जो आरोग्य सेतु ऐप डाटा और निजता की सुरक्षा को लेकर विवादों में रही है उसको लेकर अब नया प्रोटोकॉल जारी किया गया है। इसमें कहा गया है कि यूज़र के डाटा को 180 दिन में हमेशा के लिए डिलीट करना ज़रूरी है और इस डाटा का इस्तेमाल सिर्फ़ स्वास्थ्य से जुड़े उद्देश्यों के लिए किया जाएगा। पहले कोरोना मरीज़ के ठीक होने पर डाटा को 60 दिन और दूसरे यूज़र के डाटा को 40 दिन तक सर्वर पर रखना तय था, लेकिन अब विशेष परिस्थितियों में प्रौद्योगिकी पर अधिकार प्राप्त समूह की सलाह पर इसे 180 से ज़्यादा दिन भी रखा जा सकता है। इसके अलावा भी कई बदलाव किए गए हैं।
ये बदलाव तब किए जा रहे हैं जब साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ से लेकर हैकर और राजनेता तक डाटा सुरक्षा को लेकर सवाल उठा चुके हैं। इस ताज़ा प्रोटोकॉल को इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय यानी एमईआईटीवाई द्वारा विकसित और जारी किया गया है। नेशनलन इंफ़ोर्मेटिक्स सेंटर यानी एनआईसी उन डाटा को इकट्ठा करता और सुरक्षित रखता है। नये प्रोटोकॉल में इसका भी ज़िक्र है कि वह व्यक्ति डाटा को डिलीट करने के लिए आग्रह कर सकता है जिसका 30 दिन के अंदर पालन किया जाना ज़रूरी होगा। नये प्रवाधान में यह भी कहा गया है कि डाटा को केंद्र सरकार के साथ शेयर किया जा सकता है और उन सभी एजेंसियों को, जिन्हें उस डाटा तक पहुँच दी गई है, 180 दिन बाद डिलीट करना होगा।
अब इब बात पर ज़ोर दिया जा रहा है कि इसका इस्तेमाल सिर्फ़ स्वास्थ्य के लिए किया जा रहा है और इसमें डाटा पूरी तरह सुरक्षित है। आईटी मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव एस गोपालकृष्णन, जिन्होंने प्रोटोकॉल को विकसित करने में भी मदद की है, ने 'द इंडियन एक्सप्रेस' को बताया, 'यह डेटा प्रोटेक्शन बिल के अनुकूल ही है। यह स्पष्ट रूप से इस डेटा को संभालने में एनआईसी, एमईआईटीवाई आदि की ज़िम्मेदारी को तय करता है।'
ताज़ा प्रोटोकॉल तब आए हैं जब पिछले हफ़्ते ही फ़्रांसीसी हैकर इलिएट एल्डर्सन ने दावा किया था कि आरोग्य सेतु ऐप में डाटा सुरक्षित नहीं हैं और क़रीब 9 करोड़ भारतीयों की निजता ख़तरे में है। हालाँकि सरकार ने इसे सिरे से खारिज कर दिया
तब सरकार ने कहा था कि उस हैकर द्वारा किसी भी यूज़र के बारे में कोई ऐसी जानकारी नहीं दी गई है जिससे सिद्ध हो कि लोगों का डाटा ख़तरे में है। उससे पहले साइबर विशेषज्ञों का हवाला देकर कांग्रेस नेता राहुल गाँधी ने भी डाटा सुरक्षा को लेकर सवाल उठाए थे।
इन सुरक्षा चिंताओं के बावजूद कई जगहों पर लोगों के लिए इस ऐप को ज़रूरी किया जा रहा है। सुरक्षा चिंताओं को लेकर सवालों के उठने के बीच ही केंद्र सरकार ने सभी सरकारी विभागों और सभी निजी कंपनियों के कर्मचारियों के लिए इसे मोबाइल पर डाउनलोड करना अनिवार्य कर दिया है। दिल्ली से सटे नोएडा में तो प्रशासन ने मोबाइल में इस ऐप को इंस्टॉल नहीं करने पर तो दंडनीय अपराध बना दिया है। नोएडा और ग्रेटर नोएडा में अगर कोई बाहर दिखता है और उसके स्मार्टफ़ोन पर इस ऐप को नहीं पाया जाता है तो उसपर जुर्माना लगाया जा सकता है या जेल की सज़ा दी जा सकती है। ऐसा तब है जब इस ऐप को लॉन्च करते समय कहा गया था कि यह पूरी तरह स्वैच्छिक रहेगा।
आरोग्य सेतु ऐप को ज़रूरी किए जाने की क़ानूनी वैधता को लेकर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज बी एन श्रीकृष्ण भी सवाल उठाते हैं। जस्टिस बी एन श्रीकृष्ण उस सरकारी कमेटी के अध्यक्ष रहे थे जिसने व्यक्तिगत सुरक्षा संरक्षण अधिनियम का पहला मसौदा तैयार किया था। हालाँकि सरकार ने उनके सुझावों को नहीं माना था। वह कहते हैं कि आरोग्य सेतु ऐप को लोगों के लिए ज़रूरी करना पूरी तरह ग़ैर-क़ानूनी है। 'द इंडियन एक्सप्रेस' से बातचीत में उन्होंने कहा, 'किस क़ानून के तहत आप किसी पर इसे ज़बरदस्ती लाद रहे हैं अभी तक तो इसके लिए कोई क़ानून नहीं है।'
लेकिन गृह मंत्रालय ने आरोग्य सेतु ऐप को लेकर कर्मचारियों के लिए दिशा निर्देश जारी किए थे। ये दिशा निर्देश राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम (एनडीएमए), 2005 के तहत गठित राष्ट्रीय कार्यकारी समिति द्वारा जारी किए गए थे।
इस पर जस्टिस श्रीकृष्ण ने कहा कि आरोग्य सेतु के उपयोग को अनिवार्य बनाने के लिए दिशानिर्देशों को पर्याप्त क़ानूनी आधार नहीं माना जा सकता है। उन्होंने कहा, 'ये क़ानून के टुकड़े- दोनों, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम और महामारी रोग अधिनियम - एक विशिष्ट कारण के लिए हैं। मेरे विचार में राष्ट्रीय कार्यकारी समिति एक वैधानिक निकाय नहीं है।'
नोएडा पुलिस द्वारा आम लोगों के लिए आरोग्य सेतु ऐप को लेकर जारी आदेश के संदर्भ में जस्टिस श्रीकृष्ण कहते हैं कि “नोएडा पुलिस का आदेश पूरी तरह से ग़ैर-क़ानूनी है। मैं मान रहा हूँ कि यह अभी भी एक लोकतांत्रिक देश है और इस तरह के आदेशों को अदालत में चुनौती दी जा सकती है।'