महाराष्ट्र में बीजेपी की जीत के जिस नुस्खे को दूसरे राज्यों में आजमाने की होड़ लगी है उसका आख़िर सच क्या है? बीजेपी या एनडीए की जीत की वजह क्या है? यदि जीत की वजहें गड़बड़ियों के रूप में सामने आईं तो क्या चुनाव आयोग कुछ कार्रवाई करेगा? वैसे, एनडीए की जीत के दो वर्जन हैं। एक बीजेपी का और दूसरा विपक्षी दलों का। बीजेपी जीत की सबसे बड़ी वजह लाडकी बहिन योजना को मानती है तो विपक्षी दल चुनाव से पहले चौंकाने वाले अंदाज़ में क़रीब 47 लाख वोटों के बढ़ जाने और ईवीएम में पड़े वोटों में कथित गड़बड़ियों को बड़ी वजह मानते हैं। तो सवाल है कि क्या इसी फॉर्मूले को आगे भी आजमाने की रणनीति है और यह जारी ही रहेगा?
इस सवाल का जवाब पिछले साल हुए महाराष्ट्र चुनाव, उसके नतीजों और बाद में चुनाव को लेकर आए डेटा और रिपोर्टों में मिलता है। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव पिछले साल नवंबर में हुए थे। एग्ज़िट पोल ने मिलाजुला नतीजा रहने की संभावना जताई थी। कुछ में महायुति की जीत की भवियष्यवानी की गई थी तो कुछ में त्रिशंकु विधानसभा की और एक में तो एमवीए की जीत की भविष्यवाणी की गई थी। लेकिन जब नतीजे आए तो उसमें महायुति ने क्लीनस्विप कर दिया। महायुति ने 235 सीटें जीत लीं और एमवीए सिर्फ़ 50 सीटों पर सिमट गया। चौंकाने वाले इन नतीजों ने ही विपक्षी दलों और चुनाव में दिलचस्पी रखने वालों को आँकड़ों की खोजबीन करने पर मजबूर किया।
चुनाव परिणाम आने के बाद जब चुनाव के आँकड़ों का विश्लेषण किया जाने लगा तो चौंकाने वाले अंदाज़ में वोट बढ़े हुए पाए गए। न सिर्फ़ ईवीएम में डाले गए वोट और गिने गए वोटों में अंतर आया, बल्कि यह भी पता चला कि चुनाव से कुछ महीने पहले ही लाखों नये वोटर मतदाता सूची में जोड़ दिए गए।
चुनाव नतीजों के कुछ दिनों बाद ही कांग्रेस ने मतदाताओं की संख्या को लेकर दावा किया था कि लोकसभा चुनाव 2024 के बाद पांच महीनों में महाराष्ट्र में कुल मतदाताओं की संख्या में 47 लाख की बढ़ोतरी हो गई, जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव से लेकर 2024 के लोकसभा चुनाव तक पांच साल में महाराष्ट्र में क़रीब 32 लाख मतदाताओं की ही बढ़ोतरी हुई।
कांग्रेस ने तब कहा था कि '19 अक्टूबर, 2024 को एमवीए गठबंधन दलों ने भारत के चुनाव आयोग को लिखा था कि भाजपा बड़े पैमाने पर मतदाता सूची में धोखाधड़ी कर रही है, जिसमें प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में एमवीए समर्थकों के 10,000 वोटों को हटाना शामिल है। यह भी बताया गया कि भाजपा अपने द्वारा काटे जा रहे 10,000 नामों को छिपाने के लिए 10,000 फर्जी मतदाताओं को जोड़ रही है।'
अब जो एक और आँकड़ा आया है, वह और भी चौंकाने वाला है। क्या ऐसा हो सकता है कि किसी राज्य में वयस्क यानी 18 साल से ज़्यादा उम्र के जितने लोग हैं उससे भी ज़्यादा मतदाता हो जाएँ?
कम से कम महाराष्ट्र चुनाव में तो ऐसा ही होने का दावा किया गया है। कांग्रेस पार्टी के प्रोफेशनल्स और डेटा एनालिटिक्स विंग के अध्यक्ष प्रवीण चक्रवर्ती ने द हिंदू में लिखे एक लेख में कहा है, 'ईसीआई ने 2024 के महाराष्ट्र राज्य चुनाव के लिए 9.7 करोड़ मतदाताओं को नामांकित किया। नरेंद्र मोदी सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट ने 2024 में महाराष्ट्र की पूरी वयस्क आबादी (18 वर्ष से अधिक) 9.54 करोड़ होने का अनुमान लगाया है। ईसीआई ने खुद स्वीकार किया है कि कुल वयस्क आबादी के आधिकारिक अनुमान से 16 लाख अधिक मतदाता पंजीकृत हैं।'
उन्होंने आगे कहा कि भले ही कोई यह माने कि सरकार का आँकड़ा केवल एक अनुमान है और यह अलग-अलग हो सकता है, फिर भी इसका मतलब है कि महाराष्ट्र के लगभग 100% या उससे अधिक वयस्क राज्य चुनाव के लिए मतदाता के रूप में पंजीकृत थे। उन्होंने कहा, 'यह बहुत ही अजीब है क्योंकि ईसीआई ने न तो छह महीने पहले हुए महाराष्ट्र लोकसभा चुनाव के लिए लगभग सभी वयस्कों को मतदाता के रूप में नामांकित किया था, न ही पहले कभी किसी अन्य बड़े राज्य में। फिर, महाराष्ट्र की पूरी अनुमानित वयस्क आबादी से अधिक लोगों को केवल राज्य चुनाव के लिए मतदाता के रूप में कैसे नामांकित किया गया?'
भाजपा के नेतृत्व वाले महायुति गठबंधन ने लोकसभा चुनाव की तुलना में विधानसभा चुनाव में 72 लाख ज़्यादा वोट हासिल किए। ऐसा कैसे हुआ? एक तर्क तो यह दिया जा सकता है कि दोनों चुनावों के बीच 24 लाख ऐसे मतदाता कांग्रेस गठबंधन से दूर हुए। लेकिन सवाल है कि जब इतने मतदाताओं को जोड़ भी दिया जाए तो भाजपा गठबंधन को बाक़ी के 48 लाख वोट कहाँ से मिले? ऐसा भी नहीं है कि भाजपा गठबंधन को अपने शेष वोट अन्य दलों और निर्दलीयों से मिले, क्योंकि इस समूह को भी राज्य बनाम लोकसभा चुनाव में अधिक वोट मिले थे। तो क्या माना जाए कि सभी क़रीब 47 लाख नये मतदाताओं ने बीजेपी गठबंधन को वोट दिया?
बता दें कि पहले एक ख़बर यह भी आई थी कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 में गिने गए वोटों और डाले गए वोटों के बीच काफी अंतर है। केंद्रीय चुनाव आयोग के अनुसार, अंतिम मतदान 66.05% था यानी कुल 64,088,195 वोट पड़े।
हालाँकि, गिने गए कुल वोटों का जोड़ 64,592,508 है, जो कुल पड़े वोटों से 504,313 अधिक है। हालाँकि आठ विधानसभा क्षेत्रों में गिने गए वोटों की संख्या डाले गए वोटों से कम थी, शेष 280 निर्वाचन क्षेत्रों में, गिने गए वोट डाले गए वोटों से अधिक थे।
लाडकी बहिन योजना का क्या असर?
महाराष्ट्र चुनाव में चौंकाने वाली जीत के बाद ही बीजेपी गठबंधन ने जो वजहें बताईं उनमें सबसे प्रमुख लाडकी बहिन योजना है। महाराष्ट्र की महायुति सरकार ने चुनाव से ऐन पहले महिलाओं के लिए हर महीने 1500 रुपये का नकद भुगतान देना शुरू किया था। इसके जवाब में एमवीए ने भी अपने चुनावी घोषणा पत्र में महिलाओं को 3000 रुपये प्रति माह की सहायता का वादा किया था। बहरहाल, जब महायुति की जीत हुई तो दावा किया जाने लगा कि अन्य कारणों के साथ ही लाडकी बहिन योजना का जीत में सबसे बड़ा योगदान है। लेकिन अब जो रिपोर्ट आ रही है उसने पूरी योजना पर ही सवाल खड़ा कर दिया है।
अब महायुति सरकार लाडकी बहिन योजना के अयोग्य लाभार्थियों को दिए गए करोड़ों रुपए की वसूली के लिए हाथ-पांव मार रही है। कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के अयोग्य लाभार्थियों से भी पैसे वसूले जाएँगे। एचटी की रिपोर्ट के अनुसार सरकारी अनुमानों में कहा गया है कि 30 लाख महिलाएँ ऐसी हैं जो लड़की बहन के लिए पात्रता मानदंड को पूरा नहीं करती हैं, लेकिन उन्हें 1,500 रुपये प्रति माह की छह किस्तें मिली हैं। राज्य में 12 लाख अपात्र किसान हैं जिन्हें पीएम किसान योजना के तहत लाभ मिला है। वसूल की जाने वाली ऐसी राशि 4,000 करोड़ रुपये से अधिक है।
शिवसेना यूबीटी नेता प्रियंका चतुर्वेदी ने इसको लेकर पूछा है, 'चुनाव से पहले कई लोगों को दिए गए पैसे को अब वापस लेने की कितनी शर्मनाक कोशिश की जा रही है। पैसे देने से पहले जांच क्यों नहीं की गई? इससे उन्हें जितने भी वोट मिले और सरकार बनाई, क्या चुनाव आयोग को इसे अवैध नहीं मानना चाहिए?'
वैसे, इस योजना में गड़बड़ी की बात सरकार ही मानती है। महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम अजित पवार ने कुछ दिन पहले ही लाडकी बहिन योजना को लेकर चेतावनी दी थी। अपनी पार्टी एनसीपी के दफ्तर का उद्घाटन करते हुए अजित पवार ने कहा कि 2.5 लाख रुपये और उससे अधिक की वार्षिक आय वाली लाडकी बहिन लाभार्थी इस योजना से बाहर आ जाएँ। पवार ने यह भी माना कि सरकार ने उन लाभार्थियों को भी योजना का लाभ दे दिया जिन्होंने आधार डेटा नहीं दिया था।
महाराष्ट्र के बाद अब जो दिल्ली विधानसभा चुनाव होने जा रहा है वहाँ भी ये दोनों मुद्दे बड़े जोर शोर से उठ रहे हैं। एक तो महिलाओं को नकद सहायता देने का है और दूसरा वोटरों के नाम जोड़े जाने का। महिलाओं को नकद सहायता देने का वादा बीजेपी और आप दोनों ने किया है। वहीं, आप लगातार ग़लत तरीक़े से मतदाता सूची में नाम जोड़े जाने और हटाए जाने का आरोप लगा रही है। तो सवाल वही है कि क्या चुनाव आयोग इन आरोपों-प्रत्यारोपों और संदेहों को दूर करने का प्रयास भी करेगा या फिर यह ऐसे ही जारी रहेगा?
(इस रिपोर्ट का संपादन अमित कुमार सिंह ने किया है)