शेख हसीना वाजेद की अगुआई वाली आवामी लीग ने बांग्लादेश का आम चुनाव बड़े अंतर से जीत लिया है। लीग ने 300 सीटों वाले संसद में अब तक 281 सीटें जीत ली हैं। यह उसकी तीसरी लगातार जीत है। हिंसा और धाँधलियों के आरोप के बीच हुआ यह चुनाव इसलिए भी अहम है कि पहले से कमज़ोर विपक्ष अब बिल्कुल हाशिए पर आ खड़ा हुआ है। दिल्ली के लिए यह चुनाव इसलिए महत्वपूर्ण है कि शेख हसीना की सरकार ने बीते पाँच साल से अपनी सरज़मीन से भारत-विरोधी गतिविधियाँ नहीं होने दी है। यह समझा जाता है कि असम और पूर्वोत्तर के दसरे इलाक़ों में आतंकवादी गतिविधियाँ और कट्टरपंथी ताक़तों का उभार रुका रहेगा।
विपक्षी दलों के गठबंधन जातीयो ओक्यो फ्रंट के नेता कमाल हुसैन ने चुनाव को 'हास्यास्पद' क़रार देते हुए इसके नतीजों को सिरे से खारिज कर दिया है। उन्होंने चुनाव आयोग से माँग की है कि चुनाव को रद्द कर जल्द से जल्द निष्पक्ष कार्यवाहक सरकार की देखरेख फिर से चुनाव कराए जाँए।
हिंसक मतदान
सत्तारूढ़ दल आवामी लीग और मुख्य विपक्षी दल बांग्लादेश नैशनलिस्ट पार्टी के समर्थकों के बीच हुई झड़पों में 16 लोग मारे गए हैं। राजधानी ढाका में शाँतिपूर्ण मतदान हुए, पर गाँवों और दूर-दराज के इलाक़ों से मारपीट और हिंसा की ख़बरें आती रहीं। बीएनपी ने मतदान केंद्रों पर कब्जा कर लेने, मतपत्रों से भरे मतपेटियों के पहले से तैयार रखने और दूसरी तरह की धाँधलियाँ करने के आरोप आवामी लीग पर लगाए हैं। बीएनपी प्रवक्ता सैयद मोअज्जम हुसैन अलाल ने कहा है कि 300 सीटों पर हुए चुनाव में कम से कम 221 सीटों पर सत्तारूढ़ दल ने गड़बड़ियाँ की हैं।
बांग्लादेश के मुख्य विपक्षी दल बीएनपी का आरोप है कि उसके सात बड़े नेताओं को झूठे मुक़दमों में फँसा कर जेल भेज दिया गया और 17 लोगों को बेबुनियाद आधार पर चुनाव के लिए अयोग्य क़रार दिया गया। पूर्व प्रधानमंत्री ख़ालिदा ज़िया को 17 साल की जेल की सज़ा हो गई है।
आवामी लीग सरकार पर यह आरोप भी लगता रहा है कि उसने मुक्ति संग्राम के दौरान हुए युद्ध अपराध के नाम पर निर्दोष लोगों को फँसाया है या मामले को बढ़ा चढ़ा कर पेश किया है। यह सोची समझी रणनीति के तहत किया गया और इसके निशाने पर बीएनपी के नेता रहे। मुख्य विपक्षी दल के कई लोगों को जेल की सज़ा हुई है और कुछ लोगों को मौत की सज़ा भी दी गई है। इससे विपक्ष डरा और बिखरा हुआ है।
पूर्व प्रधानमंत्री बेग़म ख़ालिदा ज़िया 17 साल की जेल की सज़ा काट रही हैं।
देश के स्वतंत्रता संग्राम के अगुआ और पहले राष्ट्रपति मुज़ीब-उर-रहमान की बेटी शेख हसीना की इस बात के लिए तारीफ़ की जाती है कि उनके शासनकाल में देश में अच्छी आर्थिक प्रगति हुई है, शाँति बरक़रार रही है अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश की प्रतिष्ठा बढ़ी है। लाखों की तादाद में रोहिंग्या मुसलमानों को अपने यहां शरण देकर शेख हसीना अंतरराष्ट्रीय जगत में सुर्खियों में छा गईे और यूरोप समेत पूरी दुनिया में उनकी काफ़ी तारीफ़ की गई।
निरंकुश हसीना?
पर हसीना पर मुख्य आरोप यह लगता है कि वे निरंकुश प्रवृत्ति की हैं और उन्होंने विपक्ष को बुरी तरह कुचल दिया है। बीएनपी की सबसे बड़ी नेता और पूर्व प्रधानमंत्री ख़ालिदा ज़िया कई मामलों में कुल मिला कर 17 साल की जेल की सज़ा काट रही हैं। उनका बेटा ब्रिटेन में शरण लिए हुए है, उस पर कई तरह के भ्रष्टाचार के आरोप हैं और उसे वापस बांग्लादेश भेजने के लिए लंदन पर दबाव डाला जा सकता है। बीएनपी के कई बड़े नेता जेल मे हैं।
आवामी लीग और शेख हसीना पहले उदारवादी और लोकतांत्रिक विचारों की समझी जाती थीं। उनका मुक़ाबला बीएनपी से था, जिस पर कट्टरपंथी, उग्र इसलामी और दक्षिणपंथी ताक़तों को शरण देने के आरोप लगते रहते थे। लेकिन बीते पाँच साल में शेख हसीना की सरकार इस मामले में बुरी तरह नाकाम रही हैं।
शेख हसीना के शासन काल में ही एक के बाद एक कई उदारवादी ब्लॉगरों, पत्रकारों और लेखकों पर हमले हुए, कई लोगों की हत्याएं हुईं। इसी तरह अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों पर भी हमले हुए, निशाने पर ईसाई ऍर बौद्ध थे। पर सरकार ज़्यादा कुछ नहीं कर पाई।
कट्टरपंथ से समझौता?
चुनाव के कुछ हफ़्ते पहले शेख हसीना ने यह कह कर सबको चौंका दिया कि बड़ी तादाद में मदरसे खुलेंगे, उनके सर्टिफ़िकेट सरकारी नौकरियों के लिए मान्य होंगे और वे सऊदी अरब समेत किसी भी देश से खुले आम पैसे ले सकेंगे। उन पर कट्टरपंथी ताक़तों को बढ़ावा देने के आरोप लगे, हालाँकि कई विश्लेषक यह मानते हैं कि चुनाव के ऐन पहले कुछ लोगों को रिझाने की यह हसीना की चाल थी।
भारत का समीकरण
शेख हसीना के शासन काल मे भारत की चिंताएँ कम रहीं क्योंकि पूर्वोत्तर में गड़बड़ियाँ फैलाने और आतंकवादी गतिविधियाँ करने वालों को वहां किसी तरह का समर्थन नहीं मिला। इससे असम, त्रिपुरा और दूसरी जगहों पर सक्रिय अलगाववादी गुट कमज़ोर हुए। दोनों देशों के बीच का व्यापार फला-फूला और इसका बड़ा लाभ बांग्लादेश को मिला। वहां नौकरियों के मौके बने और लोगों की आमदनी बढी।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की ज़िद की वजह से दोनों देशों के बीच पानी के बँटवारे पर समझौता नहीं हो सका। इस मुद्दे पर शेख हसीना को हमेशा बचाव की मुद्रा ही अपनाना होता है क्योंकि उन पर भारत के प्रति नरम रवैया अपनाने का आरोप लगता रहता है। इस बार की जीत के बाद विदेश मामलों में यह उनकी प्राथमिकता होगी कि वे इस पर भारत सरकार से बात करें और समझौते पर मुहर लगाएं।