किसान आंदोलन: पश्चिमी यूपी की खाप पंचायतें भी समर्थन में उतरीं
दिल्ली के टिकरी और सिंघु बॉर्डर पर डेरा डालकर बैठे किसानों से परेशान मोदी सरकार की मुश्किलें बढ़ाने उत्तर प्रदेश की खाप पंचायतें भी मैदान में आ गई हैं। टिकरी और सिंघु बॉर्डर पर जहां मुख्यत: हरियाणा-पंजाब के किसानों की अधिकता है, वहीं दिल्ली-यूपी के ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड से आए किसान डटे हुए हैं।
पंजाब और हरियाणा की तरह पश्चिमी उत्तर प्रदेश भी खेती और संपन्नता के लिए जाना जाता है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ज़मींदार किसानों की अच्छी संख्या है। ऐसे किसान जिनके पास काफी ज़मीन है। जिनकी ज़मीन औद्योगिक विकास के लिए ले ली गई तो उन्हें इसके काफी अच्छे दाम मिले और उन्होंने किसी कारोबार में पैसा लगा दिया और अपने पैसे को और बढ़ाया। लेकिन साथ में थोड़ी बहुत किसानी भी करते रहे और किसानों की राजनीति भी। कहने का मतलब यह है कि इस इलाक़े के किसान भी आर्थिक रूप से मजबूत हैं और उनका अच्छा सामाजिक आधार भी है।
मोदी सरकार के कृषि क़ानूनों के विरोध में जब पंजाब में आंदोलन शुरू हुआ था, तो हरियाणा के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी किसान संगठनों ने इनकी जोरदार मुख़ालफत की थी और जब किसान पंजाब से चलकर दिल्ली-हरियाणा के बॉर्डर्स पर आकर बैठ गए तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान नेता राकेश टिकैत के नेतृत्व में भी इस इलाक़े के किसान दिल्ली-यूपी के ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर आकर बैठ गए। लेकिन इन किसानों की संख्या ज़्यादा नहीं थी।
अब पश्चिमी उत्तर प्रदेश की खाप पंचायतें किसानों के इस आंदोलन के समर्थन में उतर आई हैं। 17 खाप पंचायतों के लोग गुरूवार को ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर पहुंचे हैं। इससे पहले सोमवार को उनकी मुज़फ्फरनगर के शोराम गांव में पंचायत हुई थी और उन्होंने 17 दिसंबर को दिल्ली कूच करने का आह्वान किया था।
इन खाप पंचायतों में बालियान खाप के प्रमुख और भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेश टिकैत, अहलावत खाप के अध्यक्ष गजेंद्र सिंह के अलावा निरवाल खाप, कुंडू खाप सहित कई खाप पंचायतों के प्रमुख हैं, जिन्होंने किसानों के आंदोलन को समर्थन दिया है।
सुनिए, किसान आंदोलन पर चर्चा-
किसानों के भीतर इस बात को लेकर नाराज़गी है कि कई दौर की बातचीत के बाद भी केंद्र सरकार उनकी मांगों को मानने के लिए तैयार नहीं है। ऐसे में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान नेता आंदोलन को तेज़ करना चाहते हैं।
खाप पंचायतों का खासा असर
हरियाणा की ही तरह पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी खाप पंचायतों का खासा असर है। हरियाणा में भी कई खाप पंचायतें किसानों के आंदोलन का खुलकर समर्थन कर रही हैं और अब बारी पश्चिमी उत्तर प्रदेश की खाप पंचायतों की हैं। इन दोनों इलाक़ों में बोली मिलती-जुलती है। रोटी-बेटी के रिश्ते भी होते हैं और किसानों की बड़ी आबादी है, किसानी के काम की वजह से भी वे एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं।
खाप पंचायतों का समर्थन मिलने के बाद अब जब पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान भी इन कृषि क़ानूनों का विरोध उतनी ताक़त से करेंगे, जितनी ताक़त से हरियाणा-पंजाब के किसान कर रहे हैं तो निश्चित रूप से मोदी सरकार के लिए हालात को संभालना बेहद मुश्किल हो जाएगा।
ध्यान दे मोदी सरकार
ठंड के दिनों में ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर बड़ी संख्या में बुजुर्ग धरने पर बैठे हैं। टिकरी और सिंघु बॉर्डर पर बच्चे और महिलाएं भी पंजाब-हरियाणा से आकर इस आंदोलन में शामिल हो रहे हैं। किसान संगठनों के नेताओं का कहना है कि अब तक 20 से ज़्यादा लोगों की मौत दिल्ली के बॉर्डर्स पर आंदोलन शुरू होने के बाद हो चुकी है।
ऐसे में मोदी सरकार को तुरंत कोई ऐसा रास्ता निकालना चाहिए जिससे किसानों का आंदोलन ख़त्म हो। किसान सरकार से उनकी मांग पूरी होने का आश्वासन चाहते हैं लेकिन लगातार हो रही देर के कारण उनमें चिंता बढ़ती जा रही है और ऐसे में वे आत्महत्या जैसे आत्मघाती क़दम भी उठा रहे हैं।