कि क्या इंडिया गठबंधन ने सच में अपना मक़सद पूरा कर लिया है? कहीं ऐसा तो नहीं कि क्षेत्रीय दलों को लग रहा है कि कांग्रेस जैसी पार्टी चुनाव में उनको उतनी सीटें नहीं दे रही है और इसलिए उनका अपना एक गठबंधन होना चाहिए? कहीं कांग्रेस को ऐसा तो नहीं लग रहा है कि क्षेत्रीय दल उसको चुनावों में उतनी सीटें नहीं देंगी और इस वजह से पार्टी के कार्यकर्ता निराश होंगे? तो क्या गठबंधन के सभी सहयोगी दलों ने ही गठबंधन को ख़त्म करने की ठान ली है?

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