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यूके में भी यूएस की तरह अवैध भारतीय प्रवासियों की तलाश में छापे क्यों?

यूके में भी यूएस की तरह अवैध भारतीय प्रवासियों की तलाश में छापे क्यों?

अमेरिका के बाद अब ब्रिटेन में भी अवैध प्रवासियों की धरपकड़ शुरू हो गई है। छोटे-छोटे स्टोरों, भारतीय रेस्टोरेंट में बड़े पैमाने पर भारतीय वहां काम कर रहे हैं। इनमें अवैध भारतीयों की तादाद ज्यादा है। लेकिन ये छापे क्यों मारे जा रहे हैं, इसके कारण जानना भी जरूरी है।

अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की तर्ज पर ब्रिटेन की लेबर सरकार ने अवैध प्रवासियों पर बड़े पैमाने पर कार्रवाई शुरू की है। "यूके-वाइड ब्लिट्ज़" नामक अभियान ने भारतीय रेस्तरां, नेल सैलून, तमाम स्टोरों और कार वॉश जैसे कारोबार को टारगेट किया है। इन धंधों में बड़े पैमाने पर भारतीय और पाकिस्तानी नागरिक काम कर रहे हैं। हाल ही में यूएस से 104 अवैध भारतीय नागरिकों को हथकड़ी-बेड़ी लगाकर डिपोर्ट किया गया था। वो मुद्दा अभी तक गर्म है।

जनवरी 2025 से अब तक, होम ऑफिस ने 828 बिजनेस परिसरों पर छापेमारी की, जो पिछले वर्ष की तुलना में 48% अधिक है, और 609 गिरफ्तारियां की गईं, जो 73% की बढ़ोतरी बताती हैं। इन कार्रवाइयों में खाद्य, पेय और तंबाकू उद्योग, विशेष रूप से रेस्तरां, टेकअवे और कैफे शामिल है। उत्तरी इंग्लैंड के हम्बरसाइड में एक भारतीय रेस्तरां पर की गई छापेमारी में सात लोगों को गिरफ्तार किया गया और चार को हिरासत में लिया गया। 

गृह सचिव यवेट कूपर ने कहा, "अवैध प्रवासी नियमों का सम्मान किया जाना चाहिए। बहुत लंबे समय से, नौकरी देने वाले अवैध प्रवासियों का शोषण कर रहे हैं, और कई लोग बिना किसी प्रवर्तन कार्रवाई के अवैध रूप से काम कर रहे हैं।" उन्होंने यह भी कहा कि यही आदत लोगों को छोटी-छोटी नावों से चैनल पार करने के लिए प्रेरित करती है, जिससे कमजोर लोगों का शोषण, आव्रजन प्रणाली का दुरुपयोग और हमारी अर्थव्यवस्था को नुकसान होता है। 

प्रधानमंत्री कीर स्टारमर की सरकार ने बॉर्डर सिक्योरिटी, असाइलम और इमिग्रेशन बिल पेश किया है, जिसका मकसद मानव तस्करी में शामिल आपराधिक गिरोहों के खिलाफ कानून प्रवर्तन एजेंसियों को अधिक ताकत देना है। इस बिल के तहत, अवैध रूप से यूके में प्रवेश करने वालों के मोबाइल फोन को जब्त करने जैसी शक्तियां शामिल हैं। सरकार ने जुलाई 2024 से अब तक लगभग 19,000 लोगों को डिपोर्ट किया है, जिसमें गैर कानूनी रिफ्यूजी, विदेशी अपराधी और आव्रजन नियमों का उल्लंघन करने वाले शामिल हैं। हालांकि, इन कार्रवाइयों की आलोचना भी हो रही है, जिसमें कहा जा रहा है कि यह प्रवासियों के प्रति "दुश्मनी वाला माहौल" बनाने जैसा है।

यूएस, यूके सहित तमाम देश अब अवैध प्रवासियों के खिलाफ खुलकर कार्रवाई करने में जुट गये हैं। ऐसा लगता है कि वे अभी तक ट्रम्प प्रशासन द्वारा लिये गये एक्शन का इंतजार कर रहे थे। अब कार्रवाई के लिए उसी नीति को दोहरा दिया गया है। लेकिन उन कारणों को समझना जरूरी है, जिस वजह से यूएस के बाद यूके एक्शन में है। आगे कुछ पश्चिमी देश खासकर यूरोपीय देश इस तरह की कार्रवाई को अंजाम दे सकते हैं।

आप्रवासन के नियमों का उल्लंघनः अवैध प्रवासियों की समस्या का मूल कारण आप्रवासन के नियमों का उल्लंघन है। यूके और अन्य पश्चिमी देशों में आप्रवासन के कठोर नियम हैं, जिनका पालन करना जरूरी है। हालांकि, कई भारतीय प्रवासी इन नियमों का पालन किए बिना इन देशों में प्रवेश करते हैं या वीज़ा की समय सीमा पूरी होने के बाद भी रहते हैं। इससे इन देशों की आप्रवासन प्रणाली पर दबाव पड़ता है, जिससे सरकारें ऐसे लोगों को पहचानने और उनके खिलाफ कार्रवाई करने के लिए मजबूर हो जाती हैं।

आर्थिक बोझ

पश्चिमी देश आमतौर पर स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, आवास और सामाजिक सुरक्षा (सोशल सिक्युरिटी) जैसी सुविधाओं के लिए जाने जाते हैं। अवैध प्रवासी इन सुविधाओं का लाभ उठाते हैं, जिससे वहां के स्थानीय नागरिकों पर आर्थिक बोझ पड़ता है। यूके और अन्य देशों की सरकारें इस बोझ को कम करने के लिए अवैध प्रवासियों को पहचानने और उन्हें देश से बाहर करने की कोशिश कर रही हैं।

कानून और व्यवस्थाः अवैध प्रवासियों की उपस्थिति कानून और व्यवस्था के लिए खतरा पैदा कर सकती है। कई बार ये प्रवासी अवैध रूप से काम करते हैं, जिससे स्थानीय नागरिकों के लिए रोजगार के अवसर कम हो जाते हैं। इसके अलावा, कुछ अवैध प्रवासी अपराधिक गतिविधियों में शामिल हो जाते हैं, जिससे सामाजिक अशांति बढ़ती है। इसलिए, पश्चिमी देश अपने नागरिकों की सुरक्षा और व्यवस्था बनाए रखने के लिए अवैध प्रवासियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करते हैं।

राजनीतिक दबाव

पश्चिमी देशों में आप्रवासन एक राजनीतिक मुद्दा बन गया है। नागरिकों का मानना है कि अवैध प्रवासियों की बढ़ती संख्या उनके रोजगार, संसाधनों और सांस्कृतिक पहचान को प्रभावित करती है। इससे राजनीतिक दलों पर दबाव बढ़ता है कि वे इस मुद्दे को हल करें। बहुत सारे राजनीतिक दलों की सदस्यता भी अवैध प्रवासियों ने पा ली है। ऐसे में उन राजनीतिक दलों को उनके लिए बोलना पड़ता है। इनके विरोध में उस देश के कट्टर लोग खड़े हो जाते हैं जो अवैध प्रवासियों को बाहर निकालने के लिए आंदोलन करते हैं। यूके में ब्रेग्जिट के बाद आप्रवासन को लेकर राजनीतिक वातावरण और भी कड़ा हो गया है, जिससे अवैध प्रवासियों पर नज़र और भी तेज़ हो गई है।

भारतीय प्रवासियों की बढ़ती संख्याः भारतीय प्रवासियों की संख्या पिछले कुछ दशकों में यूएस-यूके सहित तमाम पश्चिमी देशों में काफी बढ़ी है। भारत से आने वाले प्रवासी आमतौर पर बेहतर रोजगार और शिक्षा की तलाश में होते हैं। हालांकि, कुछ लोग अवैध तरीकों से इन देशों में प्रवेश करते हैं या अपने वीज़ा की समय सीमा पूरी होने के बाद भी रहते हैं। इससे भारतीय प्रवासियों पर विशेष रूप से नज़र रखी जाती है।

ब्रिटेन की लेबर सरकार द्वारा अवैध प्रवासियों के खिलाफ की जा रही सख्त कार्रवाइयों की तुलना अमेरिका की ट्रम्प प्रशासन की नीतियों से की जा रही है। हाल ही में, अमेरिका ने 104 भारतीयों को निर्वासित किया, जिन पर वीज़ा अवधि से अधिक समय तक रुकने का आरोप था। इनमें से कई निर्वासित व्यक्तियों ने आरोप लगाया कि निर्वासन के दौरान उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया और उन्हें हथकड़ी- बेड़ी में जकड़कर भेजा गया। 

ब्रिटेन की वर्तमान नीति भी उसी दिशा में बढ़ती दिख रही हैं, जहां अवैध प्रवासियों और उन्हें रोजगार देने वालों के खिलाफ सख्त कदम उठाए जा रहे हैं। इससे भारतीय समुदाय में चिंता बढ़ रही है, क्योंकि भारतीय रेस्तरां और अन्य व्यवसायों पर की जा रही छापेमारी से उनकी रोटी-रोजी प्रभावित हो रही है।

(रिपोर्ट और संपादनः यूसुफ किरमानी)

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