प्रसिद्ध फ़िल्म अभिनेता आमिर ख़ान दीपावली पर पटाखेबाज़ी के विरुद्ध किसी टायर कंपनी की पहल पर टीवी चैनलों पर विज्ञापन दे रहे हैं। उसमें वे देश के करोड़ों लोगों से अनुरोध कर रहे हैं कि दीपावली के मौके पर वे सड़कों पर पटाखेबाज़ी न करें। अंधाधुंध पटाखेबाज़ी से सड़कों पर यातायात में तो बाधा पड़ती ही है, प्रदूषण भी फैलता है और विस्फोटों से लोग भी मरते हैं।
इसके अलावा पटाखों के नाम पर हम चीनी पटाखा-निर्माताओं की जेबें मोटी करते हैं। आजकल जब फ़िल्म-अभिनेता लोग चड्डी-बनियान और जूते-चप्पल का विज्ञापन करते हैं तो उन्हें देखकर मुझे शर्म आती है।
सिर्फ पैसे कमाने के लिए वे अपनी लोकप्रियता का सौदा करने लगते हैं। मैं तो सिनेमा नहीं के बराबर देखता हूं लेकिन फिर भी आमिर ख़ान को थोड़ा अलग किस्म का अभिनेता मानता हूं। मैं चाहता हूं कि आमिर ख़ान की तरह हमारे सभी अभिनेता और अभिनेत्रियाँ ऐसे विज्ञापनों में भाग लें, जो आम लोगों को समाज-सुधार के लिए प्रेरित करें। इससे अपराध घटेंगे और सरकार का भार भी हल्का होगा।
लेकिन आमिर ख़ान ने जो मांग की है, उसे सांप्रदायिक रंग देना उचित नहीं है। कर्नाटक के बीजेपी सांसद अनंत हेगड़े की यह मांग भी बिल्कुल उचित है कि मसजिदों में लाउडस्पीकरों से होने वाली शोर-शराबे वाली अजान के विरुद्ध भी आवाज़ उठनी चाहिए।
मैं कहता हूं कि जैसे सीएट टायर के हिंदू मालिक ने दीपावली के पटाखों के विरुद्ध पहल की, कोई मुसलिम सेठ आगे आए और वह चिल्लपों अजान के विरुद्ध पहल करे। स्वयं आमिर ख़ान इसका बीड़ा उठायें।
सर्वोच्च न्यायालय ने पहले से ही अजान के शोर की सीमा बांध रखी है और रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक लाउडस्पीकरों पर प्रतिबंध लगा रखा है। इंडोनेशिया दुनिया का सबसे बड़ा मुसलिम देश है। वहां पिछले हफ्ते ही कई तरह के प्रतिबंधों की घोषणा हुई है।
मैं खुद लगभग 15-20 मुसलिम देशों में रहा हूं। एकाध जगह को छोड़कर नमाज़ या अजान के नाम पर मैंने शोर-शराबा कभी नहीं सुना। 52 साल पहले अफगानिस्तान के हेरात शहर में मैंने मिस्री कुरान की मधुर आयतें सुनीं तो मैं दंग रह गया। किसी भी धर्मग्रंथ में नहीं लिखा है कि उसके मंत्र या वर्स या आयतें या वाणी आप कानफोड़ू ढंग से पढ़ें।
अपना भजन कानफोड़ू ढंग से सुनने पर सामने वाले के दिल में क्या प्रतिक्रिया होती है, इसका हम ध्यान करते हैं या नहीं? ईश्वर या अल्लाह अगर सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापक है तो उसे आपके घंटे और घड़ियाल की जरुरत क्यों होनी चाहिए?
इस मामले में संत कबीर ने मूर्तिपूजकों की तगड़ी खबर ली है तो उन्होंने शोर पसंद मुसलमानों को भी नहीं बख्शा है।
वे कहते हैं-
कांकर-पाथर जोड़ि के मसजिद लई चुनाय।
ता चढ़ि मुल्ला बांग दे, बहरा हुआ खुदाय ।।