कोरोना : ट्रंप की आपराधिक लापरवाहियों से पाँच लाख अमेरिकियों की जान ख़तरे में?

01:27 pm Apr 16, 2020 | प्रमोद मल्लिक - सत्य हिन्दी

क्या राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप को उनके सलाहकारों और सहयोगियों ने कोरोना महामारी से अमेरिका में होने वाली तबाही के बारे में समय रहते ही बता दिया था क्या ट्रंप ने राजनीतिक चालाकियों की वजह से उन सभी चेतावनियों को जानबूझ कर नज़रअंदाज़ किया था और वह ऐसा दिखाते रहे मानो कोरोना कोई मुद्दा है ही नहीं क्या उनकी इन आपराधिक लापरवाहियों के कारण ही 5 लाख से अधिक अमेरिकियों की जान ख़तरे में है, अब तक 23 हज़ार से अधिक की मौत हो चुकी है और खरबों डॉलर का नुक़सान अमेरिकी अर्थव्यवस्था झेल चुका है

इन सवालों का जवाब जानने के लिए सत्य हिन्दी ने न्यूयॉर्क टाइम्स की उन खबरों की पड़ताल की है, जिन्हें अमेरिका के चोटी के पत्रकारों ने काफी खोजबीन और अध्ययन के बाद लिखी हैं।

ट्रंप को पता था

डोनल्ड ट्रंप ने बीते महीने यानी मार्च में कहा, ‘किसी को नहीं पता था कि यह इतनी बड़ी महामारी बन जाएगी।’ लेकिन सच तो यह है कि उन्हें इस महामारी के बारे में 28 जनवरी को ही बता दिया गया था।

डिपार्टमेंट ऑफ़ वेटरन्स अफ़ेयर्स के डॉक्टर कार्टर मेशर ने 28 जनवरी को स्वास्थ्य विभाग के तमाम बड़े अधिकारियों को एक ई-मेल लिख कर इसकी चेतावनी दी थी और कहा था कि यह महामारी इतनी भयानक होगी कि अभी कोई इस पर यकीन नहीं करेगा।

मामले को कम कर दिखाया

डॉक्टर मेशर इस तरह की चेतावनी देने वाले अकेले व्यक्ति  नहीं थे। व्हाइट हाउस के सलाहकारों और ट्रंप कैबिनेट के लोगों को भी इसकी जानकारी थी। उन लोगों ने इस पर कार्रवाई करने की सलाह भी दी थी। लेकिन, इसके छह हफ़्ते बाद राष्ट्रपति ने इस मुद्दे पर पहली बार अपना मुँह खोला। 

राष्ट्रपति ट्रंप की प्रथामिकताएं कुछ और थीं। वह अर्थव्यवस्था दुरुस्त करने में लगे हुए थे। एक तो वह समय रहते मामले की गंभीरता नहीं समझ सके और उसके बाद उन्होंने जानबूझ कर इस मामले को कमतर करके दिखाया।

सलाहकारों पर भरोसा नहीं

राष्ट्रपति ट्रंप ने चीन आने-जाने पर रोक लगा दी, लेकिन वह फ़ैसला भी काफी बेमन से लिया गया था और वह अपने सलाहकारों पर भरोसा नहीं कर पा रहे थे। ट्रंप उस समय महाभियोग के मामले में फंसे हुए थे, उनका ध्यान उस ओर था।

इसके अलावा वह व्यापारिक कारणों से चीन को नाराज़ नहीं करना चाहते थे। इस मामले में जो लोग उन्हें सलाह दे सकते थे, वे बेहद अनुभवी थे और ट्रंप को मुसीबत से बाहर निकाल सकते थे, पर ट्रंप उन्हें नापसंद करते थे और उन पर भरोसा नहीं करते थे।

सोशल डिस्टैंसिंग की सलाह जनवरी में

महामारी पर नज़र रखना और इससे जुड़ी जानकारियाँ जुटाना नेशनल सिक्योरिटी कौंसिल के जिम्मे था। उसने यह काम बखूबी किया और सोशल डिस्टैंसिंग और घर से काम करने की सलाह जनवरी के शुरू से ही देने लगा था। उसने तो उसी समय शिकागो जैसे शहर को पूरी तरह सील कर देने की सलाह दी थी। पर ट्रंप इसे टालते रहे और उन्होंने सोशल डिस्टैंसिंग और घर से काम करने से जुड़े दिशा निर्देश मार्च में जारी किए। 

न्यूयॉर्क टाइम्स पर भरोसा करें तो आज ट्रंप चाहे जो कहें, पर सच यह है कि उनके व्यापार सलाहकार पीटर नवारो ने 29 जनवरी को ही एक मेमो में राष्ट्रपति को बता दिया था कि कोरोना महामारी से लगभग 5 लाख लोगों की मौत हो सकती है और व्यापार जगत को कई ट्रिलियन डॉलर का नुक़सान हो सकता है। 

स्वास्थ्य मंत्री अलेक्स एम. अज़ार ने 30 जनवरी को राष्ट्रपति को सीधे शब्दों में कोरोना महामारी के बारे में जानकारी दे दी थी, पर ट्रंप ने इसे यह कह कर खारिज कर दिया कि वे 'बेवज़ह घबराए' हुए हैं।

सोशल डिस्टैंसिंग पर टाल मटोल

सोशल डिस्टैंसिंग के दिशा निर्देश जारी करने की कहानी भी इसी तरह की लेट लतीफ़ी, टाल मटोल के रवैए और लापरवाही से भरी हुई है। 

ट्रंप प्रशासन के जन स्वास्थ्य विभाग के लोगों ने फरवरी के अंतिम हफ़्ते में राष्ट्रपति से कह दिया था कि व्यावसायिक प्रतिष्ठानों और शिक्षा संस्थानों को बंद करने का समय आ गया है। पर ट्रंप को इस पर फ़ैसला लेने में तीन हफ़्ते लग गए। 

रोकथाम की रणनीति में देर

स्वास्थ्य व मानव सेवा विभाग के डॉक्टर रॉबर्ट कैडलेक ने 21 फरवरी को ही कोरोना व्हाइट हाउस टास्क फ़ोर्स की एक आपात बैठक बुलाई और कोरोना संक्रमण रोकने के उपाय लागू करने की रणनीति बनाने को कहा। पर ट्रंप प्रशासन इस पर बँटा हुआ था कि इन उपायों को कब से लागू किया जाए। 

उस समय तक कोरोना संक्रमण चीन से निकल कर मध्य-पूर्व तक फैल चुका था। संक्रमण की जाँच और उसकी रोकथाम पर कोई नीति नहीं बन सकी थी। इस मुद्दे पर प्रशासन के रवैए का अनुमान ट्रंप के एक बयान से लगाया जा सकता है। उन्होंने कहा था : 

‘अप्रैल में जब थोड़ी बहुत गर्मी शुरू होगी, ये वायरस रहस्यमय ढंग से ग़ायब हो जाएंगे।’


डोनल्ड ट्रंप, राष्ट्रपति, अमेरिका

संक्रमण के असर का सही अंदाज नहीं

इसी तरह ट्रंप प्रशासन यह अंदाज नहीं लगा सका कि संक्रमण की चपेट में कितने लोग आएंगे और कितने की मौत हो जाएगी। कैडलेक ने अध्ययन के बाद कहा कि महामारी फैली तो 11 करोड़ लोग प्रभावित हो सकते हैं, 77 लाख लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया जा सकता है और 5,86,000 लोगों की मौत हो सकती है।

सेंटर फ़ॉर कन्टैैजियस एंड इनफ़ेक्शस डिजीज़ ने अनुमान लगाया कि 20 लाख लोग प्रभावित हो सकते हैं। ख़ुद राष्ट्रपति ट्रंप ने मार्च में कहा कि यदि कोरोना से मरने वालों की संख्या एक लाख पर रुक जाती है तो बड़ी बात होगी। इसके बाद पिछले हफ़्ते व्हाइट हाउस कोरोना टास्क फ़ोर्स के प्रमुख डॉक्टर एंथनी फ़ॉची ने कहा कि अब अनुमान है कि 60 हज़ार लोगों की मौत इससे हो सकती है। 

अलग-अलग अध्ययन समूहों ने अलग-अलग संख्या बताई और यह आज तक तय नहीं किया जा सका है कि इसका असर कितना व्यापक होगा। कोरोना से लड़ने की ट्रंप की यह तैयारी है!

अर्थव्यवस्था खोलने की हड़बड़ी!

सोशल डिस्टैंसिंग को लेकर ट्रंप कितने गंभीर थे, उसका अंदाज इससे लगाया जा सकता है कि इसकी घोषणा के कुछ दिन बाद ही वह अर्थव्यवस्था को खोलने की बात करने लगे। उन्होंने एलान कर दिया कि ईस्टर यानी 12 अप्रैल तक सबकुछ ठीक हो जाएगा, हालांकि बाद में उन्हें अपनी ग़लती का अहसास हुआ और उन्होंने लॉकडाउन 30 अप्रैल तक बढ़ा दिया। 

दरअसल ट्रंप ईस्टर त्योहार के बहाने सबकुछ खोलना चाहते थे ताकि अर्थव्यवस्था पटरी पर जल्द से जल्द लौट सके। वह नवंबर में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के पहले ही अर्थव्यवस्था को दुरुस्त कर रोज़गार के मौके बनाने की हड़बड़ी में थे। 

ख़ुफ़िया एजेन्सियों ने दी थी महामारी की जानकारी

वायरस फैलने के बारे में ख़ुफ़िया एजेन्सियों ने समय रहते ही ट्रंप प्रशासन को पूरी जानकारी दी थी, पर ख़ुद राष्ट्रपति उसे गंभीरता से नहीं ले रहे थे। नेशनल इंटेलीजेन्स के डाइरेक्टर ने जनवरी में ही ट्रंप प्रशासन से कह दिया था कि चीन का यह वायरस उसी देश तक सीमित नहीं रहेगा, पूरी दुनिया में फैलेगा। इससे अलग हट कर डिफेन्स इंटेलीजेन्स एजेन्सी ने भी यही बात कही थी।

ऊहान का नाम आने के कुछ दिन बाद से ही वे लोग शिकागो जैसे शहर को बंद करने की रणनीति सोचने की बात कहने लगे थे। पर प्रशासन चीन के मुद्दे पर इस तरह बँटा हुआ था कि लोग इसे गंभीरता से नहीं ले रहे थे। वे यह मान ही नहीं रहे थे कि यह संक्रमण अमेरिका तक फैलेगा। 

ऐसे लडे़ेंगे महामारी से

कोरोना से लड़ने के मुद्दे पर प्रशासन में एकरूपता और एकजुटता की कमी इस तरह फैली हुई थी कि सारे राज्यों के प्रशासन अपने-अपने ढंग से और अपने-अपने संसाधन से मास्क, पीपीई, दवा और दूसरी चीजों के जुगाड़ में लग गए। कोई केंद्रीय कमान नहीं थी, इनके बीच समन्वय के लिए कोई केंद्रीय निकाय नहीं था।

स्वास्थ्य उपकरणों की ऐसी किल्लत हुई और उनके इंतजाम करने की ऐसी बदइंतजामी हुई कि अमेरिका के लोग दूसरे देशों को भेजे जा रहे उपकरणों के कनसाइनमेंट बीच में ही उड़ाने लग गए।

'द इंडीपेंडेंट' की ख़बर पर भरोसा करें तो फ्रांस और जर्मनी को भेजे जा रहे कनसाइनमेंट बीच में ही गायब हो गए और रहस्यमय ढंग से अमेरिका पहुँच गए। सोमवार को ही तमिलनाडु के मुख्य सचिव के. षणमुगम ने सार्वजनिक तौर पर आरोप लगाया कि उनके राज्य ने रैपिड टेस्ट किट का जो ऑर्डर चीन को दिया था, वह तो अमेरिका पहुँच गया। 

आने जाने और परिवहन पर रोक लगाने की वजह से इसमें दिक्क़तें और बढ़ीं। बाद में सिर्फ़ इन चीजों की ही नहीं, स्वास्थ्य कर्मियों की भी कमी होने लगी क्योंकि वे एक जगह से दूसरी जगह नहीं जा सकते थे। 

ग़लत प्राथमिकता!

जब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना को औपचारिक रूप से महामारी घोषित कर दिया तो ट्रंप प्रशासन की प्राथमिकता और बदल गई। उसका पूरा ध्यान कोरोना संक्रमण के लिए चीन को ज़िम्मेदार ठहराने, वायरस को ‘ऊहान वायरस’ और ‘चीनी वायरस’ के रूप में स्थापित करने में लग गया। 

ट्रंप ही नहीं, उनके विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो भी इस ज़ुबानी जंग में कूद पड़े और कोरोना से लड़ने के बजाय चीन का ‘दानवीकरण’ ही राष्ट्रीय मक़सद बन गया।

दोनों देशों के बीच रिश्ते इतने तल्ख़ हो गए कि उसे व्यापार युद्ध के बाद की स्थिति से बदतर बताया जाने लगा। 

यह इस तरह बढ़ा कि डब्लूएचओ के प्रमुख टेड्रस एडेनम गेब्रेसस पर चीन की तरफ़दारी करने का आरोप खुले आम लगाया गया, उन पर निजी हमले तक हुए। इसका नतीजा यह हुआ कि कोरोना से लड़ाई में चीन से जो मदद मिल सकती थी, वह नहीं मिली, बल्कि इसे यूं कह सकते हैं कि ट्रंप प्रशासन ने इसकी कोशिश ही नहीं की। 

बीते दिनों ट्रंप के प्रचार विभाग ने जो वीडियो जारी किया है और उसमें राष्ट्रपति पद के संभावित डेमोक्रेटिक उम्मीदवार जो बाइडन पर हमला करते हुए चीन को जिस तरह दुश्मन के रूप में चित्रित किया है, उससे यह साफ़ है कि ट्रंप इसका राजनीतिक फ़ायदा भी उठाना चाहते हैं। ट्रंप चीन को कोरोना संक्रमण के लिए ज़िम्मेदार ही नहीं, चीन या चीनी मूल के लोगों या उससे सहानुभूति रखने वालों को अमेरिका का दुश्मन क़रार देना चाहते हैं। वह राष्ट्रपति चुनाव में इसका फ़ायदा उठाना चाहते हैं। 

यह तो कहा ही जा सकता है कि ट्रंप कोरोना का इस्तेमाल चुनाव जीतने के लिए करना चाहते हैं। इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि पूरी अमेरिकी व्यवस्था ने राष्ट्रपति को समय रहते ही हर तरह की जानकारी और सुझाव दिए। पर ट्रंप की प्राथमिकता कुछ और थी और इसका नतीजा अब अमेरिकी जनता भुगत रही है।