
कन्हैया की पदयात्रा से क्या हासिल करेगी कांग्रेस?
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में छात्र राजनीति से चर्चित हुए कन्हैया कुमार वामपंथी राजनीति में किस्मत आजमाने के बाद अब कांग्रेस के स्टार लीडर हैं। ऐसा लगता है कि पुराने नेताओं के प्रदर्शन से असंतुष्ट कांग्रेस नेतृत्व ने अब कन्हैया कुमार के सहारे बिहार में कांग्रेस को नया जीवन देने का पासा फेंका है।
ऐसे में बिहार में यह पूछा जा रहा है कि इस पदयात्रा से कांग्रेस को क्या हासिल होगा और महागठबंधन में उसकी स्थिति कितनी मजबूत होगी। कुछ लोग तो यह सवाल भी कर रहे हैं कि कांग्रेस महागठबंधन में रहेगी भी या नहीं। एक और अहम सवाल यह भी है कि जिन मुद्दों को कन्हैया कुमार उठा रहे हैं उनसे एनडीए कितना असहज होगा।
कन्हैया कुमार इस समय कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई के राष्ट्रीय प्रभारी हैं। रविवार को शुरू हुई इस पदयात्रा का नाम बहुत सोच समझकर ‘पलायन रोको, नौकरी दो’ रखा गया है। इस पदयात्रा में युवक कांग्रेस भी शामिल है। यह पदयात्रा अपने पहले चरण में 6 जिलों से होते हुए 22 मार्च को पटना के कांग्रेस मुख्यालय सदाकत आश्रम पहुंचेगी।
पदयात्रा के बारे में कन्हैया कुमार ने जो बातें की हैं उससे साफ तौर पर यह लगता है कि इसका मकसद युवाओं से सीधा संवाद स्थापित करना है। हालांकि वह आपराधिक वारदातों की भी चर्चा कर रहे हैं लेकिन उनका फोकस इस बात पर है कि बिहार में रोजगार की कमी है और युवा इसकी वजह से पलायन को मजबूर हैं।
एक समय में कन्हैया कुमार की युवाओं में काफी लोकप्रियता थी और कांग्रेस की कोशिश यह लग रही है कि उस लोकप्रियता के सहारे अपने खोए जनाधार को दोबारा हासिल करे और उसकी शुरुआत युवाओं से हो। इसीलिए कन्हैया कुमार यह कह रहे हैं कि जब आप बिहार का भविष्य तय कर रहे हों तो अपने बच्चों के बारे में सोचें। उन्होंने युवाओं के मुद्दे पर खास जोर दिया।
बिहार में नीतीश कुमार बार-बार नौकरी देने का दावा करते हैं और उनकी पार्टी का नारा भी है ‘रोजगार मतलब नीतीश सरकार’। लेकिन दूसरी और हकीकत यह है की होली और छठ के अवसरों पर बिहार की ट्रेनों में इतनी भीड़ रहती है की स्पेशल ट्रेनें चलाने के बावजूद लोग शौचालयों में सफर करने को मजबूर होते हैं। यह वही लोग होते हैं जो दूसरे राज्यों में छोटी-मोटी नौकरियों के लिए जाने को मजबूर होते हैं। कन्हैया कुमार अभी इसके बारे में और विस्तार से चर्चा कर सकते हैं और नीतीश सरकार पर हमलावर हो सकते हैं।
ऐसा लगता है कि पलायन और रोजगार के मुद्दे पर निकाली गई इस पदयात्रा का असर एनडीए पर हो रहा है। जदयू के राष्ट्रीय कार्यक्रम अध्यक्ष संजय झा ने कन्हैया की पदयात्रा के दिन ही यह आरोप लगाया कि सारा पलायन राजद और कांग्रेस की सरकार में हुआ है। दिलचस्प बात यह है कि अखबारों ने भी कन्हैया की पदयात्रा और संजय झा के इस बयान को आसपास जगह दी है।
अभी भारतीय जनता पार्टी की ओर से इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है लेकिन राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि कांग्रेस के मजबूत होने का मतलब होगा भाजपा के कोर वोटर्स यानी सवर्ण मतदाताओं में सेंध लगाना। बिहार में एक जमाने में कांग्रेस पार्टी सवर्णों की स्वाभाविक पार्टी मानी जाती थी।
ध्यान रहे कि इससे पहले कांग्रेस की ओर से जनसंपर्क का एक बड़ा अभियान सीमित तौर पर राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दौरान देखा गया था। कांग्रेस की राजनीति पर नजर रखने वालों का कहना है कि कन्हैया की इस पदयात्रा से उसका जनसंपर्क और युवाओं से संवाद बढ़ेगा जिसका उसे लाभ मिल सकता है।
याद रखने की बात यह है कि कन्हैया कुमार ने बेगूसराय से सीपीआई के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ा था और उस चुनाव में आरजेडी ने भी अपना उम्मीदवार दिया था क्यूंकि दोनों पार्टियों में इस मुद्दे पर समझौता नहीं हो पाया था। इस चुनाव में हार के बाद कन्हैया कुमार की चर्चा कम हो गई थी। उस समय से ही यह चर्चा चल रही है कि राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद और उनके पुत्र तेजस्वी यादव कन्हैया कुमार की सक्रियता से बहुत सहज नहीं हैं।
चूंकि एक बार फिर कन्हैया कुमार बिहार की राजनीति में सक्रिय हुए हैं तो लोग यह सवाल पूछ रहे हैं कि इसका महागठबंधन पर क्या असर होगा। यह सवाल भी पूछा जा रहा है कि कहीं कांग्रेस पार्टी दिल्ली की तरह अलग चुनाव लड़ने का तो फैसला नहीं करेगी?
हालांकि कांग्रेस और राजद के नेता महागठबंधन को मजबूत करने की बात ही कर रहे हैं लेकिन मामला विधानसभा में कांग्रेस को कितनी सीटें मिलें, इस पर उलझ सकता है। याद रखने की बात है कि 2020 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन ने कांग्रेस को 70 सीटें दी थीं लेकिन कांग्रेस सिर्फ 19 सीटों पर जीत पाई थी। तब यह कहा गया था कि तेजस्वी यादव कांग्रेस के खराब प्रदर्शन के कारण मुख्यमंत्री बनते बनते रह गए।
दूसरी ओर वामपंथी दलों का प्रदर्शन कांग्रेस से कहीं बेहतर था और खासकर सीपीआई-एमएल ने बेहतरीन स्ट्राइक रेट दी थी।
ऐसे में कांग्रेस एक तरफ अपने लिए कम से कम 70 या उससे अधिक सीट की मांग करेगी तो दूसरी ओर राजद के लिए वामपंथी दलों की सीट बढ़ाने का भी दबाव होगा। अभी तक महागठबंधन में शामिल मानी जा रही विकासशील इंसान पार्टी के मुकेश सहनी भी अपने लिए 60 सीटों की मांग कर चुके हैं। अगर मुकेश सहनी को भी कुछ सीटें दी जाएं तो महागठबंधन में रहते हुए राजद को या तो अपनी या कांग्रेस की सीटें कम करनी पड़ेंगी।
फिलहाल कांग्रेस का एक खेमा हर हाल में अधिक सीटों की मांग कर रहा है और ऐसा लगता है कि वह इस बात के लिए भी तैयार है कि अगर महागठबंधन को छोड़ना पड़े तो कांग्रेस छोड़ दे। दूसरी तरफ कांग्रेस का ही एक वर्ग ऐसा भी है जो हर हाल में राजद के साथ गठबंधन बनाए रखना चाहता है क्योंकि उसे लगता है कि राजद से अलग हटकर भारतीय जनता पार्टी और नीतीश कुमार को हराना संभव नहीं है।
ऐसे में कांग्रेस के पास दो विकल्प हैं; या तो वह अपनी मजबूती के लिए महागठबंधन को छोड़े या भारतीय जनता पार्टी को सत्ता में दोबारा आने से रोकने के लिए महागठबंधन में बनी रहे। फिलहाल लगभग सब लोग यह मानते हैं कि बिहार में कोई पार्टी अकेले अपने दम पर सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है। ऐसे में राजद भी नहीं चाहेगा कि कांग्रेस महागठबंधन से अलग हो लेकिन कन्हैया कुमार की पदयात्रा से उत्साहित होकर अगर कांग्रेस ज्यादा सीटें मांगेगी तो लालू प्रसाद और तेजस्वी लिए समन्वय बनाना बहुत मुश्किल हो सकता है।