अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान के नियंत्रण का एक महीना हो चुका है, उसकी सरकार भी बन चुकी है, पर खुद अपने ही लोग उसे स्वीकार नहीं कर रहे हैं।
इसे इससे समझा जा सकता है कि कई अफ़ग़ान राजनयिकों ने एक संयुक्त बयान जारी कर विश्व समुदाय से अपील की है कि वे तालिबान सरकार को मान्यता न दें।
ये वे राजनयिक हैं, जिन्हें अशरफ़ ग़नी सरकार ने नियुक्त किया था।
लगभग दो दर्जन राजनयिकों ने इस बयान पर दस्तख़त किए हैं। उन्होंने इस पर अफ़सोस जताया है कि अफ़ग़ानिस्तान के सहयोगी देशों ने 20 साल के साथ के बाद उन्हें मझधार में छोड़ दिया है, अफ़ग़ानिस्तान की जनता को आतंकवादी गुटों की दया पर छोड़ दिया गया है।
बयान में विश्व नेताओं से अपील की गई है कि वे अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं, कार्यकर्ताओं और पत्रकारों के ख़िलाफ़ हिंसा पर रोक लगाएं।
बयान में कहा गया है,
“
तालिबान ने जिस तरह ग़ैरक़ानूनी और हिंसक तरीके से सत्ता हथिया ली है, दुनिया के हिंसक व आतंकवादी गुटों का मनोबल बढ़ेगा।
अफ़ग़ान राजनयिकों के बयान का अंश
वाशिंगटन स्थित अफ़ग़ान दूतावास के प्रथम सचिव जवाद राहा ने कहा कि वे अभी भी अमेरिका में रहने वाले अफ़ग़ान नागरिकों को कूटनीतिक सेवाएं दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी की तसवीर को उतार दिया गया है, क्योंकि जिस तरह उन्होंने देश छोड़ दिया, उससे लोगों को दुख हुआ।
इसके पहले संयुक्त राष्ट्र में अफ़ग़ानिस्तान के प्रतिनिधि ने कहा था कि तालिबान सरकार ग़ैरक़ानूनी है और उसे किसी को मान्यता नहीं दी जानी चाहिए।
बता दें कि भारत समेत ज़्यादातर देशों ने अफ़ग़ानिस्तान स्थित अपने-अपने दूतावास बंद कर दिए हैं।
चीन और पाकिस्तान के दूतावास काबुल में काम कर रहे हैं। चीन, पाकिस्तान और रूस ने कहा है कि वे तालिबान से अच्छे रिश्ते चाहते हैं। उन्होंने भी अब तक मान्यता नहीं दी है।
संयुक्त अरब अमीरात, क़तर और तुर्की से भी तालिबान के रिश्ते हैं, हालांकि इन देशों ने उसे मान्यता नहीं दी है।
क़तर की राजधानी दोहा में तालिबान का मुख्यालय है।
दरअसल हुआ यह है कि तमाम देशों में अशरफ़ ग़नी सरकार के नियुक्त किए हुए राजनयिक ही तैनात हैं। तालिबान सरकार ने अभी कामकाज संभाला है, विदेश मंत्री नियुक्त किए गए हैं। नई सरकार सभी देशों में अपनी मर्जी से राजनयिकों को तैनात कर सकती है।
लेकिन अफ़ग़ानिस्तान के राजनयिकों ने जिस तरह अपने ही देश की सरकार को मान्यता नहीं देने की अपील की है, उससे यह तो साफ है कि तालिबान को लोग अभी भी स्वीकार नहीं कर पाए रहे हैं।
दूसरी बात यह है कि जब अपने ही राजनयिक मान्यता नहीं देने की बात कह रहे हैं तो कौन देश उन्हें मान्यता देगा?