ईरान की मुद्रा पिछले 6 महीनों में चार गुना गिर चुकी है। बेरोज़गारी 2% बढ़ गई है। कच्चे तेल का निर्यात आधा रह गया है। ज़रूरी चीज़ों के दाम आसमान छू रहे हैं। यह असर है अमरीका की ओर से ईरान पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों का।
अमरीका ने प्रतिबंधों की घोषणा मई में की थी। तब ईरान की मुद्रा रियाल मज़बूत थी। एक डॉलर में 30 हज़ार रियाल आते थे। ये प्रतिबंध 4 नवंबर से लागू हुए। तब एक डॉलर में 90 हज़ार रियाल आ रहे थे। लेकिन उसके बाद रियाल का अवमूल्यन और तेज़ी से हुआ। पिछले सप्ताह यह 1.20 लाख प्रति डॉलर तक गिर गया।
सरकारी आँकड़ों के अनुसार, बेरोज़गारी की दर पिछले साल 9 प्रतिशत थी लेकिन प्रतिबंधों की घोषणा होने के बाद बढ़कर 11 प्रतिशत हो गई है। इसी तरह कच्चे तेल का निर्यात 38 लाख बैरल प्रतिदिन से गिर कर 20 लाख बैरल प्रति बैरल रह गया है। चूँकि ईरान की लगभग 70 फीसदी आय कच्चे तेल से आती है, देश की अर्थव्यवस्था ख़तरे में है।
ईरान के पूर्व विदेश मंत्री डा. हुसैन अमीर अबदुल्ला हियान का आरोप है कि चूँकि अमरीका ईरान से सीधे लड़कर जीत नहीं सकता, इसलिए वह झूठे आरोपों के सहारे आर्थिक प्रतिबंध लगाकर उसकी अर्थव्यवस्था तबाह करना चाहता है।
वे कहते हैं कि ईरान के मुद्रा बाजार में अमरीकी एजेंट जानबूझकर रियाल का अवमूल्यन कर रहे हैं जिससे ईरान की अवाम परेशान होकर सरकार के ख़िलाफ़ विद्रोह कर दे। ये एजेंट डॉलर के बदले इस मूल्य पर रियाल ख़रीदने का वादा करते हैं। ऐसी अफ़वाहों से प्रभावित हो ईरानी नागरिक ऊँचे दाम पर डॉलर खरीद रहे हैं जिससे रियाल की क़ीमत गिरती जा रही है।
ईरानी संसद के अध्यक्ष के मौजूदा सलाहकार डॉ. हुसैन कहते हैं कि ईरान के ख़िलाफ़ प्रतिबंधों का 70 प्रतिशत असर सोशल मीडिया के तहत चलाए जा रहे अमरीका के मनोवैज्ञानिक युद्ध का हिस्सा है और केवल 30 फ़ीसद असर आर्थिक जगत पर पड़ रहा है। पिछले तीन महीनों के दौरान दक्षिण कोरिया ने ईरान से कच्चा तेल ख़रीदना एकदम बंद कर दिया है जबकि जापान ने आयात में 71 प्रतिशत और चीन ने 64 फ़ीसद कटौती की है। भारत ने फिलहाल कोई कटौती नहीं की है क्योंकि घरेलू बाजार में तेल के दाम पहले ही काफ़ी ज्यादा हैं।
आर्थिक प्रतिबंधों की वजह से ईरान का तेल निर्यात बुरी तरह गिरा है।
वहीं दूसरी ओर, अमेरिका और सऊदी अरब जैसे उसके सहयोगियों ने कच्चे तेल का उत्पादन बढ़ाकर पिछले कुछ महीनों के दौरान अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम 18 डॉलर प्रति बैरल तक गिरा दिए जिससे ईरान को होने वाली आय और भी कम हो जाए।
ईरान को बैंकों के स्विफ्ट सिस्टम से बाहर कर देने से वह विदेश में कोई भुगतान नहीं कर पा रहा है। इसीलिए आयात और निर्यात दोनों प्रभावित हो रहे हैं।
तेहरान विश्वविद्यालय में वैश्विक मामलों के जानकार प्रो. फौद इजादी कहते हैं कि अमरीका ईरान को अंतरराष्ट्रीय जगत में अछूत बनाने पर तुला है जबकि उसके पास कोई नाभिकीय हथियार नहीं हैं। लेकिन वह परमाणु हथियारों से लैस उत्तर कोरिया को पुचकारने में लगा है।
क्यों लगे हैं प्रतिबंध?
ईरान के परमाणु कार्यक्रम को रोकने के लिए जुलाई 2015 में ईरान ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा समिति के पाँच स्थायी सदस्यों - अमरीका, चीन, जापान, फ्रांस, ब्रिटेन और रूस के अलावा जर्मनी के साथ एक समझौता किया था। इस साल मई में अमरीका इस समझौते से बाहर निकल गया। राष्ट्रपति ट्रंप ने ईरान को न सिर्फ आर्थिक रूप से पंगु बनाने की चेतावनी दी बल्कि उसके साथ व्यापार करने वाले सभी देशों को भी।
क्या हैं प्रतिबंध?
7 अगस्त से शुरू हुए पहले चरण में अमरीका की मुद्रा खरीदने, रखने या विनिमय पर रोक, सोने और दूसरी बहुमूल्य धातुओं के विनिमय पर रोक लगा दी गई है। इसके अलावा गाड़ियों, हवाई जहाज़ों और उनके कल-पुर्जों की ख़रीद पर भी रोक लगा दी गई है। 4 नवंबर से लगे दूसरे चरण के प्रतिबंध में ईरान से कच्चे तेल और दूसरे पेट्रोलियम उत्पाद ख़रीदने पर रोक लगा दी गई है, हालाँकि भारत समेत 8 देशों को इससे छूट मिली हुई है।
- ईरान की यात्रा से हाल में लौटे अमर उजाला के राजनीतिक संपादक शरद गुप्ता से बातचीत पर आधारित