महाराष्ट्र में कोरोना संक्रमण उतना ज़्यादा फैला है जितना पहले कभी नहीं रहा। एक दिन में 30 हज़ार से भी ज़्यादा संक्रमण के मामले आए। इससे एक दिन पहले 27 हज़ार मामले आए थे। राज्य में संक्रमण की दूसरी लहर शुरू हो गई है। पहली लहर के दौरान एक दिन में सबसे ज़्यादा संक्रमण के मामले पिछले साल 11 सितंबर को आए थे और तब 24 हज़ार 886 संक्रमण के मामले रिकॉर्ड किए गए थे। इसके बाद हालात सुधरते आए थे और स्थिति तो ऐसी आ गई थी कि स्कूल खोल दिए गए और मुंबई की लोकल ट्रेनें भी शुरू कर दी गईं। तो ऐसा क्या हो गया कि अब यह फिर से बेकाबू है?
राज्य में संक्रमण के मामले आख़िर क्यों बढ़ रहे हैं? इसके लिए अलग-अलग कारण बताए जा रहे हैं। पिछले महीने जब संक्रमण के मामले बढ़ने शुरू हुए तो कुछ रिपोर्टों में कहा गया कि मुंबई में लोकल ट्रेनों को फिर से चालू करने से स्थिति बदली है। लेकिन फिर तर्क दिया गया कि विदर्भ जैसे जिन क्षेत्रों में लोकल ट्रेनें नहीं चलतीं वहाँ भी मामले बढ़ रहे हैं।
कोरोना संक्रमण को नियंत्रित करने से जुड़े रहे जानकार कहते हैं कि हाल में ग्राम पंचायत चुनाव के कारण भी संक्रमण तेज़ी से फैला होगा। पिछले एक साल से शादी समारोह नहीं हुए थे तो अब फिर से शादी समारोह शुरू हुए हैं और एक कारण यह भी हो सकता है। स्कूल खुलने और होस्टल में छात्रों के इकट्ठे होने से संक्रमण के तेज़ी से फैलने का कारण भी बताया गया। संक्रमण के ज़्यादा मामले आने का एक कारण टेस्टिंग को फिर से बढ़ाए जाने को भी माना जा रहा है।
ये कारण तो सामान्य तौर पर ही समझ में आते हैं, लेकिन विशेषज्ञों का क्या कहना है इस पर, यह जानने से पहले यह जान लीजिए कि महाराष्ट्र में हाल के दिनों में क्या हालात बने हैं।
राज्य में पिछले साल नवंबर-दिसंबर में जब संक्रमण के मामले कम होने लगे, लॉकडाउन हटाया गया, सख़्ती कम की गई और फिर वैक्सीन आ गई तो कोरोना से जुड़े नियमों को भी लोग भूलने लगे। 1 फ़रवरी से मुंबई की लोकल ट्रेनें शुरू की गईं।
मास्क को लोगों ने उतार फेंका। बसों-ट्रेनों में भीड़ बढ़ने लगी। शादियों में भीड़ बढ़ गई। सोशल डिस्टेंसिंग को धत्ता बता दिया गया। और बड़ी संख्या में लोगों में यह मानसिकता घर कर गई कि कोरोना अख़बारों और न्यूज़ चैनलों द्वारा बढ़ा-चढ़ाकर बताई गई एक ख़बर भर है!
लेकिन इसका नतीजा क्या हुआ, यह सबके सामने है। महाराष्ट्र में सक्रिय संक्रमित लोगों की संख्या 2 लाख 11 हज़ार से ज़्यादा हो गई और हर रोज़ 30 हज़ार से ज़्यादा संक्रमण के मामले आने लगे हैं।
फ़रवरी महीने के आख़िर में जब कोरोना के केस ज़्यादा बढ़ने लगे थे तब महाराष्ट्र के प्रमुख महामारी विज्ञानी प्रदीप आवटे ने तीन कारण बताए थे। ‘इंडिया स्पेंड’ की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा, ‘पहला कारण, उत्तर भारत में साल के शुरुआती हिस्से में ठंड का असर उत्तर-पूर्व विदर्भ क्षेत्र सहित महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में हुआ, और इससे वायरस के फैलने का ख़तरा हुआ होगा।’ उन्होंने कहा कि दूसरा कारण तो यह है कि '15 जनवरी को राज्य के 14,000 गाँवों में स्थानीय निकाय चुनाव थे, और कई लोग शहरों से गाँवों में अपना वोट डालने के लिए लौटे, वे संभवतः वायरस को अपने साथ ले गए।’
उन्होंने तीसरा कारण शादियों को बताया। उन्होंने कहा कि पिछले एक साल से शादियों व अन्य सामाजिक कार्यों को रोक दिया गया था और जब लॉकडाउन हटाया गया तो बड़ी तादाद में शादियाँ हुईं।
उनका इशारा साफ़ था कि संक्रमण के मामले गाँवों में फैल रहे हैं। अभी कुछ दिन पहले जब प्रधानमंत्री मोदी ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ कोरोना पर चर्चा की थी तब प्रधानमंत्री ने भी कुछ ऐसी ही बात कही थी।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि पहले जो दूसरे और तीसरे स्तर के शहर उतने प्रभावित नहीं हुए थे वे इस बार प्रभावित हो रहे हैं। प्रधानमंत्री ने चेताया, 'इस आपदा में अगर हम बच पाए तो इसकी एक वजह यह थी कि हम गाँवों को इससे मुक्त रख पाए थे। इस बार संक्रमण दूसरे और तीसरे स्तर के शहरों में पहुँच रहा है।'
प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि यदि गाँवों में संक्रमण फैला तो उसको संभालने में व्यवस्थाएँ कम पड़ जाएँगी। उन्होंने इसके सुधार करने की भी बात कही।
छोटे शहरों, गाँवों में संक्रमण क्यों?
महाराष्ट्र के अकोला, अमरावती, बुलढाणा, पिंपरी चिंचवाड़, नाशिक, औरंगाबाद और नागपुर जैसे ज़िलों में संक्रमण के मामले ज़्यादा आ रहे हैं। राज्य में जब पहली लहर आई थी तो ये ज़िले इतने ज़्यादा प्रभावित नहीं थे, लेकिन दूसरी लहर में ये ज़िले ही ज़्यादा प्रभावित हैं। अब तक शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना संक्रमण नहीं फैला था। शहरों में बड़ी आबादी संक्रमित हो चुकी है। यह सीरो सर्वे से भी जाहिर होता रहा है।
मुंबई में ही सीरो सर्वे में पता चला है कि शहर के 50 फ़ीसदी से ज़्यादा लोग संक्रमित होकर ठीक भी हो चुके हैं। यानी ऐसे लोगों में एंटी बॉडी बन चुकी है और हर्ड इम्युनिटी जैसी स्थिति आ गई है।
हर्ड इम्युनिटी से मतलब है कि इतनी बड़ी जनसंख्या में कोरोना के ख़िलाफ़ एंटी बॉडी बन जाना कि फिर कोरोना के फैलने का ख़तरा ही नहीं रहे। सामान्य तौर पर माना जाता है कि यदि किसी क्षेत्र की जनसंख्या में 60-70 फ़ीसदी लोगों में हर्ड इम्युनिटी विकसित हो जाए तो फिर कोरोना फैल नहीं पाएगा।
नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर एपिडेमियोलॉजी के निदेशक मनोज मुरेकर और कोरोना के लिए भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के राष्ट्रीय सीरो-सर्वे के प्रमुख लेखक मनोज मुरेकर ने ‘इंडिया स्पेंड’ से कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी बहुत अधिक आबादी संक्रमित नहीं है। हालाँकि उन्होंने यह भी कहा कि मुंबई और पुणे जैसे बड़े शहरों में भी संक्रमण के मामले ज़्यादा आ रहे हैं। यह एक रहस्य जैसा है। ऐसी आशंका है कि इन शहरों में अब उन क्षेत्रों में संक्रमण फैल रहा हो जहाँ पहली लहर के दौरान नहीं फैला था यानी तब उन्होंने अच्छी तरह से ख़ुद का बचाव किया होगा।
विदर्भ के कुछ ज़िलों में कोरोना मामलों में बढ़ोतरी के पीछे के कारणों पर महाराष्ट्र सरकार के तकनीकी सलाहकार डॉ. सुभाष सालुंके ने तीन कारण बताए हैं। ‘पीटीआई’ की रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने कहा- पहला है वायरस, इसकी संरचना, नये स्ट्रेन या क़िस्म और संक्रमण की क्षमता; दूसरा कारण वह व्यक्ति है जो वायरस से संक्रमित होता है और इसे दूसरों तक पहुँचाता है, और तीसरा कारण है पर्यावरण, मौसम, घरों की बनावट और प्रदूषण।
अब चूँकि कोरोना की वैक्सीन आ गई है तो ऐसी उम्मीद की जा रही है कि धीरे-धीरे यह नियंत्रित हो जाएगा। लेकिन यह भी पूरे पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता है कि ऐसा होगा ही। ऐसा इसलिए कि अब जो रिपोर्टें आ रही हैं उसमें देखा जा रहा है कि कोरोना से संक्रमित व्यक्ति में ठीक होने पर जो एंटी बॉडी बनती है वह धीरे-धीरे कमजोर पड़ती जाती है और इसलिए कई लोग दूसरी बार भी संक्रमित हो जा रहे हैं। कोरोना का नया स्ट्रेन यानी नये रूप में कोरोना के आने के बाद उस पर वैक्सीन कितनी कारगर होगी, इस पर शोध किया जाना बाक़ी है।