चीन अपने सैनिकों को वापस बुलाएगा भी तो कहाँ तक?

08:36 am Oct 01, 2020 | रंजीत कुमार - सत्य हिन्दी

सीमा और भूभाग के मसले पर 29 सितम्बर को चीन ने अचानक अपना रुख कड़ा करने के एक दिन बाद अपने तेवर नरम किये हैं। उसने दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की 10 सितम्बर को मास्को में हुई बैठक के बाद बनी पांच- सूत्री सहमति को लागू करने पर ज़ोर दिया है। इस सहमति में विसैन्यीकरण और भड़काने वाली तैनाती को ख़त्म करने की प्रतिबद्धता शामिल है। 

29 सितम्बर को चीन ने लद्दाख पर भारत की सम्प्रभुता पर सवाल उठाया था और कहा था कि वह 1959 में चीनी प्रधानमंत्री चाओ अन लाई द्वारा जवाहर लाल नेहरू को प्रस्तावित वास्तविक नियंत्रण रेखा को मानता है, जिसका भारतीय विदेश मंत्रालय ने ज़ोरदार विरोध किया था। दोनों देशों के बीच हुए इस वाकयुद्ध के बाद पूर्वी लद्दाख के सीमांत इलाकों पर सैन्य तनाव अगले कुछ महीनों या कुछ सालों तक भी जारी रहने की शंका जाहिर की जाने लगी थी।

चीनी राजदूत सुन वेई तुंग ने चीनी गणराज्य की स्थापना की 71 वीं सालगिरह पर भारत के कुछ राज्यों के भारत-चीन मैत्री संगठनों के साथ बैठक में अपने तेवर नरम किये और विदेश मंत्रियों के बीच हुई सहमति के अनुरूप सैनिकों की तुरन्त वापसी और भड़काने वाली तैनाती को समाप्त करने पर जोर दिया है।

सैनिकों की वापसी

इसी तरह की सहमति भारत और चीन के बीच सीमा मसलों पर चर्चा के लिये गठित वर्किंग मैकेनिज्म (डब्ल्यूएमसीसी) की 30 सितम्बर को हुई 19वीं बैठक में भी बनी है कि दोनों देश सीमाओं पर सैनिकों का 'क्विक डिसइनगेजमेंट' और 'डिएसकैलेशन' करेंगे यानी आमने- सामने की सैन्य तैनाती की स्थिति को समाप्त करेंगे और इसके बाद भड़काने वाली सैनिक तैनाती को खत्म करेंगे।   

लेकिन यहाँ सवाल पैदा होता है कि टेबल पर होने वाली वार्ताओं में चीन जो कहता है, उसे वह ज़मीन पर कब लागू करेगा। अब तक हम चीन की कथनी और करनी में भारी फर्क देखते रहे हैं। फलस्वरूप पूर्वी लद्दाख के सीमांत इलाक़ों में ज़मीनी हालात काफी संवेदनशील और तनावपूर्ण चल रहे हैं और दोनों देशों के सैनिक तीन सौ मीटर की दूरी पर आमने सामने तैनात हो चुके हैं। मामूली ग़लतफहमी या भड़काने वाली कार्रवाई से दोनों देशों के बीच खुला युद्ध छिड़ सकता है।

उम्मीद जगी

बुधवार को वर्किंग मैकेनिज्म की सकारात्मक माहौल में हुई बैठक में जिन बातों पर सहमति बनी है, उनसे फिर उम्मीद पैदा होती है कि दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की 10 सितम्बर को मास्को में पांच बातों पर सहमति को गम्भीरता से लागू किया जाएगा। इसी सहमति को ज़मीन पर उतारने के लिये दोनों देशों ने सैन्य कमांडरों की सातवें दौर की बैठक भी जल्द बुलाने का फ़ैसला किया है। 

सामरिक हलकों में सवाल बना हुआ है कि दोनों देशों के बीच पूर्वी लद्दाख के सीमांत इलाक़ों से विसैन्यीकरण यदि होने लगता है तो चीन कहाँ तक अपने पीछे हटेगा। इसके संकेत नहीं मिल रहे हैं कि चीन 5 मई से पहले की सैन्य तैनाती वाली रेखा तक अपने सैनिकों को पीछे हटा लेगा।

भारत का रुख नरम

वर्किंग मैकेनिज्म की 30 सितम्बर को हुई बैठक के बाद भारतीय विदेश मंत्रालय ने भी विवाद को लेकर अपनी शब्दावली बदलते हुए 'फ्रिक्शन प्वाइंट' शब्द का इस्तेमाल किया है यानी कि जिन इलाक़ों पर दोनों देशों की सेनाएं आमने- सामने तैनात हैं, उसे टकराव के इलाके बताकर भारत ने वास्तविक नियंत्रण रेखा की बात को गौण बना दिया है। भारत ने अपनी शब्दावाली बदलते हुए टकराव के बिंदुओं की बात की है और कहा है कि वहां से दोनों सेनाएं 'डिसइनगेज' और  फिर 'डिएस्कैलेट' करेंगी। टकराव के बिंदु मुख्य तौर पर पैंगोंग त्सो झील, गोगरा, हॉट स्प्रिंग और गलवान घाटी हैं। 

इसके अलावा देपसांग घाटी में अप्रैल महीने से ही चीनी सेना ने भारतीय सैनिकों को गश्ती करने से रोका हुआ है, जिसके बारे में भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि अपने सीमांत इलाक़ों की चौकसी करने से भारतीय सेना को कोई नहीं रोक सकता। देपसांग के इलाके में करीब 900 वर्ग किलोमीटर का इलाक़ा चीन के प्रभुत्व में है और भारत के लिये असली कामयाबी इस इलाक़े पर अपना नियंत्रण बहाल करने में ही देखी जाएगी।