संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष डेनिस फ्रांसिस ने घोषणा की है कि वह इजराइल-फिलिस्तीनी संघर्ष पर विधानसभा के 10वें आपातकालीन विशेष सत्र को फिर से शुरू करने जा रहे हैं। महासभा का यह विशेष सत्र 26 अक्टूबर को बुलाया गया है। लेकिन संयुक्त राष्ट्र महासभा के सामने इस समय सबसे बड़ी चुनौती युद्ध रुकवाना और इजराइल की निन्दा कराना है। पूरी दुनिया में यूएन के औचित्य पर सवाल उठ रहे हैं।
महासभा के अध्यक्ष ने तमाम देशों के प्रतिनिधियों को इस संबंध में पत्र लिखा है। उनके मुताबिक उन्हें अरब समूह के अध्यक्ष और इस्लामिक सहयोग संगठन के अध्यक्ष, जॉर्डन और मॉरिटानिया के राजदूतों की ओर से 19 अक्टूबर को एक पत्र मिला था, जिसमें 10वें आपातकालीन विशेष सत्र को जल्द से जल्द फिर से शुरू करने का अनुरोध किया गया है।
उन्होंने कहा कि उन्हें निकारागुआ, रूस और सीरिया के प्रतिनिधियों के साथ-साथ बांग्लादेश, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, मालदीव, तिमोर-लेस्ते, वियतनाम और ब्रुनेई के प्रतिनिधियों से भी एक पत्र मिला है। जिसमें सत्र बुलाने की मांग की गई है।
फ्रांसिस ने कहा, "मैं गुरुवार, 26 अक्टूबर, 2023 को महासभा के 10वें आपातकालीन विशेष सत्र की 39वीं पूर्ण बैठक बुला रहा हूं।" आपातकालीन विशेष सत्र पहली बार अप्रैल 1997 में बुलाया गया था। विशेष सत्र आखिरी बार जून 2018 में फिर से शुरू किया गया था।
इजराइल-हमास युद्ध को लेकर अभी तक यूएन में कई तरह की बैठकें हो चुकी हैं लेकिन नतीजा शून्य है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक चीन और रूस के आग्रह पर बुलाई गई लेकिन इजराइल के खिलाफ प्रस्ताव को अमेरिका ने वीटो कर दिया। हर बैठक में अमेरिका इजराइल के समर्थन में खड़ा हो जाता है। ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी भी उसका समर्थन करते हैं।
पूरी दुनिया में यूएन के औचित्य को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। लोग सोशल मीडिया तक पर लिख रहे हैं कि आखिर संयुक्त राष्ट्र किस मर्ज की दवा है, जब ताकतवर देश उसकी कोई बात मानने को तैयार नहीं हैं। यूएन महासचिव अब तक कई बार गजा में युद्ध रोकने की अपील कर चुके हैं। यूएन ने मानवीय सहायता पहुंचने देने के लिए इजराइल से अपील की लेकिन इजराइल ने उसकी किसी भी अपील का जवाब नहीं दिया। यूएन ने अस्पतालों पर बमबारी के खिलाफ भी चेतावनी दी लेकिन उस चेतावनी को भी इजराइल ने गंभीरता से नहीं लिया।