गजवा-ए- हिंद : योगी की ध्रुवीकरण की एक और कोशिश नाकाम?
उत्तर प्रदेश में पहले दो चरण का मतदान हो चुका है। इस दौरान चुनाव में बीजेपी ने सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने की पुरजोर कोशिश की लेकिन वो कामयाब होती नहीं हो पाई। दूसरे चरण के मतदान से एक दिन पहले यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ‘गज़वा-ए-हिंद’, ‘तालिबानी सोच’ और ‘शरीयत बनाम संविधान’ जैसे मुद्दे उठाकर ध्रुवीकरण की एक और कोशिश की।
मतदान के दिन तमाम टीवी चैनलों पर उनका इंटरव्यू चला। इसमें योगी ने ‘अस्सी बनाम बीस’ की लड़ाई वाले अपने पसंदीदा एजेंडे को फिर से आगे बढ़ाने की कोशिश की। लेकिन सफाई के साथ। इन तमाम कोशिशों के बावजूद मतदान पर इन मुद्दों का कोई असर नहीं दिखा।
दरअसल पहले दो चरणों का मतदान बीजेपी के लिए अपनी सत्ता बचाने के हिसाब से बहुत महत्वपूर्ण था। दोनों चरणों में कुल 113 विधानसभा सीटों पर मतदान हुआ है। पिछले चुनाव में बीजेपी ने इनमें से 91 सीटें जीती थी। दो चरणों में जिन 20 ज़िलों में मतदान हुआ है उनमें से ज्यादातर मुसलिम बहुल हैं।
इन इलाकों में वो ज़िले भी जहां जाट और मुसलमानों का समीकरण बहुत मज़बूत है। किसान आंदोलन की वजह से यह समीकरण फिर से जिताऊ हो गया है। इनमें से ज़्यादातर सीटों पर पहले चरम में मतदान हुआ। बीजेपी सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के ज़रिए की इस समीकरण को तोड़ना चाहती थी, लेकिन इसमे उसे कामयाबी मिलती नहीं दिख रही। दूसरे चरण में भी यही टेंड जारी रहा।
दूसरे चरण में भी पहले चरण की तरह पिछले चुनाव के मुक़ाबले लगभग तीन प्रतिशत कम मतदान हुआ है। लेकिन ख़ास बात यह है कि मुसलिम इलाक़ों में मतदान को लेकर उत्साह देखा गया।
क्या बोले योगी आदित्यनाथ?
दूसरे चरण के मतदान से पहले यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रविवार की शाम ट्विटर पर लिखा, "गजवा-ए-हिन्द' का सपना देखने वाले 'तालिबानी सोच' के 'मजहबी उन्मादी' यह बात गांठ बांध लें... वो रहें या न रहें...भारत शरीयत के हिसाब से नहीं, संविधान के हिसाब से ही चलेगा. जय श्री राम!"
सोमवार को सुबह अपने इंटरव्यू में योगी आदित्यनाथ ने एक बार फिर ‘अस्सी बनाम बीस’ प्रतिशत की लड़ाई के अपने एजेंडे को आगे बढ़ाया। लेकिन इस बार वो सफाई देते दिखे। उन्होंने कहा था कि चुनाव में उनकी सरकार के कामकाज को पसंद करने वाली प्रदेश की अस्सी प्रतिशत जनता उनके साथ है और उन्हें वोट देगी। इनमें सब जाति और धर्मों के लोग शामिल हैं। हर मामले में विरोध करने वाले बीस प्रतिशत लोग हमेशा उनके खिलाफ रहते हैं वो उनके उनके खिलाफ ही वोट करेंगे।
ओवैसी को क्या जवाब दिया योगी ने?
माना जा रहा है कि योगी ने शरीयत और ‘गजवा-ए-हिंद’ जैसे मुद्दे उठा कर असदुद्दीन ओवैसी को जवाब दिया है। ओवैसी ने भी शनिवार को हिजाब का मुद्दा उठाते हुए अपनी एक चुनावी रैली में कहा था कि हिजाब पहनना मुसलिम महिलाओं का हक़ है और एक दिन इस देश में हिजाब पहनने वाली लड़की प्रधानमंत्री बनेगी।
बाद में उन्होंने अपने भाषण की ये वीडियो क्लिप ट्वीटर पर साझा करते हुए लिखा था, ‘इंशाल्लाह.’ अपने भाषण में ओवैसी कहते दिख रहे हैं, "एक बच्ची अगर यह फैसला करती है कि मैं हिजाब पहनूंगी तो अब्बा-अम्मी भी बोलेंगे, बेटा पहन तुझे कौन रोकता है। देखेंगे इंशा अल्लाह। हिजाब पहनेंगे, कॉलेज जाएंगे, डॉक्टर भी बनेंगे, कलेक्टर भी बनेंगे, एसडीएम भी बनेंगे, बिजनेसमैन भी बनेंगे और एक दिन याद रखना...शायद मैं जिंदा नहीं रहूंगा। एक दिन देखना एक बच्ची हिजाब पहनकर प्रधानमंत्री बनेगी।"
ओवैसी और बीजेपी की जुगलबंदी
इस बयान के ज़रिए ओवैसी मुसलमानों को शरीयत के मुताबिक जीने के संवैधानिक हक़ की बात कह रहे हैं। साथ उन्होंने हिजाब वाली लड़की के प्रधानमंत्री बनने की भविष्यवाणी करके ये बताने और जताने की कोशिश की है कि एक दिन भारत पर मुसलमानों का शासन होगा। ओवैसी यूपी में एक साल से मुसलमानों को एकजुट होकर अपने वोट की ताक़त से उपमुख्यमंत्री और मुख्यमंत्री का पद हासिल करने का सब्ज़बाग दिखा रहे हैं। अब उन्होंने हिजाब पहनने वाली एक लड़की के प्रधानमंत्री बनने का बात की है।
कुछ दिन पहले गृहमंत्री अमित शाह ने अपने कोर वोटर्स को अपने साथ जोड़े रखने के लिए सपा की सरकार बनने की स्थिति में लखनऊ के सचिवालय पर आज़म खान के कब्ज़े का डर दिखाया था। अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि अखिलेश यादव आज़म खान को जेल से बाहर आने देना चाहते। उन्हें डर है कि कहीं वो उनकी पार्टी पर क़ब्जा न कर लें।
ओवैसी का प्रधानमंत्री पद पर हिजाबी लड़की को बैठाने वाला बयान भला योगी कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं? ओवैसी और बीजेपी की ये जुगलबंदी चुनाव में ध्रुवीकरण की ही कोशिश है।
पहले भी की थी ध्रुवीकरण की कोशिश
पहले चरण के मतदान से पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कैराना से सपा-रालोद गठबंधन के उम्मीदवार नाहीद हसन को लेकर ‘गर्मी निकालने’ और ‘मई-जून में यूपी के शिमला बनाने’ जैसे बयान दिए थे। लेकिन जयंत चौधरी ने इसका जवाब दिया था कि हम जाट तो पैदा ही गरम होते हैं, हमारी गर्मी आप क्या निकालोगे? आप तो ठंड से बचने के लिए कंबल लपेटकर अपने मठ में शरण ले लेलो। योगी का मकसद मुससलमानों को उकसाने का था। लेकिन मुसलमानों की तरफ फेंका गया तीर जंयत और अखिलेश ने अपने सीने पर ले लिया। अखिलेश ने इसका जवाब दिया कि वो सत्ता में आए तो निकालेंगे और हम सत्ता में आने पर भर्ती निकालेंगे। अब अखिलेश हर रैली में गर्मी निकालने के बदले भर्ती निकालने की बात कर रहे हैं। ये मुद्दा बेरोजगारी से परेशान नौजवानों को खूब लुभा रहा है।
ओवैसी की कोशिशें भी रहीं नाकाम
चुनाव में ध्रुवीकरण के सहारे मुसलमानों को वोट पाने की ओवैसी की कोशिशें भी नाकाम ही दिख रही हैं। पहले चरण के मतदान से ठीक पहले ओवैसी उत्तर प्रदेश में हिजाब का मुद्दा उठा कर इसे खूब भुनाने की कोशिश की थी। लेकिन उनकी तमाम कोशिशों के बावजूद मुसलिम बहुल इलाकों में उनकी पार्टी के हक़ में वोट गिरता हुआ नहीं दिखा।
अपनी कई सभाओं में असदुद्दीन ओवैसी ने हिजाब की हक़ की लड़ाई का प्रतीक बन चुकी मुस्कान खान से हुई उनकी टेलीफोन पर बातचीत का ख़ूब ज़िक्र किया। उन्होंने मुस्कान को शेरनी तक बताया। अब उन्होंने यहां तक कह दिया कि एक दिन हिजाब पहने वाली लड़की देश की प्रधानमंत्री बनेगी। बीजेपी को भी उम्मीद थी कि उत्तर प्रदेश में हिजाब का मुद्दा गरमाया तो शायद इससे उसे फायदा होगा। लेकिन ऐसा होता हुआ नहीं दिख रहा। दो चरणों के मतदान में ओवैसी के फुलाए गुब्बारे की हवा निकल गई लगती है।
क्या है गजवा-ए-हिंद?
गजवा-ए-हिंद पुराना शब्द है। इसमें ‘गजवा’ का मतलब उस जंग से था, जो इस्लाम के विस्तार के लिए लड़ी जाती थी। यानी, ‘गजवा-ए-हिन्द’ के मायने ऐसी जंग से हैं, जिसके जरिए भारतीय उपमहाद्वीप के लोगों को इस्लाम में शामिल किया जा सके। जानकार बताते हैं कि जब इस्लाम को भारत वर्ष में विस्तार देने की कोशिश हुई थी, तब इस शब्द का इस्तेमाल हुआ था। इसे लेकर कुछ हदीसे भी हैं। लेकिन वर्तमान में इसका कोई महत्व नहीं है।
उत्तर प्रदेश में या देश में कभी भी किसी मुसलिम संगठन की तरफ से गजवा-ए-हिंद की बात नहीं की गई है। ऐसे में सवाल उठता है कि योगी का यह बयान किन लोगों को संबोधित है? दूसरे चरण में जिन सीटों पर मतदान हुआ, वहां के मतदाताओं ने इन बयानों को गंभीरता से नहीं लिया। लिहाज़ा इनका असर चुनाव पर नहीं पड़ा है।
क्या है शरीयत?
अगर धर्मनिरपेक्ष देश है। यहां सरकार का कोई धर्म नहीं है लेकिन सरकार नागरिकों के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करती। देश के सभी नागरिकों को संविधान के मुताबिक अपनी अपनी धार्मिक आस्था और धार्मिक परंपराओं के मुताबिक ज़िंदगी गुजारने की छूट है। योगी आदित्यनाथ का यह कहना किसी के गले नहीं उतर रहा कि देश शरीयत से नहीं बल्कि संविधान से चलेगा। लोग कह रहे हैं कि देश के संविधान से ही चल रहा है। शरीयत पर तो सिर्फ़ मुसलमान अमल करते हैं। ये अधिकार उन्हें संविधान ने दिया है।
जैसे हिंदू अपनी धार्मिक आस्था और मान्यताओं के हिसाब से चलते हैं। उसी तरह मुसलिम समुदाय भी अपनी आस्था और परंपराओं के हिसाब से चलता है।
1937 में ब्रिटिश संसद में शरीयत एप्लीकेशन एक्ट पास हुआ था। उसके तहत मुसलमान शरीयत के हिसाब से अपनी जिंदगी गुजार सकते है। शादी, तलाक़, ख़ुला, विरासत यानि पैतृक संपत्ति का बंटवारा और बच्चा गोद लेने जैसे मामलों में मुसलमान शरीयत पर अमल करते हैं।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि पहले और दूसरे चरण के मतदान में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिशें पूरी तरह नाकाम होती दिख रही हैं। तमाम टीवी चैनलों पर देखा गया है कि मतदाता बेहतर शिक्षा, और सस्ती स्वास्थ्य सेवाओं, बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर वोट डाल रहे हैं। रोज़गार और सरकारी नौकरियों मे भर्ती एक बड़ा मुद्दा है। लोगों के लिए जिंदगी को बेहतर बनाने वाले मुद्दे अहम हैं।
वहीं सपा गठबंधन जीत के लिए जातीय समीकरणों पर सोशल इंजीनियरिंग करता दिख रह है। बीजेपी इस बार भी धार्मिक रूप से भावनात्मक मुद्दों के सहारे चुनावी वैतरणी पार करना चाहती है। लेकिन इस बार इन मुद्दों का असर बेहद कम नज़र आ रहा है।