आम आदमी पार्टी (आप) और कांग्रेस के बीच गठबंधन होगा या नहीं, यह बात किसी अतंहीन कहानी जैसी हो गई है। हर दिन इसमें नए बयान आते हैं और यह मुद्दा सुलझने के बजाए उलझता चला जाता है। अब ताज़ा बयान आया है दिल्ली कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अजय माकन का। माकन ने कहा है कि दिल्ली में अगर कांग्रेस और 'आप' में गठबंधन नहीं हुआ तो बीजेपी सातों सीटें जीत जाएगी, उसके बाद यह चर्चा एक बार फिर जोर-शोर से सुनाई दे रही है कि क्या अब दोनों दलों में गठबंधन होने जा रहा है।
लोकसभा चुनाव सामने हैं और दिल्ली में छठे चरण में यानी 12 मई को वोट डाले जाने हैं। कुल मिलाकर दो महीने से कम का समय बचा है और गठबंधन करें या नहीं, कांग्रेस इसे लेकर बुरी तरह कंफ़्यूज्ड है। आइए, 'आप' से गठबंधन को लेकर कांग्रेस के कंफ़्यूज़न को समझते हैं।
बात शुरू करते हैं 2013 के विधानसभा चुनाव परिणाम से। दिसंबर 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में 'आप' को 28, कांग्रेस को 8 और बीजेपी को 32 सीटें मिली थीं। किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत न मिलने से कांग्रेस और 'आप' ने मिलकर सरकार चलाई थी। लेकिन यह सरकार ज़्यादा दिन तक नहीं चल सकी और 49 दिन में गिर गई। उसके बाद तो मानो कांग्रेस और 'आप' एक-दूसरे के जानी दुश्मन हो गए।
माकन के भी बदले सुर
अजय माकन के प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए कांग्रेस ने केजरीवाल सरकार के ख़िलाफ़ ख़ूब प्रदर्शन किए। अजय माकन ने कोई मौक़ा नहीं छोड़ा कि वह केजरीवाल सरकार को कठघरे में खड़ा करें। लेकिन अब माकन के सुर पूरी तरह बदल चुके हैं।
‘जनसत्ता बारादरी’ में शिरकत करने पहुँचे माकन ने शुक्रवार को इन आशंकाओं को खारिज किया कि दिल्ली में कांग्रेस-‘आप’ के गठबंधन से कांग्रेस को भविष्य में नुक़सान होगा और उसकी हालत यूपी और बिहार जैसी हो जाएगी। उन्होंने कहा कि जब आप बराबर-बराबर सीटों पर चुनाव लड़ते हैं तो ऐसी सूरत में आपको कोई नुकसान नहीं होता।
जो माकन कुछ महीने पहले तक 'आप' के साथ गठबंधन के घनघोर विरोधी थे वह भी अब गठबंधन के समर्थन में आ गए। माकन या कांग्रेस के स्टैंड को देखकर यही कहा जा सकता है कि आख़िर इतना कंफ़्यूजन क्यों है भाई?
2017 के नगर निगम चुनाव आए, केजरीवाल बुरी तरह हारे लेकिन कांग्रेस की स्थिति 2015 के मुक़ाबले कुछ सुधर गई। 2019 का चुनाव आते-आते यह चर्चा जोर पकड़ने लगी कि क्या बीजेपी को हराने के लिए कांग्रेस और 'आप' साथ आएँगे।
हाल ही के महीनों में केजरीवाल कई बार कह चुके हैं कि वह कांग्रेस को गठबंधन के लिए कई बार समझा चुके हैं लेकिन वह इसके लिए तैयार नहीं है। केजरीवाल कह चुके हैं कि दिल्ली में बीजेपी को हराने के लिए गठबंधन होना ज़रूरी है। यहाँ तक कि केजरीवाल दिल्ली नहीं तो हरियाणा में ही सही, कांग्रेस के साथ गठबंधन की खुलेआम इच्छा जता चुके हैं।
आँकड़े भी गठबंधन के पक्ष में
आँकड़ों को देखें तो पिछले लोकसभा चुनावों में दिल्ली में बीजेपी को 46 फ़ीसदी, 'आप' को 33 फ़ीसदी और कांग्रेस को 15 फ़ीसदी वोट मिले थे। अगर 'आप' और कांग्रेस के वोट मिला लिए जाएँ तो मोदी लहर में भी बीजेपी को दिल्ली में हराया जा सकता था। लेकिन दोनों दलों के अलग-अलग लड़ने के कारण बीजेपी सातों सीटों पर जीत गई थी। यही आँकड़ा देकर केजरीवाल कांग्रेस को गठबंधन करने के लिए मनाने की कोशिश करते रहे हैं लेकिन कांग्रेस स्टैंड नहीं ले पाई।
पवार के घर हुई थी मुलाक़ात
गठबंधन की संभावनाओं पर बातचीत के दौरान यह ख़बर भी आई थी कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार के घर पर केजरीवाल और राहुल गाँधी की बातचीत हुई थी। लेकिन तब भी इसे लेकर कोई फ़ैसला राहुल गाँधी नहीं कर पाए थे। ख़बरें यह भी आई थीं कि राहुल गाँधी तो गठबंधन के पक्ष में हैं लेकिन दिल्ली के कांग्रेस नेता और कार्यकर्ता इसके लिए क़तई तैयार नहीं हैं।
प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए अजय माकन खुलकर 'आप' के साथ गठबंधन को नक़ारते रहे और जब उन्होंने प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा दिया तो इस बात की संभावना प्रबल हो गई कि अब दिल्ली में दोनों दलों में गठबंधन हो सकता है। माकन के बाद प्रदेश अध्यक्ष बनीं शीला दीक्षित ने भी कहा कि वह 'आप' के साथ गठबंधन नहीं चाहती हैं।
दबाव बनाने की रणनीति फ़ेल
हाल ही में 'आप' ने दिल्ली की छह सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी थी। माना जा रहा था कि केजरीवाल ने कांग्रेस पर दबाव डालने के लिए ऐसा किया था। लेकिन इसका कोई फ़ायदा नहीं हुआ क्योंकि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने गठबंधन पर चर्चा करने के लिए दिल्ली के नेताओं की जो बैठक बुलाई थी उसमें 'आप' के साथ न जाने का फ़ैसला किया गया था। मतलब कांग्रेस तय नहीं कर पा रही थी कि किया क्या जाए।लेकिन कुछ ही दिन पहले यह ख़बर आई कि दिल्ली कांग्रेस के प्रभारी पीसी चाको इस मसले पर एक रिकॉर्डेड ऑडियो मैसेज भेजकर बूथ लेवल के कार्यकर्ताओं की राय लेंगे। रिकॉर्डेड ऑडियो मैसेज भेजकर कांग्रेस कार्यकर्ताओं से पूछा गया कि दिल्ली में 'आप' के साथ गठबंधन होना चाहिए या नहीं।
बुधवार शाम से गुरुवार शाम तक कांग्रेस कार्यकर्ताओं को भेजे गए इन मैसेज सर्वे की रिपोर्ट आ गई है और इसे राहुल गाँधी को भेज दिया गया है। बताया जाता है कि राहुल दो से तीन दिन में इस पर फ़ैसला ले सकते हैं।
रिकॉर्डेड ऑडियो मैसेज की बात सामने आने पर शीला दीक्षित ने साफ़ कहा कि उन्हें इस बारे में कुछ पता नहीं है और राहुल गाँधी फ़ैसला कर चुके हैं कि दिल्ली में ‘आप’ के साथ गठबंधन नहीं होगा। यानी कि कांग्रेस फिर कंफ़्यूज हो गई कि वह गठबंधन के साथ जाए या नहीं।
ऐसे में जब 'आप' की ओर से खुला ऑफ़र है कि दिल्ली के साथ-साथ हरियाणा में भी दोनों दलों का गठबंधन हो तो कांग्रेस क्यों कंफ़्यूज है। या तो कांग्रेस, 'आप' को हाँ कह दे या साफ़ तौर पर मना कर दे। बहरहाल, पीसी चाको, अजय माकन के रुख के बाद यह सवाल तो खड़ा हो ही गया है कि कांग्रेस गठबंधन के मसले पर तय नहीं कर पा रही है कि उसे आख़िर करना क्या चाहिए?