'जय श्री राम बनाम दुर्गा' के बहाने जाल में टीएमसी को फँसाना चाहती है बीजेपी? 

04:53 pm Feb 15, 2021 | प्रमोद मल्लिक - सत्य हिन्दी

क्या पश्चिम बंगाल बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष को हिन्दुओं की भावनाएँ आहत करने के आरोप में गिरफ़्तार किया जाना चाहिए? क्या बीजेपी पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2021 के पहले ‘राम बनाम दुर्गा’ का समीकरण खड़ा कर अपने जाल में टीएमसी को फँसाना चाहती है? क्या ‘राम बनाम दुर्गा’ बीजेपी नेताओं के पितृसत्तात्मक सोच का नतीजा है? या वे एक भगवान के नाम पर सारे हिन्दुओं को एकजुट करने के प्रयोगशाला के तौर पर पश्चिम बंगाल का इस्तेमाल कर रहे हैं? 

माँ दुर्गा के पूर्वज?

दिलीप घोष के एक बयान से ये तमाम सवाल खड़े होते हैं, जिनका जवाब बीजेपी नहीं देना चाहेगी। लेकिन इस मुद्दे की पड़ताल ज़रूरी है क्योंकि चुनाव तो आएंगे- जाएंगे, सरकारें बनेंगी-गिरेंगी, लेकिन ये सवाल भारतीय समाज ही नहीं, हिन्दू समाज को बाँट सकते हैं या शायद उसी मक़सद से उछाले जा रहे हैं। और यह काम वह बीजेपी कर रही है, जो उग्र हिन्दुत्व की राजनीति करती है। 

दिलीप घोष ने कहा, 

“भगवान राम सम्राट थे, कुछ लोग उन्हें अवतार भी मानते हैं। हम उनके पूर्वजों के बारे में जानते हैं। क्या कोई दुर्गा के पूर्वजों के बारे में जानता है? इसलिए उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है। महात्मा गांधी ने भी राम की बात कही थी।”


दिलीप घोष, अध्यक्ष, भारतीय जनता पार्टी, पश्चिम बंगाल

टीएमसी कार्यकर्ताओं ने सिर मुड़ाया

उनके इस बयान पर बवाल मचा हुआ है। तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने इसके विरोध में रविवार को अपने सिर मुड़ा लिए। उनका कहना है कि यह दुर्गा का अपमान है। 

बता दें कि दुर्गा पश्चिम बंगाल की वह धार्मिक आइकॉन है, जो धर्म से आगे निकल कर सांस्कृतिक प्रतीक बन चुकी है। यही वजह है कि दुर्गापूजा धार्मिक कम और सांस्कृतिक उत्सव अधिक है, जिसमें सभी संप्रदायों के लोग शिरकत करते हैं, मुसलमान भी और ईसाई भी। 

'माँ दुर्गा'

पश्चिम बंगाल में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के काडर राज में इसमें कमी नहीं आई। वहाँ के दुर्गा पूजा में सीपीआईएम के सदस्य भी उतने ही उत्साह से भाग लेते थे जितने दूसरे। इसे इससे भी समझा जा सकता है कि तत्कालीन क्रीड़ा मंत्री सुभाष चक्रवर्ती अपनी पार्टी सीपीआईएम के संकेत और साथियों के तंज के बावजूद दुर्गापूजा समितियों से अपने लगाव को नही छुपाते थे।

उनके इस बयान पर एक बार खूब बवाल मचा था जब उन्होंने कहा था कि वे बंगाली हिन्दू पहले हैं और कम्युनिस्ट बाद में। बाद में पार्टी के दूसरे नेताओं ने भी दबे-छिपे ज़बान में कहना शुरू कर दिया था कि दुर्गापूजा सांस्कृतिक उत्सव है और कम्युनिस्ट भी इससे जुड़ सकते हैं, भले ही वे ख़ुद पूजा न करें। 

सभी धर्मों, संप्रदायों और वर्गों में समान रूप से सम्मानित दुर्गा बंगालियों की ‘माँ’ यूं ही नहीं है, जिसे समझने में बीजेपी नाकाम है। 

दुर्गा प्रतिमा को अंतिम रुप देती मुख्यमंत्री ममता बनर्जी

टीएमसी का ज़ोरदार हमला

तृणमूल कांग्रेस के नेता और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी ने दिलीप घोष पर ज़ोरदार हमला करते हुए कहा, “बीजेपी नेता ने कहा है कि लोग राम के पूर्वजों के बारे में जानते हैं, दुर्गा के बारे में नहीं। वे ऐसा कह कर यह बताना चाहते हैं कि दुर्गा का कोई महत्व नहीं है।”

अभिषेक बनर्जी ने कहा, 

“क्या बीजेपी नेता को शर्म नहीं आती है। स्वयं राम ने दुर्गा की पूजा की थी।”


अभिषेक बनर्जी, नेता, टीएमसी

डैमेज कंट्रोल में बीजेपी

राज्य बीजेपी अब डैमेज कंट्रोल में लगी हुई है और उसके नेता कहने लगे हैं कि वे भी दुर्गा भक्त हैं, कोई उन्हें नसीहत न दे।

हुगली से सांसद व पूर्व अभिनेत्री लॉकेट चटर्जी ने बीजेपी की ओर से मोर्चा संभाला है। उन्होंने टीएमसी कार्यकर्ताओं के सिर मुड़ाने को ‘स्टंट’ क़रार दिया। उन्होंने तृणमूल कांग्रेस पर हमला करते हुए कहा, “वे यह दिखाना चाहते हैं कि दुर्गापूजा कैसे करते हैं। उन्होंने तो मुहर्रम के कारण दुर्गा विसर्जन रोक दिया था।”

दुर्गा विसर्जन पर रोक?

याद दिला दें कि 2017 में विजयदशमी और मुहर्रम एक ही दिन पड़ा  था। राज्य सरकार ने मुहर्रम के जुलूस की अनुमति दी और दुर्गा विसर्जन पर उस दिन के लिए रोक लगा दी। 

अगले दिन राज्य सरकार ने कोलकाता में रंगारंग कार्यक्रम किया, जिसमें एक साथ कई कई दुर्गा समितियों ने प्रतिमा का विसर्जन किया था। इसे ‘दुर्गा कार्निवल’ कहा गया था और खुद मुख्यमंत्री इसमें मौजूद थीं।

लेकिन बीजेपी ने मुहर्रम को मुद्दा बनाया था और यह प्रचारित किया था कि ममता बनर्जी सरकार तुष्टीकरण की राजनीति कर रही हैं। 

राज्य सरकार आयोजित दुर्गा पूजा कार्निवाल

'राम बनाम दुर्गा' क्यों?

बीजेपी ने ‘दुर्गा बनाम राम’ का विभाजन करने की कोशिश की है। वह राम के आइकन को पश्चिम बंगाल की राजनीति में स्थापित करने की कोशिश शुरू से ही कर रही है। यही वजह है कि वह बार-बार ‘जय श्री राम’ के नारे को उछालती है। 

नरेंद्र मोदी या अमित शाह बंगाली अस्मिता को नहीं समझते, यह तो समझा जा सकता है, पर दिलीप घोष या तथागत राय क्यों नहीं समझते, यह सवाल महत्वपूर्ण है। 

पश्चिम बंगाल में गाँव-गाँव दुर्गा पूजा होती है, औसत हिन्दू बंगाली के घर दुर्गा की प्रतिमा या दुर्गा चालीसा होता है, लेकिन राम का मंदिर बिरले ही मिलता है। वहां राम पूजा जैसा उत्सव नहीं होता है। जिस तरह उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सो में ‘जय जय राम जी’ कह कर संबोधन करते हैं, वैसा पश्चिम बंगाल में नहीं है। इसलिए उत्तर प्रदेश में तो ‘जय श्री राम’ का नारा लोगों को आकर्षित कर सकता है, लेकिन बंगाल में नहीं है। 

कोलकाता स्थित दक्षिणेश्वर काली मंदिर में अमित शाह

'जय माँ काली'

पश्चिम बंगाल बीजेपी ने देर से ही सही, इसे समझा है और इसलिए उन्होंने ‘जय माँ काली’ का नारा दिया। बीते साल अक्टूबर में पार्टी ने कहा कि वह अब ‘जय माँ काली’ कहेगी। यही वजह है कि अमित शाह, जे. पी. नड्डा या दूसरे नेता कोलकाता जाने पर दक्षिणेश्वर स्थित काली मंदिर जाना नहीं भूलते हैं। 

लेकिन बीते दिनों, खास़ कर नेताजी की 125वीं जयंती के मौके पर हुए सरकारी कार्यक्रम में जिस तरह बीजेपी कार्यकर्ताओं ने ‘जय श्री राम’ का नारा लगा कर मुख्यमंत्री को हूट किया, उससे एक बार फिर यह साबित हो गया कि बीजेपी सोची समझी रणनीति के तहत इस नारे को पश्चिम बंगाल में स्थापित करना चाहती है। उसके बाद दिलीप घोष के इस हालिया बयान ने यह भी स्थापित कर दिया कि यह संयोग नहीं है, रणनीति है। 

यह साफ है कि ‘जय श्री राम’ के नारे के बल पर केंद्र की सत्ता में पहुँचने और अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का काम शुरू करने के बाद बीजेपी इसे पूरे देश में स्थापित करना चाहती है।

पश्चिम बंगाल बनी प्रयोगशाला?

राम समेत कोई हिन्दू देवी-देवता अखिल भारतीय प्रतीक नहीं हैं, अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग देवता की पूजा हिन्दू धर्म की खूबी भी है। लेकिन, पर्यवेक्षकों का कहना है कि बीजेपी राम के नाम पर देश के सभी हिन्दुओं को एकजुट करना चाहती है।

पश्चिम बंगाल इसकी प्रयोगशाला बन रही है और पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2021 में इस पर फील्ड एक्सपेरिमेंट किया जा रहा है। 

पितृ-सत्तात्मक सोच

लेकिन ‘राम बनाम दुर्गा’ का यह राजनीतिक खेल पश्चिम बंगाल की सामाजिक संरचना के अनुकूल नहीं है।

पश्चिम बंगाल पूर्वोत्तर की तरह मातृ-सत्तात्मक समाज नहीं है, पर वहाँ उत्तर प्रदेश, हरियाणा या पंजाब की तरह मजबूत पितृ सत्ता भी नहीं है। बंगाली समाज पितृ-सत्तात्मक होते हुए भी महिलाओं को बहुत हद तक सम्मान देता है।

इसे टीएमसी नेता अभिषेक बनर्जी के बयान से समझा जा सकता है। उन्होंने दिलीप घोष पर चोट करते हुए कहा, “क्या उन्हें नहीं मालूम कि यहाँ बच्ची के जन्म लेने पर उसे माँ कहते हैं, हम अपनी बच्चियों को माँ लक्ष्मी कहते हैं।” 

इस ढीले-ढाले पितृ- सत्तात्मक समाज में बीजेपी उत्तर प्रदेश की तरह मजबूत पितृ सत्ता स्थापित करना चाहती है क्योंकि यह उसकी दूरगामी राजनीति के अनुकूल है, यह सवाल उठना भी लाज़िमी है। 

बीजेपी की दूरगामी रणनीति?

यही वजह है कि बीजेपी पश्चिम बंगाल में भी गाय को स्थापित करना चाहती है क्योंकि वह उसकी राजनीति के अनुकूल है। दिलीप घोष कह चुके हैं कि किस तरह गाय के दूध में सोना होता है। 

उनसे बहुत पहले पश्चिम बंगाल बीजेपी प्रमुख रह चुके और अब अगले मुख्यमंत्री के रूप में अपनी संभावना तलाश रहे तथागत राय भी गाय की पवित्रता की बात कह चुके हैं। अमित शाह ने एक आमसभा में यह एलान भी किया कि बीजेपी की सरकार बनी तो गोवंश वध पर रोक लगाने वाले क़ानून को सख़्ती से लागू किया जाएगा।

कुल मिला कर यह साफ लगता है कि दिलीप घोष ने दुर्गा की बात यूँ ही नहीं कह दी है, वह बीजेपी की दूरगामी रणनीति का हिस्सा है। पश्चिम बंगाल की प्रयोगशाला में इस पर प्रयोग किया जा रहा है। 

लेकिन सवाल यह भी उठता है कि क्या हिन्दुओं की भावना को आहत करने का आरोप राज्य बीजेपी प्रमुख पर लगता है?