हरियाणा में फेल हो गई है बीजेपी की रणनीति?

01:36 pm Sep 09, 2024 | हरजिंदर

हरियाणा विधानसभा चुनाव का प्रचार अभियान अभी शुरू भी नहीं हुआ और भारतीय जनता पार्टी जिस रणनीति की शाख पर बैठी थी उसी पर उसने कुल्हाड़ी चला ली है।

पहले देखते हैं यह रणनीति थी क्या? भाजपा आमतौर पर तोड़-फोड़ से, सोशल इंजीनियरिंग से चुनाव को बाईपोलर बना लेती है, या राज्य की पूरी राजनीति का ध्रुवीकरण कर देती है। जिससे तमाम तीसरे-चैथे नंबर के दल या तो ख़त्म हो जाते हैं, या भाजपा उन्हें निगल जाती है या फिर वे अप्रासांगिक हो जाते हैं। हरियाणा के पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी ध्रुवीकरण में नाकाम रही थी और इसका नतीजों पर असर हमने देखा भी था।

अगर 2024 के चुनावों को देखें तो भाजपा को इसमें शुरुआती सफलता भी मिली। हरियाणा में जननायक जनता पार्टी और इंडियन नेशनल लोकदल इस बार अपने खड़े होने की जमीन ढूंढ रहे हैं। उनके सफाए के लक्षण तो पिछले लोकसभा चुनाव में ही दिख गए थे। हरियाणा की राजनीति में निर्दलीय बड़ी भूमिका निभाते रहे हैं और इस बार यह माना जा रहा था कि नई विधानसभा में उनकी संख्या भी कम होने वाली है। लेकिन यह मौसम अब तेजी से बदलने लग गया है। 

एक बार जब ध्रुवीकरण का काम पूरा हो जाता है तो पार्टी एक तरफ़ अपने वोटों को कंसाॅलिडेट या एकजुट करती है। ठीक उसी वक्त वह दूसरी तरफ़ अपने विरोधी के वोटों को डिस्रप्ट करने यानी उसके वोट बैंक को तोड़ने का काम करती है। पिछले एक दशक में हम बीजेपी की बहुत सारी जीत में इसके उदाहरण देख सकते हैं। लेकिन यही रणनीति अब हरियाणा में उलटी पड़ रही है।

उम्मीदवारों की पहली सूची जारी करने के बाद पार्टी में जिस स्तर की बगावत दिख रही है उसका सीधा सा अर्थ यह है कि पार्टी कम से कम अपने कार्यकर्ता आधार को कंसाॅलिडेट रखने में नाकाम हो गई। इन बगावत का असर मतदाताओं पर नहीं पड़ेगा यह मान लेने का कोई कारण नहीं है।

वैसे पार्टी अपने मूल जनाधार से भी पकड़ खो रही है यह पिछले कुछ दिनों से साफ़ दिख रहा है। पाकिस्तान से विस्थापित होकर आए पंजाबी भाषी लोग हरियाणा में हमेशा से पार्टी का बड़ा जनाधार रहे हैं। हरियाणा से आने वाली तमाम रिपोर्ट बता रही हैं कि पिछले दस साल में इस वर्ग का भी बीजेपी से मोहभंग हो गया है।

जीटी रोड बेल्ट पर पड़ने वाले शहरों पानीपत, सोनीपत, करनाल, अंबाला वगैरह से आने वाली रिपोर्ट यही बता रही हैं।

अगर बड़ी संख्या में लोग बागी होकर पार्टी के खिलाफ निर्दलीय या किसी पार्टी में शामिल होकर चुनाव लड़ते हैं तो वह ध्रुवीकरण सिरे नहीं चढ़ पाएगा जिसकी बीजेपी इस बार उम्मीद बांध रही थी। हो सकता है इनमें से एक-दो कांग्रेस का टिकट पा जाएं लेकिन बाकी को या तो इनेला या जजपा का दामन ही थामना पड़ेगा। यानी बीजेपी से नाराज कुछ नेता उन पार्टियों की जमीन को ही विस्तार दे रहे होंगे, जिन्हें इस बार मैदान से बाहर मान लिया गया था। 

दूसरी तरफ़ अभी तक ये नहीं लग रहा है कि बीजेपी किसी तरह कांग्रेस के वोट को डिसरप्ट कर पाई है। यह मुमकिन है कि कांग्रेस जब उम्मीदवारों की दूसरी लिस्ट जारी करे तो वहां भी बगावत के कुछ बड़े सुर सुनाई पड़ें। लेकिन इसकी वजह खुद कांग्रेस ही होगी, ऐसा बीजेपी की किसी चुनावी चाल की वजह से होता हुआ नहीं दिख रहा।