लंबी लड़ाई के बाद अंत में केंद्रीय जाँच ब्यूरो के निदेशक आलोक वर्मा को अपने पद से हटना ही पड़ा। तीन सदस्यीय निर्वाचन समिति में से दो सदस्यों ने पाया कि उनसे कुछ ग़लतियााँ हुईं और उन पर लगे कुछ आरोप सही हैं। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक़, वर्मा पर लगे 10 में से पाँच आरोपों में कुछ दम पाया गया। हमने यह जानने की कोशिश की कि वे कौन आरोप हैं, जिनकी वजह से सीबीआई निदेशक को अपने पद से हटा दिया गया।
- 1.केंद्रीय सतर्कता आयोग ने पाया कि आईआरसीटीसी मामले में लालू प्रसाद यादव पर लगे आरोपों की जाँच जब हो रही थी, वर्मा ने एफ़आईआर में एक आदमी के नाम को जान बूझ कर शामिल नहीं किया और इसकी वजह भी नहीं बताई।
- 2.विशेष निदेशक राकेश अस्थाना ने आरोप लगाया था कि वर्मा ने हैदराबाद के व्यापारी सतीश बाबू सना से मोईन क़ुरैशी मामले की जाँच को प्रभावित करने के लिए दो करोड़ रुपए की घूस ली थी। सीवीसी ने वर्मा के क्रिया कलाप को 'संदेहास्पद' पाया था। सीवीसी ने यह भी कहा कि सीबीआई प्रमुख ने स्टर्लिंग बायोटेक जाँच मामले में उसे यह कह दिग्भ्रमित करने की कोशिश की थी कि राकेश अस्थाना को उनसे दुश्मनी है। इसके अलावा 'संदेहास्पद विश्वसनीयता' वाले कुछ लोगों को बहाल करने का दोषी भी उन्हें पाया गया था।
- 3.आलोक वर्मा 2016 में सोना तस्करी में कस्टम में पकड़े गए एक आदमी कथित तौर पर अपने साथ लेकर गए थे। सीवीसी ने इस आरोप को आँशिक रूप से सही पाया था और सीबीआई की एक दूसरी शाखा को जाँच करने को कहा था।
- 4.पूर्व सीबीआई निदेशक पर यह आरोप भी है कि हरियाणा भूमि घोटाले में वे हरियाणा के तत्कालीन शहर व देहात योजना के निदेशक के संपर्क में थे और 36 करोड़ रुपए का लेनदेन हुआ था ताकि मामले की प्रारंभिक जाँच को बंद करवाया जा सके। वह जाँच वहीं बंद कर दी गई जबकि और जाँच की ज़रूरत थी।
- 5.आलोक वर्मा ने सीबीआई में ऐसे दो लोगों की भर्ती कराने की कोशिश की, जिनके लिए प्रतिकूल रिपोर्टें पहले से मौजूद थी। सीवीसी ने पाया कि यह आरोप सही था।