बीजेपी ने येदियुरप्पा को संसदीय बोर्ड में क्यों शामिल किया?
राजनीति से संन्यास लेने का संकेत दे चुके कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा को बीजेपी ने संसदीय बोर्ड में जगह दी है। ऐसा होना आश्चर्यजनक ही है क्योंकि येदियुरप्पा की उम्र 79 साल हो चुकी है और जब चार बार मुख्यमंत्री बन चुके शिवराज सिंह चौहान, पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को संसदीय बोर्ड जैसी ताकतवर संस्था में जगह नहीं मिली, उस वक्त में येदियुरप्पा को बोर्ड में जगह दी गई है।
येदियुरप्पा ने पिछले महीने ही एलान किया था कि वह अगला विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे। इसके बाद यह माना जा रहा था कि दक्षिण में बीजेपी के इस सबसे बड़े नेता की राजनीतिक पारी का अंत नजदीक है।
लेकिन बुधवार को अचानक उनका नाम जब बीजेपी के संसदीय बोर्ड में आया तो सबसे पहला सवाल यह खड़ा हुआ कि आखिर येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से हटाने के बाद संसदीय बोर्ड में क्यों लाया गया है।
नजदीक हैं विधानसभा चुनाव
कर्नाटक में अगले साल मई में विधानसभा चुनाव होने हैं। इस लिहाज से चुनाव में ज्यादा वक्त नहीं बचा है। कर्नाटक का जो सियासी माहौल है उसमें बीजेपी को शायद यह ज्यादा उम्मीद नहीं है कि वह येदियुरप्पा के बिना चुनाव जीत पाएगी। दक्षिण में कर्नाटक ही एकमात्र ऐसा राज्य है जहां पर बीजेपी की सरकार है।
लंबी मशक्कत के बाद बीजेपी आलाकमान ने जुलाई 2021 में येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री के पद से हटाया था और उनके करीबी बसवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाया था। लेकिन बोम्मई के कार्यकाल में हिजाब, हलाल, हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच में सांप्रदायिक झड़पें होने की वजह से राज्य का माहौल तनावपूर्ण है। ऐसे में बीजेपी जानती है कि कर्नाटक में इस बड़े नेता के बिना चुनाव जीत पाना संभव नहीं है।
संसदीय बोर्ड में चुने जाने के बाद येदियुरप्पा ने एनडीटीवी से बातचीत में कहा कि बीजेपी अगले विधानसभा चुनाव में 101 फीसद गारंटी के साथ सत्ता में वापसी करेगी। उन्होंने कहा कि वह बीजेपी को दक्षिण के अन्य राज्यों में भी मजबूत करने का काम करेंगे।
इस साल मई में बीजेपी ने येदियुरप्पा के बेटे वाई. विजयेंद्र को एमएलसी का टिकट भी नहीं दिया था। कर्नाटक की सियासत में कहा जाता है कि येदियुरप्पा अपनी सियासी विरासत विजयेंद्र को सौंपना चाहते हैं। बीजेपी आलाकमान इस बात को लेकर सतर्क था कि येदियुरप्पा ऐसा बिल्कुल महसूस न करें कि उन्हें कर्नाटक की राजनीति में साइडलाइन कर दिया गया है और उसे येदियुरप्पा की नाराजगी का डर निश्चित रूप से था।
लेकिन यहां यह सवाल मन में जरूर आता है कि येदियुरप्पा की राजनीतिक ताकत और राजनीतिक हैसियत क्या है और किस वजह से बीजेपी उन्हें संसदीय बोर्ड में लेकर आई है।
2013 का विधानसभा चुनाव
बीजेपी हाईकमान को याद है कि येदियुरप्पा के पार्टी छोड़ने के बाद 2013 के विधानसभा चुनाव में पार्टी चुनाव हार गई थी। येदियुरप्पा ने कर्नाटक जनता पक्ष नाम के राजनीतिक दल का गठन कर बीजेपी को राज्य की सत्ता में आने से रोक दिया था। तब बीजेपी 2008 में मिली 110 सीटों के मुकाबले 2013 में 40 सीटों पर सिमट गयी थी। इससे कर्नाटक में येदियुरप्पा के असर को समझा जा सकता है।
इसके बाद बीजेपी को उन्हें फिर से पार्टी में शामिल करना पड़ा था और सत्ता में आने पर उन्हें मुख्यमंत्री भी बनाया गया था। कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस की सरकार गिराने और बीजेपी की सरकार बनाने का श्रेय येदियुरप्पा को ही जाता है।
लिंगायत समुदाय का असर
येदियुरप्पा लिंगायत समुदाय से आते हैं। कर्नाटक में लिंगायत समुदाय की आबादी 17 फ़ीसदी है। 224 सीटों वाले कर्नाटक में इस समुदाय का असर 90-100 विधानसभा सीटों पर है। कहा जाता है कि येदियुरप्पा की वजह से ही लिंगायत समुदाय के ज़्यादातर लोग बीजेपी का समर्थन करते हैं। लिंगायत समुदाय के सभी प्रमुख मठाधीश और धार्मिक-आध्यात्मिक गुरु भी येदियुरप्पा का खुलकर समर्थन करते हैं।
येदियुरप्पा कर्नाटक में न सिर्फ बीजेपी के सबसे कद्दावर नेता हैं बल्कि पूरे राज्य में वे सबसे लोकप्रिय हैं। कर्नाटक की राजनीति में वह पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा के सामने खड़े होते हैं। येदियुरप्पा किसान नेता भी हैं और किसानों के बीच भी उनका आधार है।
निश्चित रूप से बीएस येदियुरप्पा कर्नाटक में बीजेपी की सियासत के सबसे बड़े नेता हैं। बीजेपी को अगले चुनाव में अगर कर्नाटक की सत्ता में वापसी करनी है तो उसे येदियुरप्पा को मनाए रखना बेहद जरूरी है। इसे समझते हुए ही बीजेपी आलाकमान ने उन्हें संसदीय बोर्ड में शामिल किया है।