हॉन्ग कॉन्ग में प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच ज़बरदस्त झड़प हुई है। पुलिस ने लाठी चार्ज करने के बाद आँसू गैस के गोल छोड़े और रबर की गोलियाँ चलाई हैं। मुख्य सड़क पर चल रही झड़प में कम से कम 22 प्रदर्शनकारी घायल हुए हैं। हॉन्ग कॉन्ग के लोगों पर चीन की मुख्य सरज़मीन पर मुक़दमा चलाने से जुड़े प्रस्तावित क़ानून के ख़िलाफ़ यह आंदोलन चल रहा है।
बीते रविवार से चल रहा यह प्रदर्शन हिंसक हो गया। स्टेट असेंब्ली के बाहर की मुख्य सड़क पर सैकड़ों लोग जमा थे। वे स्थानीय प्रशासन के ख़िलाफ़ नारे लगा रहे थे।
ब्रिटेन ने शांति की अपील की
विरोध प्रदर्शन को देखते हुए हॉन्ग कॉन्ग की विधायिका ने प्रस्तावित क़ानून पर बहस फ़िलहाल रोक दी है। प्रशासन की मुख्य कार्यकारी कैरी लिम ने इससे इनकार किया है कि उन्होंने बीजिंग की चीन सरकार के सामने घुटने टेक दिए हैं।
ब्रिटेन के विदेश मंत्री जेरेमी हंट ने हॉन्ग कॉन्ग के नेताओं से इस विषय पर चिंतन करने की सलाह दी है। उन्होंने ट्वीट कर कहा है कि ब्रिटेन-चीन साझा घोषणापत्र में आज़ादी, अधिकार, स्वायत्तता की गारंटी की गई थी और वह बहुत ही अहम है।
क्या है मामला?
मालूम हो, मूल रूप से चीन का हिस्सा रहे हॉन्ग कॉन्ग को ब्रिटेन ने अफ़ीम युद्ध के दौरान उससे छीन लिया था। इसके बाद हुए समझौते में यह 150 साल के लिए ब्रिटेन को लीज़ पर दे दिया गया था। इस क़रार की मियाद 1997 में ख़त्म हो गई। ब्रिटेन ने चीन को यह हिस्सा लौटा तो दिया, पर दोनों देशों के बीच हुए समझौते में यह तय हुआ था कि 50 साल तक हॉन्ग कॉन्ग चीन का हिस्सा रहते हुए भी स्वायत्त रहेगा।
लोगों का कहना है कि इस तरह चीन सरकार धीरे धीरे हॉन्ग कॉन्ग पर अपनी पकड़ बना रही है। इस तरह मूल मक़सद चीन के किसी तरह के हस्तक्षेप के ख़िलाफ़ गुस्सा जताना है ताकि बीजिंग भविष्य में किसी तरह की कोई कार्रवाई हॉन्ग कॉन्ग के विरुद्धन करे।
अब तक यह व्यवस्था थी कि न्यायपालिका और क़ानून व्यवस्था पूरी तरह हॉन्ग कॉन्ग के पास था और उसमें बीजिंग का कोई हस्तक्षेप नहीं था। हॉन्ग कॉन्ग की विधायिका ने एक विधेयक रखा है, जिसमें यह प्रावधान है कि किसी मामले में किसी संदिग्ध को हॉन्ग कॉन्ग से प्रत्यावर्तित कर मुख्य सरज़मीन पर भेजा जा सकता है, जहाँ उस पर मुक़दमा चलाया जाए। हॉन्ग कॉन्ग में इसका ज़बरदस्त विरोध हो रहा है।
सेना नहीं भेजेगा चीन
चीन सरकार ने इससे इनकार किया है। बीजिंग ने इन ख़बरों को भी बेबुनियाद बताया है जिसमें कहा गया है कि चीन अपनी सेना हॉन्ग कॉन्ग भेज रहा है।
हॉन्ग कॉन्ग पिछले तीन-चार साल से लगातार इस तरह की घटनाओं के लिए चर्चा में है। इसके पहले वहाँ विधायिका के सदस्य चुने जाने से जुड़े नियमों में कुछ बदलाव करने का ज़बरदस्त विरोध हुआ था। स्थानीय लोगों ने छाते लेकर प्रदर्शन किया था, जिस वजह से इसे छाता आंदोलन भी कहा गया था। इस आंदोलन की अगुआई छात्र कर रहे थे।
मक़सद क्या है?
इस बार भी आंदोलन की अगुआई छात्र ही कर रहे हैं। बीते रविवार को शुरू हुए विरोध प्रदर्शन में एक अनुमान के मुताबिक़ लगभग पाँच लाख लोगों ने भाग लिया था। इसे बीजिंग के थ्यानअनमन चौक पर 1989 में हुए विरोध प्रदर्शन के बाद चीन का सबसे बड़ा विरोध प्रदर्शन माना जा रहा है।
लेकिन हॉन्ग कॉन्ग के छात्रों ने पिछली बार कहा था कि वह चीनी व्यवस्था को उखाड़ फेंकने की कोई कोशिश नहीं कर रहे हैं। वे सिर्फ़ अपनी समस्याओं को लेकर उत्तेजित हैं।
बुधवार को हॉन्ग कॉन्ग की मुख्य सड़क से भीड़ को हटा दिया गया, कई लोगों को स्थानीय पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया। पर इसकी पूरी संभावना है कि अगले दिन यहाँ फिर विरोध प्रदर्शन शुरू हो जाए। एक बात साफ़ है कि हॉन्ग कॉन्ग के लोग अपनी अलग पहचान और स्वायत्तता का आभास चीन को बीच-बीच में देते रहते हैं। इस आंदोलन का क्या नतीजा होगा, अभी कहना जल्दबाजी होगी, पर यह साफ़ है कि अभी भी यहां आज़ादी के ख़यालात बचे हुए हैं।