न कोई इवेंट, ना उत्सव, न चर्चा, न मंथन- एलान हो गया। नरेंद्र मोदी ही बीजेपी का चेहरा होंगे। एलान किसने किया? बीजेपी अध्यक्ष ने?- नहीं। संसदीय दल बोर्ड ने?- नहीं। अमित शाह ने यह एलान किया जो बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष हैं और केंद्र सरकार में गृहमंत्री भी। मगर, इस एलान के लिए क्या वह उपयुक्त व्यक्ति माने जाएंगे?
बीजेपी की संयुक्त राष्ट्रीय कार्यकारिणी में यह एलान हुआ कि नरेंद्र मोदी बीजेपी ही नहीं एनडीए का भी चेहरा होंगे। न तो संयुक्त राष्ट्रीय कार्यकारिणी में इस विषय पर कोई चर्चा हुई और न ही एनडीए के घटक दलों के साथ कोई मीटिंग।
न बीजेपी में चर्चा हुई, न एनडीए में
क्या बीजेपी के भीतर नरेंद्र मोदी को चेहरा बनाने को लेकर कोई मतभेद था? फिर बगैर किसी राजनीतिक उत्सव का रूप दिए इसकी घोषणा क्यों हुई? ऐसी क्या जल्दी थी कि बीजेपी के भीतर भी इस विषय पर चर्चा नहीं हुई? नरेंद्र मोदी को बीजेपी का चेहरा बनाने की घोषणा के लिए पार्टी अध्यक्ष से बेहतर कौन हो सकते थे? एनडीए का चेहरा होने के लिए ग़ैर बीजेपी दल के वरिष्ठ नेता उपयुक्त हो सकते थे। मगर, इन सबको नज़रअंदाज़ किया गया, तो क्यों?
कह सकते हैं कि बीजेपी की संयुक्त राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बड़ा राष्ट्रीय अवसर था जिसमें नरेंद्र मोदी को अगले चुनाव के लिए चेहरा घोषित करना उपयुक्त है। बिल्कुल यह बैठक एलान के लिए उपयुक्त फोरम है। मगर, मंथन तो इस फोरम में भी नहीं हुआ। चर्चा तक नहीं हुई। यह निर्णय ऐसे आया मानो इस पर चर्चा की ज़रूरत ही ना हो।
मोदी के लिए टूटेगी बीजेपी में 75 साल की हदबंदी?
नरेंद्र मोदी का जन्म 17 सितंबर 1950 को हुआ। 26 मई 2014 में प्रधानमंत्री बनते ही नरेंद्र मोदी ने बीजेपी में उम्र की हदबंदी लागू कर दी। 75 साल से अधिक उम्र के व्यक्ति उनकी कैबिनेट का हिस्सा नहीं होंगे। 2019 का चुनाव आते-आते उन्होंने उम्र की इस हदबंदी को चुनाव लड़ने से भी जोड़ दिया। 75 साल से अधिक उम्र वाले नेता चुनाव भी नहीं लड़ेंगे। लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कलराज मिश्र, सुमित्रा महाजन जैसे दिग्गज नेताओं की राजनीतिक चुनौती पैदा ही होने नहीं दी गयी।
2024 के लिहाज से देखें तो नरेंद्र मोदी की बनायी हदबंदी की जद में वे खुद नहीं आते। 2014 में नरेंद्र मोदी की उम्र 64 साल थी। मगर, 2024 में उनकी उम्र 74 साल होगी। लिहाजा चुनाव लड़ने की उम्र भी होगी और प्रधानमंत्री बनने की भी।
लेकिन, अगर नरेंद्र मोदी अपनी ही बनायी उम्र की हदबंदी पर स्पष्टीकरण नहीं देते तो सवाल ज़रूर पैदा होते। क्या येदियुरप्पा की तरह हदबंदी नियम को नरेंद्र मोदी पर भी लागू किया जाएगा? क्या प्रधानमंत्री बन जाने के बाद 2025 में नरेंद्र मोदी पद त्याग कर देंगे? ऐसे सभी सवालों का जवाब बीजेपी नेताओं-कार्यकर्ताओं को दे दिया गया है।
बीजेपी में महत्वाकांक्षाओं को पड़ी चोट
बीजेपी से बाहर यह मुद्दा नहीं रहा कि नरेंद्र मोदी अगला चुनाव लड़ेंगे या नहीं? या फिर मोदी अगले प्रधानमत्री होंगे या नहीं? पार्टी के भीतर से ही यह मुद्दा कई क़िस्म की महत्वाकांक्षाओं के गिर्द सुलगता रहा है। योगी आदित्यनाथ को भावी प्रधानमंत्री के रूप में देखने वाले भी कम नहीं हैं। नितिन गडकरी और राजनाथ सिंह ने भी समय-समय पर उदार नेतृत्व के रूप में अपनी छवि को बनाने और मज़बूत करने कोशिश की है। जब कभी भी नरेंद्र मोदी के बाद ‘कौन’ का प्रश्न आया, घुमा-फिराकर यही तीन नाम चर्चा में रहे। अमित शाह का नाम अलग क़िस्म से लिया जाता रहा है। वे नरेंद्र मोदी की पसंद बनकर ही बीजेपी में पले-बढ़े हैं और इसलिए आगे भी उनकी गति इसी क़िस्म से रहने वाली है।
वास्तव में नरेंद्र मोदी को चेहरा बनाने की घोषणा कर अमित शाह ने बीजेपी के भीतर उन तमाम महत्वाकांक्षाओं की जड़ पर मट्ठा डालने का काम किया है जो ऐसी किसी परिस्थिति में प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रहे हैं जब बीजेपी कमजोर हो जाए। कहने का अर्थ यह है कि ऐसी जितनी भी महत्वाकांक्षाएं एनडीए की सरकार बनने की स्थिति में सहयोगी दलों के आसरे अपने नाम को जिन्दा रखने की कोशिश करती रही हैं उन्हें ताज़ा फ़ैसले से निराशा हुई है।
नरेंद्र मोदी की सियासी शैली कभी भी अपने ख़िलाफ़ किसी ध्रुव को नहीं बनने देने की रही है। यहाँ तक कि विरोधी सुरों को भी वे साथ-साथ ले चलने के लिए उत्साहित कभी नहीं रहे। अगर इस बात पर चर्चा होती कि 2024 में चेहरा कौन हो, तो निश्चित रूप से इस पर अलग-अलग राय सामने आ सकती थी। यह राय मोदी-शाह की सोच के विरुद्ध हो सकती थी। ऐसी स्थिति क्यों पैदा होने दी जाए? निर्णय ही सामने रख दिया जाए ताकि जिनके मन में चाहे जो अरमान हो, वे सामने लाने की हिम्मत ना कर सकें। उनके दिल के अरमां आंसुओं में ही बह निकलें।
विपक्ष से ज़्यादा भाजपाइयों को संदेश
राजनीतिक पंडित जो आने वाले आम चुनाव में नरेंद्र मोदी को चेहरा बनाने की घोषणा को विपक्ष के लिए चुनौती के रूप में देख रहे हैं, वास्तव में वे निरर्थक बहस में उलझे हैं। यह घोषणा विपक्ष के लिए क़तई नहीं है। विपक्ष इसके लिए तैयार है कि उनका सामना बीजेपी के सबसे बड़े ब्रांड नरेंद्र मोदी से ही होना है। वास्तव में नरेंद्र मोदी को ब्रांड बनाए रखने का फ़ैसला बीजेपी के ही लोगों के लिए है। इस घोषणा से लोकतांत्रिक होने का दावा कर रही बीजेपी के भीतर ही तानाशाही का स्पष्ट एलान है।
नरेंद्र मोदी का नेतृत्व बीते 8 साल में मज़बूत हुआ है। लेकिन, सच यह भी है कि उनके नेतृत्व पर सवाल भी उतनी ही तेजी से पैदा हुए हैं। विपक्ष की मज़बूती नरेंद्र मोदी से लड़ने में है। अगर गुजरात की पूरी कैबिनेट बदल देने वाली बीजेपी ने यही फैसला करने का साहस केंद्र में दिखाया होता, तो विपक्ष शस्त्रविहीन हो जाता। लेकिन, बीजेपी पर मोदी-शाह का मज़बूत कब्जा है। वे खुद को नियमों से परे साबित कर चुके हैं। ऐसे में अगर बीजेपी के लिए नरेंद्र मोदी ताकत हैं तो इस ताकतवर हथियार के पीछे पैदा हुई जंग ही विपक्ष के लिए उम्मीद भी है।