एक ड्राइवर के बेटे की सीएम बनने की असली कहानी
हिमाचल प्रदेश के नवनियुक्त मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू का इस टॉप पद तक पहुंचना आसान नहीं था लेकिन कांग्रेस से उनकी अटूट निष्ठा हर चीज पर भारी पड़ी। हिमाचल के पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह जो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भी हैं, उनको मनाना इतना आसान नहीं था। कांग्रेस को बैठक पर बैठक करनी पड़ी, तब जाकर प्रतिभा सिंह ने अपनी सहमति दी।
हालांकि हिमाचल में कांग्रेस की जीत और सुक्खू की नियुक्ति का श्रेय प्रियंका गांधी वाड्रा को दिया जा रहा है, लेकिन हकीकत यही है कि चार बार के विधायक सुक्खू पार्टी नेता राहुल गांधी के करीबी माने जाते हैं।
कांग्रेस आलाकमान की सूझबूझ भी इस चयन के पीछे नजर आई। उसने सुक्खू को सीएम और मुकेश अग्निहोत्री को डिप्टी सीएम का पद देकर क्षत्रिय यानी ठाकुर-ब्राह्मण का गजब का संतुलन साधा है। इस पहाड़ी राज्य में राजपूत सबसे प्रमुख जाति है। कोई राजनीतिक दल उसके रुतबे को नजरन्दाज नहीं कर सकता। हिमाचल के पिछले छह मुख्यमंत्रियों में से पांच राजपूत रहे - डॉ वाईएस परमार, राम लाल ठाकुर, वीरभद्र सिंह, पीके धूमल और जय राम ठाकुर सभी राजपूत। सिर्फ शांता कुमार ऐसे थे जो गैर राजपूत सीएम बने।
मूल रूप से हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले के नादौन के रहने वाले सुक्खू अपने कॉलेज के वर्षों के दौरान कांग्रेस के छात्र विंग एनएसयूआई में शामिल हो गए।
सुक्खू ने 1998 से 2008 तक प्रदेश युवा कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में काम किया। उन्हें 2013 में हिमाचल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था। वह 13 वीं हिमाचल प्रदेश विधानसभा के सदस्य हैं और नादौन विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं।
गुरुवार को विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद सुक्खू हिमाचल प्रदेश में मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में उभरे थे। उनके पिता रसील सिंह बस ड्राइवर थे। संघर्ष के अपने शुरुआती दिनों में वो छोटा शिमला में दूध का कारोबार करते थे। उनकी पत्नी गृहणी हैं और वो कल रविवार को शिमला में होने वाले शपथ ग्रहण समारोह में नादौन से आ रही हैं।
हिमाचल में विधानसभा चुनाव 12 नवंबर को हुए थे और नतीजे 8 दिसंबर को घोषित किए गए। कांग्रेस ने 40 सीटें जीतकर अपनी बड़ी जीत से खुशी मनाई, जबकि बीजेपी ने 25 सीटें जीतीं।
58 साल के सुक्खू के लिए आम सहमति बनाना आसान नहीं था क्योंकि प्रतिभा सिंह जोरदार विरोध कर रही थीं। उनके विरोध की वजह का अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है क्योंकि सुक्खू ने कभी भी वीरभद्र जैसी बड़ी शख्सियत का मुकाबला करने में भी संकोच नहीं किया और अक्सर बतौर सीएम वीरभद्र सिंह को भी निशाने पर लिया था। यानी वो पार्टी में अपनी आलोचना को स्पष्ट रूप से रखते थे।
प्रतिभा सिंह और सीएलपी नेता मुकेश अग्निहोत्री को आलाकमान के दूतों, छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल, भूपेंद्र सिंह हुड्डा और राजीव शुक्ला किसी तरह शांत किया और सुक्खू को सीएलपी नेता के रूप में निर्वाचित करने में कामयाब रहे।
दिलचस्प बात यह है कि सुक्खू एक आम विधायक से सीधे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर पहुंचा दिए गए। यह कांग्रेस आला कमान की ताकत थी जो उसने दिखाई। सुक्खू पार्टी काडर में काफी लोकप्रिय हैं और बुरे हालात में पार्टी नहीं छोड़ी। आलाकमान ने उनको निष्ठा का इनाम दिया है। एक मंत्री होने की बात तो छोड़िए, उन्होंने अपने लगभग तीन दशक लंबे राजनीतिक करियर में मुख्य संसदीय सचिव (सीपीएस) या किसी बोर्ड या निगम के अध्यक्ष का पद भी नहीं संभाला है।
सुक्खू के पक्ष में जो बात गई वह कांग्रेस के 40 विधायकों के बहुमत का समर्थन था। इसके अलावा उन्हें राहुल और प्रियंका सहित गांधी परिवार का समर्थन मिलने की बात भी थी। कांग्रेस ने सुक्खू के गृह जिले हमीरपुर में पांच में से चार सीटें जीतकर बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है जबकि एक सीट निर्दलीय ने जीता था। कांग्रेस ने हमीरपुर, ऊना और बिलासपुर के तीनों जिलों में भी बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है।