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दिल्ली अध्यादेश वाले विधेयक पर सरकार की नैया पार लगाएगी वाईएसआरसी?

दिल्ली अध्यादेश वाले विधेयक पर सरकार की नैया पार लगाएगी वाईएसआरसी?

दिल्ली में सेवाओं के नियंत्रण के केंद्र के प्रयास को रोकने के लिए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने देश भर में विपक्षी नेताओं को एकजुट किया है। लेकिन क्या इसमें वह सफल होंगे?

दिल्ली में सेवाओं के नियंत्रण के लिए केंद्र के विधेयक पर यदि जगन मोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआर कांग्रेस समर्थन दे दे तो क्या केजरीवाल की कोशिशें बेकार हो जाएंगी? कम से कम राज्यसभा में आँकड़े तो यही इशारा करते हैं।

राज्यसभा में फिलहाल 238 सदस्य हैं। यानी बहुमत का आंकड़ा 120 है। भाजपा और सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए में सहयोगी दलों के पास 105 सदस्य हैं। सत्तारूढ़ दल को पांच नामांकित और दो निर्दलीय सांसदों के समर्थन का भी भरोसा है। इस तरह सरकार के पक्ष में 112 वोट हैं, जो नए बहुमत के आंकड़े से आठ कम है। क़रीब 105 सदस्य दिल्ली अध्यादेश के ख़िलाफ़ हैं। इस बीच जगन मोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआरसी ने भी समर्थन देने की बात कही है। वाईएसआर कांग्रेस के राज्यसभा में नौ सदस्य हैं।

इस तरह माना जा रहा है कि विधेयक संसद के दोनों सदनों से पारित होने के लिए तैयार है। ऐसा इसलिए क्योंकि आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस पार्टी ने संसद में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार का समर्थन करने का फैसला किया है। समझा जाता है कि वह दोनों मुद्दों- मणिपुर मामले में अविश्वास प्रस्ताव और दिल्ली अध्यादेश वाले विधयेक पर सरकार के साथ होगी। 

वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के सदस्यों के समर्थन से सरकार अपने विवादास्पद दिल्ली विधेयक को राज्यसभा के माध्यम से आसानी से पास करा सकती है, जहाँ उसके पास बहुमत नहीं है। वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के नेता वी विजयसाई रेड्डी ने एनडीटीवी से कहा, 'हम दोनों मुद्दों पर सरकार के पक्ष में वोट करेंगे।'

यदि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक पारित हो जाता है कि तो यह दिल्ली के नौकरशाहों के नियंत्रण के लिए लाये गए अध्यादेश की जगह लेगा। इसे केंद्र द्वारा सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश को रद्द करने के लिए जारी किया गया था जिसमें कहा गया था कि दिल्ली में नौकरशाहों के स्थानांतरण एवं नियुक्तियों में निर्वाचित सरकार का नियंत्रण है, केंद्र का नहीं।

फिलहाल अध्यादेश के माध्यम से केंद्र दिल्ली सरकार के अधिकारियों की पोस्टिंग पर नियंत्रण कर रहा है। यह वह अध्यादेश है जिस पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उपराज्यपाल वीके सक्सेना के बीच तनातनी बनी हुई है।

इस अध्यादेश पर टकराव का ही नतीजा है कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुँच गया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से सुना है और इसे पाँच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को भेज दिया है। दिल्ली सरकार ने 19 मई को घोषित राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अध्यादेश, 2023 के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। इसने याचिका में तत्काल अंतरिम रोक की प्रार्थना करते हुए कहा था कि यह निर्वाचित सरकार को उसकी सिविल सेवा पर नियंत्रण से पूरी तरह से अलग कर देता है।

इधर दिल्ली की सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी केंद्र के विधेयक के खिलाफ अपनी लड़ाई में समर्थन जुटा रही है। यह भाजपा पर राजधानी में अधिकारियों पर नियंत्रण हासिल करने की कोशिश करते हुए कानून के शासन को खत्म करने की कोशिश करने का आरोप लगा रही है। आप नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने समर्थन हासिल करने के लिए देश भर में यात्रा की और विभिन्न मुख्यमंत्रियों और विपक्षी दलों के नेताओं से मुलाकात की। कुछ दिन पहले ही कांग्रेस ने भी आप को समर्थन का भरोसा दिया है। हालाँकि राज्यसभा में विपक्ष के पास अब तक कुल 105 सदस्य ही नज़र आ रहे हैं। 

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