भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के अंदरूनी हलकों में इन दिनों यह चर्चा ज़ोरों पर है कि अगले साल बीजेपी और उसके गठबंधन यानी एनडीए को राज्यसभा में बहुमत हासिल हो जाएगा और उसके बाद केंद्र सरकार जनसंख्या नियंत्रण का क़ानून लाएगी और समान नागरिक संहिता संबंधी क़ानून भी पारित कराया जाएगा।
बीजेपी और आरएसएस के समर्थकों की ओर से यही दावा सोशल मीडिया में भी किया जा रहा है। लेकिन हक़ीक़त यह है कि अगले साल होने वाले राज्यसभा के द्विवार्षिक चुनाव में बीजेपी और उसके सहयोगी दलों की सीटें बढलने के बजाय कम हो सकती है।
सीटें कम हो सकती हैं
इस समय संसद के इस उच्च सदन यानी राज्यसभा में बीजेपी के 95 सदस्य हैं और 245 सदस्यों के सदन में बहुमत का आँकडा 123 है। यानी अकेले बीजेपी को बहुमत के लिए और 28 सदस्यों की ज़रूरत है। बीजेपी के सहयोगी दलों में ऑल इंडिया अन्ना द्रमुक के 6, जनता दल (यू) के 5 और असम गण परिषद तथा रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के 1-1 सदस्य हैं।
इस प्रकार उसकी अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए की भी कुल सदस्य संख्या 109 होती है, जो कि बहुमत के आँकडे से 15 सीटें दूर है।
बता दे कि बीजेपी पिछले कुछ सालों से राज्यसभा में अपना संख्या बल बढ़ाने में जुटी हुई है। इस सिलसिले में कई विपक्षी दलों के राज्यसभा सदस्यों ने पाला बदलते हुए इस्तीफ़े दिए और फिर वे बीजेपी की तरफ से राज्यसभा में भेजे गए।
इसके अलावा राज्यसभा चुनाव के मौके पर कई राज्यों में विपक्षी दलों के विधायकों ने विधानसभा से इस्तीफ़े दिए हैं, जिसकी वजह से बीजेपी अपने ज्यादा-से-ज्यादा उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित करने में सफल रही है। लेकिन अब स्थिति में बदलाव होता दिख रहा है।
पिछले सात सालों के दौरान विभिन्न राज्यों की विधानसभाओं में बीजेपी के संख्या बल में बेतहाशा बढोतरी होने से राज्यसभा में कांग्रेस ही नहीं बल्कि क्षेत्रीय दलों की ताक़त भी काफी कम हुई हैं।
विपक्ष की बढ़ेगी ताक़त!
लेकिन अगले साल द्विवार्षिक चुनाव में इन दलों की ताक़त में इजाफ़ा होगा, क्योंकि पिछले दो वर्षों के दौरान कई राज्यों के विधानसभा चुनावों में क्षेत्रीय दलों के मुकाबले बीजेपी वैसा प्रदर्शन नहीं कर पाई है, जैसा प्रदर्शन उसने नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के तुरंत बाद हुए चुनावों में किया था या जैसा प्रदर्शन उसका कांग्रेस के ख़िलाफ़ होता है।
इसीलिए बिहार से लेकर आंध्र प्रदेश और बंगाल से लेकर तमिलनाडु व केरल तक क्षेत्रीय दलों की ताकत में इजाफ़ा होगा।
यही नहीं, लोकसभा के साथ ही राज्यसभा में भी संख्या बल के लिहाज से बेहद कमज़ोर हो चुकी कांग्रेस को भी तीन-चार सीटों का फ़ायदा हो सकता है। अभी उच्च सदन में कांग्रेस की सदस्य संख्या 34 रह गई है, जो इतिहास में उसकी अब तक की सबसे न्यूनतम सदस्य संख्या है।
अगले साल होने वाले द्विार्षिक चुनाव में कांग्रेस को इसलिए फायदा होगा, क्योंकि तीन साल पहले तीन राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ के विधानसभा चुनावों में उसका चुनावी प्रदर्शन काफी सुधरा था।
75 सीटों के लिए होंगे चुनाव
अगले साल जुलाई तक राज्यसभा के द्विवार्षिक चुनावों के तहत करीब एक दर्जन राज्यों में 75 सीटों के लिए चुनाव होगा। इनमें बीजेपी को राजस्थान, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड आदि राज्यों में सीटों का नुक़सान होगा। राजस्थान में अगले साल जुलाई में चार सीटें खाली हो रही है। ये चारों सीटें इस समय बीजेपी के पास हैं।
अगर वहाँ कांग्रेस विधायक दल में चुनाव से पहले कोई तोड़फोड़ नहीं हुई तो कांग्रेस को राज्य विधानसभा में उसके मौजूदा संख्या बल के आधार पर तीन सीटें मिलना तय है। यानी बीजेपी को तीन सीटों का नुक़सान होगा।
राजस्थान
गौरतलब है कि राजस्थान में पिछले साल राज्यसभा की तीन सीटों के लिए हुए चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस के कुछ विधायकों ने सचिन पायलट के नेतृत्व में बाग़ी तेवर दिखाए थे। इसके अलावा कांग्रेस के कुछ विधायकों और बीजेपी नेताओं के बीच कथित सौदेबाजी की बातचीत के ऑडियो टेप भी सार्वजनिक हुए थे।
कांग्रेस का कोई विधायक नहीं टूट पाया था और वह तीन में से दो सीटें जीतने में कांग्रेस सफल रही थी, जबकि बीजेपी को एक सीट से ही संतोष करना पडा था।
राजस्थान की तरह आंध्र प्रदेश में भी बीजेपी को तीन सीटों का नुक़सान होना तय है। गौरतलब है कि बीजेपी ने एक साल पहले आंध्र प्रदेश की अपनी पुरानी सहयोगी तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) के चार राज्यसभा सदस्यों को तोड़ कर अपने में शामिल कर लिया था। उनमें से तीन का कार्यकाल अगले साल ख़त्म हो रहा है। अगले साल होने वाले चुनाव में ये तीनों सीटें वहां सत्तारूढ वाईएसआर कांग्रेस के कब्जे में चली जाएंगी।
बिहार
बिहार में भी अगले साल होने वाले राज्यसभा चुनाव से पहले अगर राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और कांग्रेस विधायक दल तोड़फोड़ का शिकार नहीं हुआ तो राज्यसभा में उनकी मौजूदा स्थिति बरक़रार रह सकती है।
विधानसभा में सदस्यों की संख्या के लिहाज से राजद सबसे बड़ी पार्टी है इसलिए अगले साल होने वाले छह सीटों के द्विवार्षिक चुनाव में राजद को तीन सीटें मिल सकती हैं।
यह भी हो सकता है कि राजद खुद दो सीटें अपने पास रखे और एक सीट कांग्रेस को दे दे। इस राज्य में बीजेपी को ज़रूर एक सीट का फ़ायदा हो सकता है, क्योंकि उसके एक सदस्य का कार्यकाल समाप्त होगा, जबकि विधानसभा में मौजूदा संख्या बल के लिहाज से उसे दो सीटें आसानी से मिल जाएंगी।
इसके ठीक विपरीत उसके सहयोगी जनता दल (यू) को एक सीट का नुकसान होगा, क्योंकि उसके दो सदस्यों का कार्यकाल समाप्त होगा जबकि उसे एक ही सीट मिल सकेगी।
छत्तीसगढ़
कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ में जिन दो सीटों के चुनाव होने हैं, उनमें से एक सीट अभी बीजेपी के पास है लेकिन अब दोनों सीटें कांग्रेस के खाते में जाएगी। इस तरह वहां भी बीजेपी को एक सीट का नुकसान होगा। झारखंड में भी दो सीटों के लिए चुनाव होंगे। दोनो सीटें अभी बीजेपी के पास हैं, लेकिन चुनाव में उसे एक सीट गँवानी पड़ेगी।
पंजाब में अगले साल सभी सात सीटों के चुनाव होंगे। पाँच सीटें अप्रैल में खाली होंगी और दो जुलाई में। इन 7 में से 3 सीटें कांग्रेस के पास है और 3 सीटें अकाली दल के पास। एक सीट बीजेपी के पास है जो उसने अकाली दल की मदद से जीती थी। अकाली दल अब एनडीए यानी बीजेपी से अलग हो चुका है।
वहां राज्यसभा के द्विवार्षिक चुनाव से पहले विधानसभा के चुनाव होना है, लिहाजा विधानसभा चुनाव के नतीजों के आधार पर तय होगा कि राज्यसभा में किसको कितनी सीटें मिलेंगी।
उत्तर प्रदेश
सबसे बड़ा दाँव उत्तर प्रदेश का है। अगले साल जुलाई में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा की 12 सीटें खाली हो रही है, जिनमें से छह सीटें अभी बीजेपी के पास है। अगर फरवरी-मार्च में होने वाले विधानसभा चुनाव में बीजेपी पिछली बार की तरह बहुमत हासिल नहीं कर पाती है तो सीटें बढ़ाने के उसके इरादों को बडा झटका लगेगा।
पिछले विधानसभा में बीजेपी सहयोगी दलों के साथ 403 मे से 325 सीटें जीती थीं। मौजूदा हालात देख कर ऐसा नहीं लग रहा है कि बीजेपी अपना पिछला प्रदर्शन दोहरा पाएगी।
इसलिए उत्तर प्रदेश में उसकी इतनी सीटें नहीं बढेंगी कि बाकी राज्यों में होने वाली कमी की भरपाई हो सके।
वहाँ विधानसभा चुनाव में अगर बडा उलटफेर हो गया तो बीजेपी के लिए अपनी मौजूदा 6 सीटों को बरकरार रखना भी मुश्किल हो सकता है।
उत्तर प्रदेश में अगले साल समाजवादी पार्टी के तीन और बहुजन समाज पार्टी के भी दो सदस्यों का कार्यकाल समाप्त हो रहा है। उनको होने वाले इस नुक़सान की भरपाई तभी हो सकती है जब वे विधानसभा चुनाव में अपना प्रदर्शन सुधारे। इसी तरह कांग्रेस ने भी विधानसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन नहीं किया तो उसे मौजूदा एक सीट का नुकसान हो सकता है, जिस पर अभी कपिल सिब्बल काबिज हैं।
तमिलनाडु
तमिलनाडु में भी राज्यसभा की 6 सीटों के लिए चुनाव होगा, जिनमें से 4 सीटें बीजेपी की सहयोगी अन्ना द्रमुक की और 2 सीटें कांग्रेस की सहयोगी द्रमुक की हैं। अन्ना द्रमुक के दो राज्यसभा सदस्यों ने हाल ही में विधानसभा का चुनाव लड़ा था और जीत कर दोनों विधायक हो गए हैं। उनकी खाली सीटें अब द्रमुक के खाते में चली जाएंगी।
केरल में इस बार पिछली बार से ज्यादा सीट जीतने से वामपंथी पार्टियो की संख्या में कम से कम एक सीट का इजाफा और कांग्रेस को एक सीट का घाटा हो सकता है।
तेलंगाना
तेलंगाना में तेलंगाना राष्ट्र समिति, पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस और ओडिशा में बीजू जनता दल की संख्या पहले जैसी ही रहेगी। इसके अलावा महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में भी कोई बदलाव नहीं होगा, क्योंकि बीजेपी और कांग्रेस के जितने सदस्यों का कार्यकाल समाप्त होगा, उतनी सीटें दोनों को फिर मिल जाएंगी।
बीजेपी को बडा फ़ायदा कर्नाटक में हो सकता है, जहाँ कांग्रेस के 3 और बीजेपी के 1 सदस्य का कार्यकाल समाप्त होगा। इन 4 सीटों में बीजेपी तीन सीटें जीत सकती हैं। हिमाचल प्रदेश, असम और त्रिपुरा में भी बीजेपी को एक-एक सीट का फायदा होगा।
इस प्रकार सभी राज्यों का नफा-नुकसान मिलाकर बीजेपी को 4 से 5 सीटों तक का नुकसान हो सकता है और कांग्रेस को इतनी ही सीटों का फायदा। बीजेपी के सहयोगी दलों को भी कम से कम 4 सीटों का नुकसान होगा। इसलिए राज्यसभा में बहुमत के आंकडे से न सिर्फ बीजेपी का बल्कि एनडीए का फासला भी बढ जाएगा।