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आख़िर कब तक मुख्यमंत्री बने रहेंगे नीतीश कुमार?

आख़िर कब तक मुख्यमंत्री बने रहेंगे नीतीश कुमार?

पटना में जनता दल यूनाइटेड की दो दिनों की बैठक के बाद नीतीश कुमार का जो बयान सामने आया है उसमें अरुणाचल प्रदेश की घटना का दर्द साफ़ झलक रहा है। क्या बिहार की राजनीति में कुछ नया होने वाला है? 

नीतीश कुमार बिहार के वैसे मुख्यमंत्री हैं जिन्हें अपने बयान के मुताबिक़ सीएम बनने की एक पाई इच्छा नहीं थी। पटना में अपनी पार्टी जनता दल यूनाइटेड की दो दिनों की बैठक के बाद उनका जो बयान सामने आया है उसमें अरुणाचल प्रदेश की घटना का दर्द साफ़ झलक रहा है लेकिन उनका यह बयान महज दबाव बनाने के लिए है, या वाक़ई बिहार की राजनीति में कुछ नया होने वाला है? 

यह सवाल इसलिए उभर रहा है क्योंकि पार्टी के नये अध्यक्ष आरसीपी सिंह ने इशारे से धोखे की बात कही है।

अरुणाचल प्रदेश में जदयू के सात में से छह विधायकों के बीजेपी में शामिल होने को औपचारिक रूप 23 दिसंबर को मिला। इसके बारे में जब तीन दिन पहले नीतीश कुमार से सवाल किया गया तो उन्होंने टालने के अंदाज़ में कहा कि अभी तो पार्टी की बैठक है लेकिन जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में उनके भाषण से उनका दर्द छलक गया।

विधानसभा चुनाव में महज 43 सीटों पर सिमटने के बाद एक सवाल पर नीतीश कुमार ने कहा था कि उन्हें सीएम बनने की इच्छा नहीं है। उन्होंने राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में उसी बात को दोहराया। उन्होंने कहा कि उन्होंने बीजेपी नेतृत्व के सामने भी यह बात रखी थी कि वह मुख्यमंत्री नहीं बनना चाहते और चाहते थे कि बीजेपी की ओर से ही कोई मुख्यमंत्री बने। नीतीश के मुताबिक़ बीजेपी नेतृत्व इस पर राज़ी नहीं हुआ और मुख्यमंत्री बनने का दबाव डाला गया।

नीतीश कुमार ने 16 नवंबर को सातवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी मगर लगभग डेढ़ महीने बाद भी सीएम बनने में अपनी अनिच्छा व्यक्त कर एक तरह से वह बीजेपी के अहसान से उबरने की कोशिश भी कर रहे हैं और अरुणाचल की घटना के बाद दबाव बनाकर बीजेपी को बैकफुट पर लाना चाहते हैं। 

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हालाँकि नीतीश ने पार्टी को गठबंधन के घटक से इतना तगड़ा झटका मिलने पर कोई स्पष्ट बात नहीं की। बस इतना कहा कि उनके दल को वार्ड काउंसलर के चुनाव में अच्छी कामयाबी मिली है। इस मामले पर उनके नये अध्यक्ष ने ज़्यादा धारदार बात की।

जदयू के नये अध्यक्ष आरसीपी सिंह ने कहा कि हम गठबंधन धर्म निभाना जानते हैं और दूसरों से भी यही अपेक्षा रहती है। बकौल आरसीपी, हम जिसके साथ रहते हैं पूरी ईमानदारी के साथ रहते हैं। उन्होंने धोखा न देने और न धोखा खाने की बात की जिसे अरुणाचल प्रदेश की घटना से जोड़कर देखा जा रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि उनके दल का विस्तार किया जाएगा जिसका मतलब यह भी है कि उनकी पार्टी दूसरे राज्यों में बीजेपी के लिए एक हद तक चुनौती पेश करने की स्थिति में बने रहना चाहती है।

जदयू के वरिष्ठ नेता और प्रधान महासचिव केसी त्यागी ने जदयू की सीटों की संख्या कम होने के कारण बार-बार उठ रहे सवालों का नया

जवाब पेश किया। त्यागी ने कहा,

नीतीश कुमार के नेतृत्व को संख्याबल से जोड़कर नहीं देखा जा सकता। ...जदयू को वोट तो पहले की तरह मिले हैं लेकिन लोजपा के भ्रम फैलाने से उनकी सीट कम आयी है।


केसी त्यागी

आरसीपी को क्यों बनाया अध्यक्ष?

नीतीश कुमार 2016 में पहली बार जदयू के अध्यक्ष बने थे। उनसे पहले जाॅर्ज फर्नांडिस और शरद यादव जदयू के अध्यक्ष बने थे। 2019 में दोबारा अध्यक्ष बनने के बाद नीतीश अभी लगभग सवा साल और इस पद पर रह सकते थे लेकिन अब उनका बयान आया है कि वह मुख्यमंत्री रहते हुए पार्टी को पूरा समय नहीं दे पा रहे हैं। नीतीश कुमार को पाँच साल से अधिक मुख्यमंत्री रहते हुए जदयू अध्यक्ष बने रहने के बाद पार्टी को समय नहीं देने का एहसास हुआ है। दिलचस्प यह है कि उनकी पार्टी के नये अध्यक्ष पद के लिए न तो किसी चुनाव की प्रक्रिया अपनायी गयी और न ही इसकी घोषणा हुई।

नीतीश कुमार ने ख़ुद ही अध्यक्ष पद से हटने की बात की और ख़ुद ही आईएएस से वीआरएस लेकर जदयू में शामिल हुए रामचंद्र प्रसाद सिंह का नाम राष्ट्रीय कार्यकारिणी में अध्यक्ष पद के लिए प्रस्तावित किया और फिर वह कार्यकारिणी की सर्वसम्मति से अध्यक्ष घोषित किये गये। 

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1984 के बैच के यूपी कैडर के आईएएस अधिकारी आरसीपी सिंह को आमतौर पर आरसीपी के नाम से पुकारा जाता है जो महज़ दस साल में पार्टी के अध्यक्ष मनोनीत किये गये हैं हालाँकि उनसे काफ़ी वरिष्ठ राजनेता जदयू में हैं।

आरसीपी वैसे भी जदयू में नंबर 2 माने जाते थे। वह नीतीश कुमार के रेल मंत्री रहने के वक़्त में उनके साथ आये थे और मुख्यमंत्री बनने के बाद नीतीश ने उन्हें अपना प्रधान महासचिव बनाया था। इस तरह यह साथ क़रीब 22 साल का माना जाता है।

आरसीपी नीतीश कुमार के स्वजातीय हैं और उनके ही ज़िले से आते हैं। उनके बारे में यह माना जाता है कि वह नीतीश कुमार के यसमैन हैं, शायद इसीलिए और बीजेपी को संदेश देने के लिए आरसीपी ने अपने भाषण में यह भी कहा कि नीतीश कुमार के ख़िलाफ़ कोई बात बर्दाश्त नहीं करेंगे।

दूसरी ओर, बिहार की राजनीति के जानकार जीतन राम मांझी के मामले की भी याद दिलाते हैं जब नीतीश कुमार ने 2014 के लोकसभा चुनाव में क़रारी हार के बाद मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा देकर मांझी को मुख्यमंत्री बनाया था और कुछ ही दिनों में दोनों में खटपट शुरू हो गयी थी। आख़िरकार मांझी को इस्तीफ़ा देना पड़ा था और उन्होंने अपनी नयी पार्टी बनायी थी।

लव जिहाद क़ानून पर मतभेद

नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ मिलकर चौथी बार सरकार तो बना ली लेकिन कई मामलों में जदयू के साथ उसके रिश्ते मतभेदों के साये में चल रहे हैं। अभी हाल में आरएसएस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने बिहार में भी यूपी की तर्ज पर बिहार में भी लव जिहाद क़ानून की मांग की है। इसमें कोई ताज्जुब की बात नहीं होगी कि आने वाले दिनों में यही माँग बीजेपी की ओर से भी की जाए। शायद इसका अंदाज़ा जदयू को है, इसीलिए केसी त्यागी ने इससे असहमति जताते हुए कहा कि इससे सांपद्रायिक सद्भाव पर असर पड़ेगा। उन्होंने कहा कि हमारा संविधान दो वयस्कों को अपना जीवन साथी चुनने की आज़ादी देता है। 

वीडियो में देखिए, क्या बीजेपी नीतीश कुमार को हटाना चाहती है?

लगभग डेढ़ महीना बीत जाने के बाद भी बिहार मंत्रिमंडल का विस्तार न होने को भी उसी मतभेद के साये का हिस्सा माना जा रहा है। बीजेपी के सूत्र गृह मंत्रालय से नीतीश कुमार को अलग रखने, गृह विभाग के प्रधान सचिव को बदलने और बीजेपी को यह मंत्रालय देने की बात कह रहे हैं। दूसरी ओर नीतीश कुमार ने कहा है कि बीजेपी की ओर से नाम आ जाएगा तो मंत्रिमंडल विस्तार होगा। यह मतभेद बिहार से निकलकर दिल्ली तक है। दिल्ली का मतभेद केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होने को लेकर है। इस बारे में केसी त्यागी ने फिर वही बात दोहरायी कि अगर जदयू को सांसदों की संख्या के अनुसार भागीदारी मिलेगी तभी यह मंजूर होगा।

इस बीच विपक्षी राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस जदयू के प्रति नरमी दिखाने की कोशिश में है। आरजेडी ने कहा है कि जदयू को बिहार में भी अरुणाचल कांड होने के ख़तरे का एहसास है। दूसरी तरफ़ कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सदानंद सिंह ने जदयू के नये अध्यक्ष आरसीपी सिंह को बधाई संदेश देकर नयी राह बनाने की कोशिश की है।

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