ठाकुर के कुआं में आग
राजद के राज्यसभा सांसद मनोज झा ने महिला आरक्षण विधेयक पर बहस के दौरान संसद में ओमप्रकाश वाल्मिकी की लिखी कविता “ठाकुर का कुआं” पढ़ी थी। इससे बिहार के कई राजूपत नेता नाराज हो गए हैं। स्थिति यहां तक हो गई है कि बिहार की राजनीति इन दिनों इस कविता के कारण गर्म है। विभिन्न दलों के नेता इस पर बयान दे रहे हैं। महिला आरक्षण और जाति जनगणना को पीछे छोड़ कर अब बिहार में ठाकुर यानि क्षत्रिय जाति के मान सम्मान को लेकर राजनीतिक घमासान शुरू हो गया है।
ख़ास बात ये है कि विपक्षी “इंडिया” गठबंधन और बिहार सरकार में शामिल आरजेडी और जेडीयू के नेता आपस में ही लड़ रहे हैं। इतना ही नहीं आरजेडी के सांसद मनोज झा का विरोध आरजेडी के ही विधायक चेतना आनंद खुलेआम कर रहे हैं। बीजेपी तो इसका फ़ायदा उठाने में जुटी ही है।
कुछ महीने पहले जेल से रिहा हुए बाहुबली राजपूत नेता और पूर्व सांसद आनंद मोहन ने तो ये धमकी भी दे डाली है कि " अगर वो राज्यसभा में होते तो आरजेडी सांसद मनोज झा की जीभ निकाल कर सभापति के सामने फेंक देते।" आनंद मोहन को आईएएस अधिकारी और गोपालगंज के ज़िलाधिकारी जी कृष्णाय्या की हत्या के जुर्म में सज़ा हो चुकी है।
जेल में बंद आनंद मोहन को बिहार सरकार ने कुछ महीने पहले क़ानून बदल कर रिहा कर दिया था। तब आरोप लगा था कि राजपूतों के वोट के लालच में उन्हें रिहा किया गया। उनके बेटे चेतन आरजेडी विधायक हैं और उनकी पत्नी लवली आनंद पूर्व सांसद हैं। चेतन आनंद भी मनोज झा पर खुल कर हमला कर रहे हैं।
दूसरी तरफ़ आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव अब मनोज झा के समर्थन में आ गए हैं। लालू यादव का कहना है कि मनोज झा ने राजपूतों अर्थात ठाकुरों का कोई अपमान नहीं किया। लालू ने कहा कि जो मनोज झा की बातों और कविता को गलत अर्थ में ले रहे हैं उनको बुद्धि नहीं है।
राज्यसभा में कविता पढ़ने के बाद से हो रही राजनीति
इस विवाद की शुरुआत राज्यसभा में महिला आरक्षण विधेयक पर बहस के दौरान हुई। आरजेडी सांसद मनोज झा ने बहस के दौरान "ठाकुर का कुआं" शीर्षक से एक कविता पढ़ी। कविता के लेखक ओम प्रकाश बाल्मीकी हैं। इस कविता में बताया गया है कि किस तरह कुआं और खेत से लेकर सारी संपत्ति पर ठाकुरों का अधिकार है और दलित केवल उनकी मजदूरी करने के लिए हैं।मनोज झा ने कविता पढ़ने से पहले ही साफ़ कर दिया कि वे किसी जाति का अपमान करने के लिए यह कविता नहीं पढ़ रहे हैं बल्कि उनका मानना है कि कविता में जिस ठाकुर का ज़िक्र है वो हम सभी लोगों में मौजूद है। उन्होंने कहा कि ख़ुद उनमें भी ये प्रवृति मौजूद है। मनोज झा का इशारा सवर्ण जातियों के भीतर मौजूद सामंती प्रवृति की तरफ़ था जिसके चलते दलित और ग़रीब सभी तरह के आर्थिक लाभ से दूर, एक उपेक्षित जीवन जी रहे हैं।
इस कविता को पढ़ने के दौरान मनोज झा ने बार बार कहा कि वो किसी जाति के ख़िलाफ़ नहीं बल्कि प्रवृति के ख़िलाफ़ हैं। लेकिन उनकी सफ़ाई काम नहीं आयी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के राजपूत नेताओं ने इसे अपनी जाति का अपमान माना और मनोज झा पर राजनीतिक तीर चलना शुरू कर दिया।
जेडीयू के सांसद सुनील कुमार सिंह पिंटू और विधायक संजय सिंह ने मनोज झा के ख़िलाफ़ खुल कर बयान दिया। बाद में आरजेडी विधायक और आनंद मोहन के बेटे चेतन आनंद भी मैदान में कूद पड़े। बिहार सरकार में बीजेपी कोटा से पूर्व मंत्री नीरज सिंह बबलू ने तो यहां तक कह डाला कि ठाकुरों के कारण ही देश सुरक्षित है। उनका अपमान बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। शुरू में आरजेडी प्रवक्ता शक्ति सिंह यादव मनोज झा के बचाव में सामने आए। उन्होंने कहा कि विरोध करने वालों ने कविता का मतलब नहीं समझा। यह कविता वास्तव में सामंती प्रवृति के ख़िलाफ़ है।
बिहार में जाति की राजनीति का संकट
इस विवाद कारण महज़ एक कविता है या फिर बिहार के सवर्णो का संकट इसके बहाने फूट पड़ा है। दरअसल बिहार के सवर्ण, जाति जनगणना के पूरी तरह ख़िलाफ़ हैं। सवर्णों को डर है कि जाति जनगणना के बाद जाति की संख्या के हिसाब से आरक्षण की मांग उठेगी। इससे उनका नुक़सान होगा क्योंकि ज़्यादातर नौकरियाँ संख्या के हिसाब से पिछड़ी जातियों के पास जा सकती है। सवर्ण जातियां, महिला आरक्षण में पिछड़ों को कोटा देने के भी ख़िलाफ़ हैं। लेकिन वोट की राजनीति के कारण जाति जनगणना और महिला आरक्षण में कोटे का विरोध करना उनके लिए संभव नहीं है। इसलिए उन्होंने ठाकुर गौरव का नक़ली मुद्दा उठा लिया है।ओम प्रकाश बाल्मीकी की कविता हिंदी के मशहूर लेखक प्रेमचंद की इसी शीर्षक से लिखी कहानी से प्रेरित है। प्रेमचंद ने सामंती भारत में दलितों की व्यथा को चित्रित किया है। इसका किसी जाति विशेष से कोई लेना देना नहीं है। वैसे भी ठाकुर उप नाम का उपयोग केवल क्षत्रीय या राजपूत जाति के लोग ही नहीं करते हैं। यह उप नाम ब्राह्मण, भूमिहार, नाई, यादव और गंगौता जैसी जातियों में भी पाया जाता है।
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर नाई जाति से थे। पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेता सीपी ठाकुर भूमिहार हैं । यही नहीं बंगाल के लोग देवता को ठाकुर कहते हैं। मनोज झा का विरोध करने वाले नादान नहीं हैं। दरअसल वो ठाकुर के बहाने अपने जातिवादी एजेंडा को आगे बढ़ा रहे हैं। लेकिन आरजेडी और जेडीयू नेताओं के इस विवाद में कूदने से बीजेपी के नेता ख़ुश हैं क्योंकि उन्हें राजपूतों को साधने का नया मौक़ा मिल गया है।