सुप्रीम कोर्ट ने एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (एजीआर) के मामले में मंगलवार को फ़ैसला सुना दिया है। अदालत ने टेलीकॉम कंपनियों को राहत देते हुए उन्हें अपना बकाया चुकाने के लिए 10 साल का वक़्त दिया है। जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने फ़ैसला सुनाते हुए कहा कि यह समय अवधि 1 अप्रैल, 2021 से शुरू होगी। टेलीकॉम कंपनियों पर 1.6 लाख करोड़ रुपये बकाया है।
अदालत ने कहा कि टेलीकॉम कंपनियों को एजीआर के कुल बकाये का 10 फ़ीसदी 31 मार्च, 2021 तक चुकाना होगा जबकि बचा हुआ पैसा हर साल 7 फ़रवरी को एक किश्त के रूप में देना होगा।
जिन टेलीकॉम कंपनियों को एजीआर चुकाना है, अदालत ने उनके प्रबंध निदेशकों और चेयरपर्सन्स से कहा है कि वे इसे लेकर एक हलफ़नामा ज़रूर दायर करें। अदालत ने बेहद सख़्त लहजे में कहा है कि अगर पैसा चुकाने में कोई भी चूक होती है तो ना सिर्फ़ इसके लिए ब्याज़ जमा करना होगा बल्कि यह अदालत की अवमानना की प्रक्रिया को शुरू करने को आमंत्रण देने जैसा होगा।
टेलीकॉम कंपनियों के संकट पर देखिए, आर्थिक मामलों के जानकार आलोक जोशी का वीडियो-
पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि टेलीकॉम कंपनियां सरकार को 92 हज़ार करोड़ रुपये का भुगतान करें। इन कंपनियों को भुगतान करने के लिए 23 जनवरी तक का वक़्त दिया गया था लेकिन ये इसे बढ़वाना चाहती थीं। तब अदालत ने उनकी इस मांग को खारिज कर दिया था और सरकार से कहा था कि इन कंपनियों से बकाये की रकम वसूली जाए।
एजीआर से सबसे ज़्यादा प्रभावित होने वाली टेलीकॉम कंपनियां वोडाफ़ोन-आइडिया और भारती एयरटेल हैं। वोडाफ़ोन-आइडिया पर 50 हज़ार करोड़ का बकाया है जबकि भारती एयरटेल को 26 हज़ार करोड़ रुपये देने हैं।
पिछली सुनवाइयों में वोडाफ़ोन-आइडिया ने अदालत से कहा था कि अगर उसे एक ही बार में एजीआर देने के लिए कहा जाएगा तो उसके पास अपने कामकाज को बंद करने के अलावा कोई चारा नहीं बचेगा।
‘क़ानून नहीं बचा, देश छोड़ दें तो बेहतर’
फ़रवरी में इस मामले में सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने बेहद सख़्त टिप्पणी की थी। अदालत ने कहा था कि क्या इस देश में कोई क़ानून नहीं बचा है कोर्ट ने यहां तक कहा था कि देश में रहने लायक स्थिति नहीं है और बेहतर होगा कि देश छोड़ दें। अदालत ने 17 मार्च को भारती एयरटेल, वोडाफ़ोन-आइडिया, एमटीएनएल, बीएसएनएल, रिलायंस कम्युनिकेशन, टाटा टेलीकॉम्युनिकेशन और कुछ अन्य कंपनियों के प्रबंध निदेशकों को कोर्ट में तलब किया था।
टेलीकॉम कंपनियां स्पेक्ट्रम इस्तेमाल करने के लिए एजीआर का 3-5 फ़ीसदी और लाइसेंस फ़ीस का 8 फ़ीसदी डिपार्टमेंट ऑफ़ टेलीकॉम को देती हैं। ये कंपनियां चाहती हैं कि एजीआर में सिर्फ़ कोर सेवाओं से आए रेवेन्यू को शामिल किया जाए, जबकि सरकार का कहना है कि इसमें सभी रेवेन्यू शामिल होंगे।