हाँगकाँग आंदोलन : काला चश्मा, गैस मास्क और टेलीग्राम!

05:57 pm Jun 16, 2019 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

हाँगकाँग की मुख्य कार्यकारी कैरी लैम आख़िर विवादास्पद प्रत्यर्पण विधेयक को ठंडे बस्ते में डाल देने के लिए मजबूर हो गयीं, लेकिन आख़िर यह हुआ कैसे?

विधेयक के ख़िलाफ़ इतना बड़ा प्रदर्शन कैसे खड़ा किया गया? इसमें काले चश्मे, गैस मास्क, टेलीग्राम की क्या भूमिका थी? प्रदर्शनकारियों ने 2014 के अपने प्रदर्शन से क्या-क्या सबक़ सीख कर इस बार अपने प्रदर्शन को सफल बनाने के लिए क्या-क्या नये तरीक़े अपनाये, इसकी एक बड़ी दिलचस्प कहानी ‘ब्लूमबर्ग’ के कुछ संवाददाताओं ने जुटायी है।

चालाक चालें!

ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक़, आंदोलन चलाने के लिए कोई सुगठित संगठन नहीं था। मानवाधिकार समूह और चीनी शासन व साम्यवादी व्यवस्था के विरोधी समझे जाने वाले सिविल ह्यूमन राइट्स फ्रंट उनकी मदद करने सामने आया। कोई नेता भी नहीं है। साल 2014 के आंदोलन का नेतृत्व करने वाले जोशुआ वाँग जेल में हैं। 

इस बार पूरी योजना बेहद चालाकी और सोची समझी रणनीति के तहत बनाई गई थी। सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया गया था, ख़ास तौर पर बनाए गए गैस मास्क का उपयोग किया गया और जानबूझ कर कारें भिड़ा दी गई थी, ट्रकों को बीच सड़क पर ख़राब कर दिया गया था। प्रशासन इसे भाँप भी नहीं पाया और जब तक वह इसे समझता और कोई ठोस कदम उठाता, बहुत देर हो चुकी थी। 

'अकेले पिकनिक मनाने आएँ'

छोटे-छोटे समूहों में बँटे सैकड़ों लोग सामने आए। उन्होंने फ़ेसबुक और इन्सटाग्राम पर ग्रुप बनाए और उससे हज़ारों लोगों को जोड़ा। उन्होंने अपने समूहों में लोगों से कहा कि वे 'अकेले पिकनिक मनाने आएँ' और 'ख़ुद पर पेटिंग' करने के लिए लेजिस्लेटिव कौंसिल भवन के सामने जमा हो जाएँ। अब आप पूछ सकते हैं कि अकेले भला कोई पिकनिक मनाता है या यह कि कोई ख़ुद पर पेटिंग क्यों करेगा? पर यह संदेश इसलिए दिया गया था कि तीन लोगों से अधिक एक साथ एक जगह जमा होने के लिए पुलिस की पूर्व अनुमति लेनी होती है, जो हरगिज नहीं मिलती।  

कूट भाषा का इस्तेमाल कर संकेतों में संदेश लिख गए और उन्हें सोशल मीडिया प्लैटफ़ॉर्म 'टेलीग्राम' पर शेयर किया गया, जो ग्रुप में हज़ारों लोगों तक पलक झपकते ही पहुँच गए।

'टेलीग्राम' पर साइबर हमले

नतीजा यह हुआ कि हाँकाँग में एपल स्टोर पर जिस ऐप की धूम रही और सबसे अधिक लोगों ने डाउनलोड किया, वह टेलीग्राम था। एनक्रिप्टेड मैसेज सिस्टम का इस्तेमाल किया गया। लेकिन तब तक प्रशासन जाग चुका था। इस ऐप को सर्विलाँस पर डाल दिया गया। टेलीग्राम के संस्थापक पैवेल दूरोव ने 'ब्लूमबर्ग' से कहा कि इस साइट पर कई बार साइबर हमले हुए, जो चीन से किए गए थे। 

काले चश्मे का सच!

एडमिरेलिटी में एक आदमी हाथ में काला मास्क लिए कुछ लोगों से कह रहा था, 'यदि आप सड़क पर उतर रहे हैं तो आपको निश्चित तौर पर मास्क लगा लेना चाहिए।' वह कुछ लोगों को मास्क दे भी रहा था। वह अकेला नहीं था, उस जैसे बहुत से लोग थे, जो इसी तरह सड़क पर मुफ़्त में मास्क बाँट रहे थे। यह एक ख़ास किस्म का मास्क था, जिसे लगाने पर आँसू गैस का असर कम पड़ता या नहीं पड़ता। इसे चेहरा पहचानना तो नामुमकिन था।

कुछ लोगों ने आँखों पर काला चश्मा लगा लिया, इससे भी ख़ुद को छिपाने में मदद मिली। मास्क और चश्मे का एक फ़ायदा यह भी था कि काली मिर्च का छिड़काव पुलिस करती तो वह सीधे आँखों में नहीं लगती।

साल 2014 के आंदोलन का एक नतीजा यह था कि लोग इस बार पहले से तैयार थे और उसी अनुरूप तैयारी भी कर रहे थे। 

पूरी तैयारी

इस तैयारी का नतीजा यह हुआ कि हाँगकाँग की सड़कों पर बनी दुकानों में देखते ही देखते मास्क, काले चश्मे, छाते और पानी की बोतलें मिलने लगीं। भीड़ को नियंत्रित करने के लिए प्लास्टिक की रस्सियाँ और बैरीकेड से भिड़ने के लिए दस्ताने भी हर जगह मौजूद थे। बिस्कुट और ब्रेड के डिब्बे हर दुकान में थे। ऐसा लग रहा था कि लोग पूरी तैयारी के साथ खाने पीने की चीजें लेकर प्रदर्शन में भाग लेने जा रहे हों। सारी चीजें एक छोर से दूसरे छोर तक पहुँचाने के लिए मानव श्रृंखला बनाई गई और एक हाथ से दूसरे हाथ होते हुए तमाम चीजें ज़रूरत के मुताबिक़ सही समय पर सही जगह पहुँच गईं।

कार क्रैश!

लोगों ने यह भी देखा कि चौड़ी सड़क के बीचोबीच यकायक दसियों ट्रक रुक गए, कारें रुक गईं। ये कारें और ट्रक पुलिस गाड़ियों के सामने या आगे पीछे ही रुके। पुलिस के ब्लॉकेड के मुक़ाबले यह जनता का ब्लॉकेड था, जो पुलिस की गाड़ियों के लिए रास्ता रोक रहा था। 

हाँगकाँग की सड़कों पर अभी भी लाखों लोग जमा हैं। प्रशासन को उम्मीद है कि विधेयक रोक लेने की वजह से अब यह आंदोलन भी ठंडा पड़ जाएगा, लोग कैरी लैम के इस्तीफ़े पर बहुत अधिक ज़ोर नहीं देंगे। रविवार का यह प्रदर्शन इस आंदोलन का अंतिम पड़ाव होगा। शायद ऐसा ही हो, पर इस बार लोगों ने यह ज़रूर दिखा दिया कि किस तरह संगठन और नेता के बग़ैर भी बड़ा आंदोलन खड़ा हो सकता है। बस, सोशल मीडिया और बुद्धि का बेहतर इस्तेमाल आना चाहिए।