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चीनी चुनौतियों के बीच भारत-थाई संबंधों का नया दौर

चीनी चुनौतियों के बीच भारत-थाई संबंधों का नया दौर

37 वर्षीया पैटॉन्गटर्न शिनावात्रा थाईलैंड की नयी प्रधानमंत्री बनी हैं। उनके पिता पूर्व प्रधानमंत्री थाक्सिन शिनावात्रा के भारत के साथ गहरे संबंध रहे हैं। आज वहां भारत चीन से पिछड़ रहा है। क्या भारत पैटॉन्गटर्न शिनावात्रा के नये दौर में में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने और अपने रणनीतिक हितों की रक्षा के साथ साथ क्षेत्रीय स्थिरता के लिए भी प्रयास कर सकता है? क्या यह समय भारत-थाई संबंधों को नयी दिशा दे सकता है?  

बैंकॉक भारतीयों का पसंदीदा पर्यटन स्थल है। नई दिल्ली से थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक जाने में महज चार-पाँच घंटे लगते हैं। अब यदि आप बैंकॉक जाएंगे, तो वहां आपका स्वागत थाईलैंड की सबसे युवा प्रधानमंत्री पैटॉन्गटर्न शिनावात्रा की सरकार करेगी। भारत और थाईलैंड के संबंध हजारों साल पुराने हैं। चाहे वह व्यापार हो, सांस्कृतिक आदान-प्रदान हो, या फिर सामरिक दृष्टिकोण से जुड़ी साझेदारी हो, दोनों देशों के बीच के संबंध अद्वितीय हैं। परंतु, वर्तमान समय में, थाईलैंड का झुकाव चीन की तरफ अधिक होता दिख रहा है, जो भारत के लिए एक चुनौती हो सकती है। भारतीयों के लिए थाईलैंड न केवल पर्यटन का एक लोकप्रिय केंद्र है, बल्कि ऐतिहासिक रूप से भी दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक और धार्मिक संबंध गहरे रहे हैं।   

पैटॉन्गटर्न, जिन्हें 'उंग इंग' के नाम से भी जाना जाता है, अपनी चाची यिंगलक शिनावात्रा के बाद प्रधानमंत्री बनने वाली थाईलैंड की दूसरी महिला नेता हैं। उनका चुनाव भारत के लिए उनके पिता प्रधानमंत्री थाक्सिन द्वारा स्थापित गर्मजोशी भरे संबंधों को और मजबूत करने का एक रणनीतिक अवसर है। थाई राजनीति का यह नया दौर ऐसे समय में आया है, जब भारत का व्यापक लक्ष्य दक्षिण पूर्व एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करना है।

उनके राजनीतिक करियर का उदय एक विशेष रूप से अस्थिर राजनीतिक परिदृश्य के बीच हुआ, जब थाईलैंड में संवैधानिक अदालत ने उनके पूर्ववर्ती प्रधानमंत्री स्रेथा थविसिन को एक विवादास्पद कैबिनेट नियुक्ति के कारण पद से हटा दिया।

थाईलैंड में सैन्य हस्तक्षेप और राजनीतिक अस्थिरता का लंबा इतिहास रहा है। 2006 और 2014 में हुए दो बार हुए सैन्य तख्तापलट ने देश की राजनीति को बुरी तरह प्रभावित किया। थाईलैंड की पहली महिला प्रधानमंत्री, यिंगलक शिनावात्रा, जो पैटॉन्गटर्न की चाची हैं, का कार्यकाल भी इसी अस्थिरता का शिकार हुआ। हालांकि, भारत के लिए इन घटनाओं के बीच एक रणनीतिक अवसर भी छिपा है।

थाक्सिन शिनावात्रा और भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल 2001 से 2006 के दौरान भारत-थाईलैंड संबंधों में महत्वपूर्ण प्रगति हुई। आर्थिक-रणनीतिक सहयोग बढ़ा। मुक्त व्यापार समझौता हुआ, और संयुक्त सैन्य अभ्यास और द्विपक्षीय नौसैनिक रक्षा सहयोग भी शुरु हुआ। समुद्री सहयोग व कनेक्टिविटी बढ़ाने के अलावा भारत, म्यांमार और थाईलैंड के बीच त्रिपक्षीय राजमार्ग परियोजनाओं के माध्यम से दोनों देशों में उल्लेखनीय सहयोग देखा गया।  

भारत की स्वतंत्रता के बाद सन 1947-76 के दौरान भारत-थाई संबंध ठंडे रहे थे। 1970 के दशक तक थाईलैंड पर सैन्य शासकों का शासन था। 1986 में भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी की थाईलैंड यात्रा ने इस स्थिति को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1994 में शुरू हुई भारत की 'लुक ईस्ट' नीति और थाईलैंड की 'लुक वेस्ट' नीति ने द्विपक्षीय संबंधों को नया आयाम दिया। इसके बाद के वर्षों में, दोनों देशों ने अपने आर्थिक और सामरिक सहयोग को बढ़ाया। 2011 में थाक्सिन की बहन यिंगलक शिनावात्रा के प्रधानमंत्री बनने के बाद उनके कार्यकाल (2011-2014) के दौरान भारत और थाईलैंड के बीच कई महत्वपूर्ण समझौते हुए, जिनमें रक्षा, सुरक्षा, और व्यापार पर ध्यान केंद्रित किया गया।  

हालांकि, 2014 में यिंगलक शिनावात्रा को भी सत्ता से बेदखल कर दिया गया, और वह अब चीन में निर्वासित जीवन बिता रही हैं। इस बीच, थाईलैंड और चीन के संबंध मजबूत होते गए। थाईलैंड अब चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का हिस्सा है और दोनों देशों के बीच व्यापारिक और सैन्य सहयोग में भी तेजी आई है। चीन ने थाईलैंड में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में बड़ा निवेश किया है, जैसे कि बैंकॉक को लाओस-चीन हाई स्पीड रेल से जोड़ने का प्रोजेक्ट। इसके अलावा, चीन ने थाईलैंड को 5G नेटवर्क स्थापित करने के लिए हुवावे जैसी कंपनियों के माध्यम से भी सहायता प्रदान की है।

थाईलैंड में चीन का बढ़ता प्रभाव भारत ही नहीं अमरीका के लिए भी महत्वपूर्ण चुनौती है। शीत युद्ध के बाद से अमरीका थाईलैंड का प्राथमिक हथियार आपूर्तिकर्ता रहा, लेकिन यह स्थान अब चीन ने ले लिया है। चीन ने न केवल थाईलैंड के रक्षा क्षेत्र में अपने प्रभाव को बढ़ाया है, बल्कि थाईलैंड के साथ नियमित रूप से संयुक्त सैन्य अभ्यास भी किया है। इसके अलावा, थाईलैंड ने चीन से बड़ी संख्या में टैंक, बख्तरबंद वाहन, और पनडुब्बियाँ खरीदी हैं। चीन अब थाईलैंड का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता बन गया है। 2023 में थाईलैंड में चीन का कुल निवेश 43% बढ़कर 23.79 अरब डॉलर पर पहुंच गया, जो थाईलैंड की अर्थव्यवस्था पर चीन के प्रभाव को स्पष्ट रूप से दर्शाता है।

भारत और थाईलैंड के बीच द्विपक्षीय व्यापार 2023 में लगभग 14 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा। हालांकि, इस व्यापार में भारत का हिस्सा कम है। थाईलैंड में भारत का मुख्य निर्यात कपड़ा, रत्न और फार्मास्यूटिकल्स हैं, जबकि थाईलैंड से भारत को आयात मुख्य रूप से इलेक्ट्रॉनिक्स और अन्य उपभोक्ता उत्पादों का है। भारत और थाईलैंड दोनों ही आसियान क्षेत्रीय मंच और एशिया सहयोग वार्ता जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर एक साथ काम करते हैं।

भारत ने दक्षिणी थाईलैंड में इस्लामी अलगाववादियों से निपटने के लिए थाई लोगों की सहायता की, जिसके बदले थाईलैंड ने कंबोडिया में उत्पन्न होने वाले हथियारों की आपूर्ति के लिए उनकी जमीन का उपयोग करने वाले भारतीय अलगाववादियों के खिलाफ कार्रवाई की। 2006 से भारत-थाई नौसेनाओं की अंडमान सागर में प्रतीकात्मक "समन्वित गश्त" और जनवरी 2012 में रक्षा सहयोग के समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर के बावजूद कहीं न कहीं दोनों देशों के सुरक्षा संबंध अपेक्षाकृत अविकसित ही हैं। कुल मिलाकर थाईलैंड में भारत चीन से पिछड़ रहा है।  

ऐसा तब है, जब दोनों देशों के संबंध हजारों साल पुराने हैं। थाई संस्कृति पर भारत का गहरा प्रभाव है। थाईलैंड बौद्ध धर्म को मानता है, जो भारत से उत्पन्न हुआ है। रामायण की हिंदू कहानी भी पूरे थाईलैंड में रामकियेन के नाम से प्रसिद्ध है। लगभग 2500 साल पहले जब सम्राट अशोक ने सुवर्णभूमि में भिक्षुओं को भेजा था, तब से लेकर आजतक थाईलैंड में भारतीय पुजारियों का स्वागत किया जाता रहा है। थाईलैंड की समुद्री सीमा भारत के अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के साथ जुड़ी है।

दक्षिण पूर्व एशिया के प्रवेश द्वार थाईलैंड में रहने वाले लगभग 250,000 भारतीय और 25,000 से अधिक एनआरआई भारत-थाईलैंड संबंधों के जीवंत प्रतीक हैं। आज बड़े पैमाने पर भारतीय थाईलैंड की यात्राएं करते हैं। 15 से अधिक भारतीय शहरों से लगभग 400 साप्ताहिक उड़ानों के साथ सीधे जुड़े थाईलैंड में 2023 में लगभग 1.6 मिलियन भारतीय पर्यटक पहुंचे, तो चीन से 3.5 मिलियन। हालांकि 2023 में महज 0.11 मिलियन थाई पर्यटक ही भारत आये। थाईलैंड भारतीयों को तो अधिकतम 5 साल का वीजा देता है, लेकिन थाई एलीट वीज़ा चीनी नागरिकों को 20 साल तक थाईलैंड में रहने की अनुमति देता है। भारत और थाईलैंड के बीच द्विपक्षीय व्यापार 2023 में 16.04 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जिसमें भारत से थाईलैंड को निर्यात 5.92 बिलियन अमेरिकी डॉलर और थाईलैंड से भारत को आयात 10.11 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।

इस असमानता को सुधारने और दोनों देशों के संबंधों को और मजबूत करने के लिए भारत को थाईलैंड में चीन के बढ़ते प्रभाव का संतुलन करने की आवश्यकता है।

थाईलैंड में नई प्रधानमंत्री पैटॉन्गटर्न शिनावात्रा के नेतृत्व में एक नया राजनीतिक युग शुरू हुआ है। भारत के लिए यह समय महत्वपूर्ण है कि वह थाईलैंड के साथ अपने संबंधों को और गहरा करे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ईसा पूर्व चौथी या पांचवीं शताब्दी के भगवान बुद्ध के अवशेषों को थाईलैंड भेजकर वहां के साथ सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करने की कोशिश की है। लेकिन आज चीन के बढ़ते प्रभाव के बीच, भारत को थाईलैंड में अपनी उपस्थिति और प्रभाव को बढ़ाने की आवश्यकता है। 

इसके लिए भारत को रणनीतिक, आर्थिक, और सांस्कृतिक तीनों ही स्तरों पर ठोस कदम उठाने होंगे। क्या भारत थाईलैंड में पैटॉन्गटर्न शिनावात्रा के नये दौर में वहां चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने और अपने रणनीतिक हितों की रक्षा के साथ क्षेत्रीय स्थिरता के लिए कोई ठोस प्रयास कर सकता है?

(लेखक विदेश मामलों के अध्येता, लेखक पत्रकार व कॉमनवेल्थ थॉट लीडर्स फोरम के अध्यक्ष हैं।)

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