इस साल के नोबेल शांति पुरस्कार से हथियारबंद संघर्ष और लड़ाई के दौरान औरतों पर होने वाली यौन हिंसा की ओर सबका ध्यान गया है। इराक़ी युवती नादिया मुराद और कांगो के डॉक्टर डेनिस मकवेगे को इस पुरस्कार से नवाज़ा गया है। इन्हें सशस्त्र संघर्ष के दौरान यौन हिंसा की बात सबके सामने लाने के लिए यह पुरस्कार दिया गया है।
आंखों के सामने मां का क़त्ल
सिर्फ़ 23 साल की नादिया मुराद 15 अगस्त 2014 का वह दिन कभी नहीं भूल सकती। आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट के लड़ाकों ने उत्तरी इराक़ के यज़ीदी बहुल गांव कोचो पर हमला बोल कर 312 लोगों को मौत के घाट उतार दिया। बुजुर्ग महिलाओं को भी नहीं बख्शा गया। नादिया की आंखों के सामने उसके छह भाइयों और मां की हत्या कर दी गई।
लेकिन, गांव की सभी जवान औरतों और बच्चियों को बसों में भर कर आईएस के मुख्यालय मोसुल ला जाया गया। वहां सभी लड़ाके इस बात पर लड़ रहे थे कि कौन किस युवती को अपने साथ ले जाएगा। नादिया ने बाद में एक टेलीविज़न चैनल को कहा था, ‘सभी लड़ाके लूट का माल हथियाने के लिए आपस में भिड़ रहे थे। मेरे पास एक बहुत ही लंबा तगड़ा दैत्य की तरह दिखने वाला आदमी आया, मैंने हाथ जोड़ कर उसके साथ जाने से इनकार कर दिया तो उसने मुझे बुरी तरह पीटा। मैंने एक छोटे क़द के लड़ाके से गुज़ारिश की कि वही मुझे अपने साथ ले चले।’
इक्कीस साल की युवती नादिया मुराद के साथ कई लोगों ने बारी बारी से बलात्कार किया, उसे कई बार बतौर सेक्स स्लेव ग़ुलामों के बाज़ार मे बेचा गया। भागने की कोशिश नाक़ाम रहने पर पूरी तरह निर्वस्त्र कर एक कमरे में बंद कर दिया गया। वहां फिर उसका सामूहिक बलात्कार हुआ।
नादिया ने मीडिया को विस्तार से बताया कि किस तरह इस्लामिक स्टेट यज़ीदियों का नस्लीय सफ़ाया कर रहा है। वह खुल कर सामने आईं और पूरी दुनिया को बताया कि उसके साथ क्या क्या हुआ था। वह जिस पृष्ठभूमि से आती है, वहां इस तरह की बातें करना मुश्किल है। पर नादिया ने यह हिम्मत दिखाई।
आईसीसी ने सुनी नादिया की बात
यह नादिया के साहस का ही नतीज़ा है कि संयुक्त राष्ट्र ने यजीदियों पर होने वाले अपराधों की जांच का काम इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ क्राइम (आईसीसी) को सौंपा। आईसीसी ने नादिया को सुनवाई के लिए बुलाया था। इस्लामिक स्टेट का इराक़ से लगभग सफ़ाया हो चुका है और यज़ीदी समुदाय अब ख़ौफ़ से बाहर है। नादिया को यूनेस्को (यूनाइटेड नेशन कौंसिल ऑफ़ सोशल, इकनॉमिक एंड कल्चरल ऑर्गनाइजेशन) का गुडविल अंबेसडर भी बनाया गया था। नोबेल पुरस्कार घोषणा के बाद मुराद ने कहा कि यह पुरस्कार उन महिलाओं को समर्पित है, जो यौन हिंसा का शिकार हुई हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अभी भी कुछ जगहों पर यह चल रहा है। मेसोपोटामिया के पुराने रिवाज़ों को मानने वाले यज़ीदी किसी धर्मग्रंथ पर नहीं चलते। वे एक मयूर के रूप में आए देवदूत को मानते हैं, जिससे ख़ुदा नाराज़ हो गए थे। इस्लामिक स्टेट इस देवदूत को मानने को बुतपरस्ती कहते हैं और यज़ीदियों के ख़िलाफ़ हैं।