क्या शिवराज सिंह चौहान हो सकते हैं बीजेपी के अगले अध्यक्ष?
शुक्रवार से शुरू हुई बीजेपी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक इस मायने में बहुत महत्त्वपूर्ण है कि तीन महीने बाद ही लोकसभा चुनाव होने जा रहे हैं और इन चुनावों के पहले यह आख़िरी बैठक है। दो दिनों तक चलने वाली इस बैठक में हाल के विधानसभा चुनावों में मिली पार्टी को हार की समीक्षा कर बीजेपी लोकसभा चुनाव के लिए बड़े रणनीतिक फ़ैसले लेगी और अपनी चुनावी कार्य योजना को अन्तिम रूप देगी। यह अचानक नहीं है कि ऐसी महत्त्वपूर्ण बैठक की पूर्व संध्या पर तीनों हिंदीभाषी राज्यों में हारे मुख्यमंत्रियों को बीजेपी का उपाध्यक्ष बना दिया जाए। दरअसल, इसका साफ़ संकेत यह है कि बीजेपी इन तीनों वरिष्ठ नेताओं को राष्ट्रीय राजनीति में बड़ी भूमिका देना चाहती है। शिवराज सिंह चौहान, रमन सिंह और वसुंधरा राजे सिंधिया क़द्दावर नेता माने जाते हैं और पार्टी इनके अनुभवों का लाभ उठाना चाहती है। लेकिन इन तीनों में भी ख़ास तौर पर शिवराज सिंह पर आरएसएस की विशेष नज़र है। संघ शिवराज को भविष्य के मद्देनज़र राष्ट्रीय राजनीति में बड़ी भूमिका देने की सोच रहा है।
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संघ की पसंद शिवराज
दिसंबर में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा। छत्तीसगढ़ में वह बुरी तरह हारी, लेकिन पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के रणनीतिक कौशल के कारण कांग्रेस को जीतने के लिए नाकों चने चबाने पड़े। वोटों के प्रतिशत का हिसाब देखें तो बीजेपी कांग्रेस से आगे रही, लेकिन सीटों के खेल में वह मामूली अंतर से चूक गई। शिवराज सिंह के ख़िलाफ़ पंद्रह साल की 'एंटी-इनकम्बेन्सी' के बावजूद बीजेपी ने कांग्रेस को काँटे की टक्कर दी। जानकारों का तो यह भी कहना है कि अगर नोटबंदी और जीएसटी जैसे फ़ैसले मोदी सरकार ने नहीं लिए होते तो शिवराज चौथी बार भी मुख्यमंत्री बनते।
संघ परिवार को लगता है कि शिवराज सिंह चौहान की छवि एक ऐसे नेता की है, जो अपनी विनम्रता के लिए जाने जाते हैं। मोदी और अमित शाह के विपरीत वह सबको साथ लेकर चलने की कोशिश करते हैं और उनकी 'अहंकारी नेता' की छवि भी नहीं है।
बीजेपी को नए अध्यक्ष की दरकार
वह आसानी से पार्टी कार्यकर्ता और जनता के बीच घुल-मिल भी जाते हैं। संघ परिवार को लगता है कि राष्ट्रीय स्तर पर चौहान की इस छवि का फ़ायदा बीजेपी को उठाना चाहिए। उधर, 2019 में बीजेपी को अपना नया अध्यक्ष कभी चुनना है क्योंकि अमित शाह अध्यक्ष के तौर पर अपना लगातार दूसरा कार्यकाल पूरा करने वाले हैं। बीजेपी के संविधान के अनुसार कोई व्यक्ति लगातार दो कार्यकाल से अधिक अध्यक्ष पद पर नहीं रह सकता। लिहाज़ा नए अध्यक्ष की तलाश पार्टी और आरएसएस दोनों को है। यह महज़ संयोग नहीं है कि मध्य प्रदेश विधानसभा में शिवराज नेता विपक्ष नहीं बने और न ही उन्हें प्रदेश संगठन की कमान सौंपने की कोई कोशिश की गई। ख़बर यह भी है कि चौहान विदिशा से लोकसभा चुनाव लड़ सकते हैं। मुख्यमंत्री बनने के पहले चौहान विदिशा से ही सांसद थे। यही नहीं, वह बीजेपी पार्लियामेंट्री बोर्ड के सचिव भी रह चुके हैं। बीजेपी के सारे बड़े फ़ैसले बोर्ड की बैठक में ही होते हैं। संघ का मानना है कि शिवराज के क़द के मुताबिक़ उनको बडी भूमिका सौंपी जानी चाहिए।
अंदरखाने इस बात पर भी चर्चा गरम है कि क्यों न उन्हें अमित शाह के बाद पार्टी अध्यक्ष का पद दिया जाए। अमित शाह के बाद अगर वह पार्टी अध्यक्ष हो जाएँ तो किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए।
पार्टी अध्यक्ष को लेकर संघ की मंशा
संघ को यह भी लगता है कि अमित शाह की वजह से बीजेपी में जान तो आई है, लेकिन वह एक चुनावी मशीन भर बन कर रह गई है। फिर मोद-अमित शाह जोड़ी की वजह से संघ की पकड़ भी पार्टी पर ढीली हुई है। संघ को अब एक ऐसे नेता की तलाश है, जो उनकी सुने और अपनी न थोपे। शिवराज उसमें फ़िट बैठते हैं। अमित शाह का पहला कार्यकाल ख़त्म होने के बाद संघ की मंशा थी कि नितिन गडकरी या राजनाथ सिंह में से कोई अध्यक्ष बने। तब इन दोनों नेताओं ने मना कर दिया और अमित शाह बने रहे, जिसका अब संघ को अंदर ही अंदर रंज है।
संघ इस तैयारी में भी है कि अगर लोकसभा में बीजेपी बहुमत के आँकड़े से काफी पीछे रहती है तो फिर उसे मोदी की जगह नए नेता की तलाश करनी होगी। संघ ऐसा नेता चाहेगा, जो गठबंधन की राजनीति में फ़िट हो, सबको साथ ले सके, क्षेत्रीय पार्टियों और नेताओं से उसके दोस्ताना संबंध हों और केंद्र की राजनीति को समझता हो। गडकरी और राजनाथ सिंह उसकी पहली पसंद होंगे। राजनाथ सिंह का केंद्र की राजनीति में अनुभव गडकरी से ज़्यादा है। पर गडकरी को ज़्यादा प्रभावी मंत्री के तौर पर संघ देखता है। ऐसे समय में सबको साथ लेकर चलने वाले पार्टी अध्यक्ष की भी ज़रूरत होगी। ऐसा अध्यक्ष, जिससे दूसरे दलों के नेताओं का 'इगो' न टकराए। ज़ाहिर है संघ की भविष्य की रणनीति में शिवराज प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं।
राष्ट्रीय परिषद की बैठक पर नज़र
अभी तो ये महज़ चर्चाएँ हैं। संघ क्या अपने मन की कर पाएगा, यह सवाल इस बात पर निर्भर करता है कि मोदी की अगुआई में बीजेपी सरकार बना पाती है या नहीं। अगर बहुमत का आँकड़ा बहुत पीछे रहता है तो संघ 'प्लान बी' पर काम करेगा और तब शिवराज, नितिन और राजनाथ बड़ी भूमिकाओं में दिखेंगे। फ़िलहाल तो नज़र चुनाव के पहले होने वाली राष्ट्रीय परिषद की बैठक पर है। इसमें लोकसभा चुनाव के बारे में पार्टी की रणनीति तय होनी है। इस बैठक में यह भी तय होने की संभावना है कि पार्टी राम मंदिर के मसले को कितना खींचेगी और पार्टी ग़रीब सवर्ण के आरक्षण को जनता के बीच कैसे ले जाएगी।
यह बैठक ऐसे समय हो रही है, जब कांग्रेस पार्टी काफ़ी आत्मविश्वास से भरी दिख रही है। राहुल गाँधी हमलावर हैं, रफ़ाल के मसले पर भ्रष्ट्राचार के गंभीर आरोप लग रहे हैं। बेरोज़गारी किसानी का संकट बढ़ा है और अर्थव्यवस्था की हालत ठीक नहीं है। विपक्ष एकजुट होने का प्रयास कर रहा है। टीडीपी, असम गण परिषद जैसे पुराने साथी बीजेपी का साथ छोड़ रहे हैं। शिवसेना और पूर्वोत्तर के कई सहयोगी आँख दिखा रहे हैं। ऐसे में बीजेपी को चुनाव के मद्देनज़र चाल, चरित्र और चेहरे को दुरस्त करने की ज़रूरत है। बैठक इस बारे में अंतिम फ़ैसला कर सकती है।