पश्चिम बंगाल : मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आरएसएस की नज़र

08:00 am Apr 24, 2021 | विजय त्रिवेदी - सत्य हिन्दी

पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव अभी चल ही रहे हैं, लेकिन क्या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बीजेपी के संभावित मुख्यमंत्री के नाम पर विचार करने में जुट गया है? आरएसएस के तीन सबसे बड़े पदाधिकारियों की पिछले दिनों  नागपुर मुख्यालय में हुई बैठक में इस पर चर्चा हुई कि असम और पश्चिम बंगाल में चुनाव जीतने पर अगला मुख्यमंत्री कौन होगा?

बताया जाता है कि बीजेपी लीडरशिप ने अपनी तरफ से नाम संघ को भेज दिए है। उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के वक्त भी योगी आदित्यनाथ के नाम को संघ कार्यालय से ही मंज़ूरी मिली थी।

होसबोले की बैठक

अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में चुने गए नए सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले अप्रैल के पहले सप्ताह में नागपुर में संघ मुख्यालय पहुँचे और उन्होंने डॉ हेडगेवार स्मृति जाकर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की।

संघ कार्यालय में संघ प्रमुख डॉ मोहन भागवत, पू्र्व सर कार्यवाह भैयाजी जोशी और सर कार्यवाह होसबोले के बीच लगातार तीन दिनों तक बैठकें हुईं। करीब 32 घंटों की बैठकों में संघ के नीतिगत कार्यक्रमों और अन्य मसलों पर गंभीर और गोपनीय चर्चा हुई।

संघ की कार्य पद्धति के मुताबिक़, संघ में प्रशासनिक और नीतिगत निर्णयों पर चर्चा हाईकमान करता है, जिसमें सरसंघचालक, सरकार्यवाह के अलावा सह सरकार्यवाह और कुछ वरिष्ठ लोग शामिल होते हैं। लेकिन सरसंघचालक और सर कार्यवाह अक्सर कई महत्वपूर्ण लोगों से मुलाक़ातें करते हैं और ज़रूरी नहीं कि उसकी चर्चा हाईकमान की बैठक में की जाए, लेकिन इसकी जानकारी और मंत्रणा सरसंघचालक और सर कार्यवाह  आपस में ज़रूर साझा करते हैं।

‘प्लान बी’ पर चर्चा

संघ के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि हालांकि भैयाजी जोशी अब सरकार्यवाह नहीं हैं, लेकिन मौजूदा वक़्त में अब तीनों लोग यानी डॉ भागवत, भैयाजी जोशी और होसबोले त्रिदेव की भूमिका में रहेंगें। इन तीनों के साथ तीन दिन तक चली बैठक में संघ के भावी नेतृत्व और ‘प्लान बी’ पर भी चर्चा हुई है। दत्तात्रेय होसबोले  विद्यार्थी परिषद में लंबे समय तक रहे हैं और बीजेपी के साथ भी उनका लगातार जुड़ाव रहा है तो अब भी वे संघ और बीजेपी के बीच सेतु का काम करेंगें। 

नए नेतृत्व के तौर पर दो प्रमुख लोगों को आगे बढ़ाने पर विचार हो सकता है, इसमें मौजूदा सह सरकार्यवाह डॉ मनमोहन वैद्य और हाल में बनाए गए अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आम्बेकर का नाम है। डॉ वैद्य  सरसंघचालक की पहली पसंद  बताए जाते हैं तो आम्बेकर ने हौसबोले के साथ विद्यार्थी परिषद् में काम किया है। 

कोरोना काल में शाखा

देश में पिछले एक साल से भी ज़्यादा वक्त से कोविड काल चलने की वजह से संघ की मैदान में या खुले में लगने वाली शाखाएं बंद हो गई हैं और उनकी जगह वीडियो  बैठकों ने ले ली है, इन बैठकों में इंटरनेट के माध्यम से ही बौद्धिक भी हो रहे हैं। 

पिछले साल संघ के  प्रशिक्षण शिविर यानी ओटीसी भी नहीं हुए। फिर उसे प्रांतीय स्तर पर 50-50 स्वयंसेवकों के शिविर करने का निर्णय हुआ,लेकिन अब उसमें भी बदलाव किया  गया है और प्रांतों को इस संख्या को पचास से कम करने की छूट भी दे दी गई है।

संघ में पिछले कुछ समय में नई पीढ़ी के ऐसे लोगों के शामिल होने की तादाद बढ़ी है जो संघ की शाखा में तो नहीं जाना चाहते, लेकिन विचारधारा की वजह से संघ से जुड़े रहना चाहते हैं। ऐसे युवाओं को संघ अपने कार्यक्रमों में जोड़कर उन्हें नई भूमिका में देखना चाहता है, इसे भी अंतिम रूप दिया जा रहा है।

बिग फ़ाइव

संघ के विचारक और पदमुक्त स्वयंसवक रहे नागपुर के दिलीप देवधर ने एक नया शब्द गढ़ा है – ‘बिग फाइव’ या ‘पंच प्यारे’। देवधर का कहना है कि संघ की नई व्यवस्था में अब संघ के तीन लोग सरसंघचालक भागवत, सरकार्यवाह होसबोले और भैयाजी जोशी के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह निर्णायक भूमिका में हैं, यानी कोई भी बड़ा फ़ैसला ये पाँच लोग मिल कर करते हैं। 

इसमें होसबोले दोनों यानी संघ और बीजेपी के बीच सेतु या सूत्रधार कहे जा सकते हैं। इस 'बिग फाइव' टीम का मतलब यह दिखाना भी हो सकता है कि संघ का कंट्रोल अब भी बीजेपी पर है और बीजेपी की सलाह भी संघ में मानी जाती है।

बदलने को तैयार संघ

नागपुर में तीन दिनों तक चली बैठक को संघ की तरफ से औपचारिक नहीं किया गया है। महत्वपूर्ण यह है कि मौजूदा समय में संघ अपने को समय के साथ बदलने के लिए तेज़ी से तैयार कर रहा है। आमतौर पर संघ में सरकार्यवाह ही अगले सरसंघचालक होते हैं और सरसंघचालक ही अपना नुमाइंदा तय करते है।

हालांकि  फिलहाल इस पर चर्चा शुरू नहीं हुई है, लेकिन के. एस. सुदर्शन सरसंघचालक बनने से पहले सरकार्यवाह नहीं रहे थे। एच. वी. शेषाद्रि लंबे समय तक सरकार्यवाह बनने के बाद भी सरसंघचालक नहीं हुए। दत्तोपंत ठेंगड़ी और मोरोपंत पिंगले ऐसे नाम रहे जिनके सरसंघचालक बनने की संभावनाएं बहुत रही थी, लेकिन नहीं हो पाया। मदन दास देवी आश्वासन के बाद भी सरकार्यवाह के पद तक नहीं पहुँच सके।