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बड़ा घोटाला या बेतुकी हाय तौबा, रफ़ाल तो तूफ़ान निकला! 

बड़ा घोटाला या बेतुकी हाय तौबा, रफ़ाल तो तूफ़ान निकला! 

रफ़ाल सौदे पर भारतीय राजनीति में तूफ़ान मचा है। कहीं ‘सबसे बड़े घोटाले’ का शोर है तो कहीं ‘राष्ट्रहित के सौदे’ का गुणगान। तो सच क्या है? 

कांग्रेस का आरोप 

कांग्रेस ने आरोप लगाया कि एनडीए सरकार अनिल अंबानी की निजी कंपनी रिलायंस को फायदा पहुंचा रही है। तत्कालीन फ़्रान्सीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने भी कहा, ‘भारत की सरकार ने जिस सर्विस ग्रुप का नाम दिया, उससे दसॉ ने बातचीत की। दसॉ ने अनिल अंबानी से संपर्क किया। हमारे पास कोई विकल्प नहीं था। हमें जो वार्ताकार दिया गया, हमने स्वीकार किया।’ 

सरकार और भाजपा की सफ़ाई

ओलांद के बयान पर भारत सरकार की ओर से कहा गया कि इसकी जांच की जाएगी। अरुण जेटली ने इशारों में आरोप लगाया कि राहुल गांधी फ्रांस्वा ओलांद से मिलीभगत कर झूठे आरोप लगा रहे हैं। रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण ने अलग-अलग बयान दिए। उन्होंने एक बार कहा कि यूपीए सरकार ने यह बदलाव किया था तो दूसरी बार कहा कि एचएएल सक्षम नहीं है।

क्या ओलांद-अंबानी में कोई संबंध है

हाल ही में फ्रांस्वा ओलांद और अनिल अंबानी के बीच संबंध बताया गया था। आरोप लगे कि रिलायंस एंटरटेनमेंट और फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद की पार्टनर Julie Gayet के बीच एक फिल्म प्रोड्यूस करने का समझौता हुआ था। समझा जाता है कि इन्हीं आरोपों को लेकर ओलांद ने सफ़ाई दी थी और कहा था कि रफ़ाल सौदे में अनिल अंबानी की रिलायंस का नाम भारत सरकार ने तय किया है।हालांकि, रिलायंस एंटरटेनमेंट ने सफ़ाई दी कि हमारी कंपनी ने जूली गेयेट के साथ कोई समझौता नहीं किया था। रिलायंस ने फिल्म बनाने के लिए एक फ्रेंच फर्म विसवायर्स कैपिटल के साथ समझौता किया है। 

तो क्या कभी स्थिति साफ़ हो पाएगी

कांग्रेस रफ़ाल मामले में संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी की मांग पर अड़ी है, लेकिन सरकार ने इससे इनकार किया है। वित्तमंत्री अरुण जेटली ने साफ़ कहा है कि सौदा रद्द नहीं होगा। उन्होंने कहा कि कंपट्रोलर एंड ऑडिटर ज़नरल ऑफ़ इंडिया (कैग) रफ़ाल की क़ीमतों का अध्ययन करेगा और बताएगा कि कौन-सा सौदा बेहतर होता- एनडीए या यूपीए सरकार का। लेकिन अब सवाल है कि जब जेपीसी या संसद को क़ीमतें नहीं बताई जा सकती तो कैग को क्यों बताई जाएंगी जब एनडीए सरकार क़ीमतेंं बताएगी ही नहीं और यूपीए सरकार में सौदा फ़ाइनल ही नहीं हुआ था तो किस आधार पर तुलना होगी। ऐसे में कैग की रिपोर्ट आने के बाद भी तस्वीर साफ़ होने की उम्मीद कम ही है।

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