कोरोना कम होने पर नागरिकता क़ानून लागू होगा: अमित शाह

09:19 pm May 05, 2022 | सत्य ब्यूरो

नागरिकता संशोधन क़ानून तो दिसंबर 2019 में ही बन गया, लेकिन वह लागू कब होगा? यह सवाल काफ़ी लंबे वक़्त से पूछा जा रहा है। अब इस पर देश के गृह मंत्री अमित शाह का बयान आया है। उन्होंने कहा कि कोरोना संक्रमण कम होने पर नागरिकता संशोधन क़ानून यानी सीएए को लागू किया जाएगा।

गृह मंत्री ने यह बयान तब दिया जब वह बंगाल के तीन दिवसीय दौरे पर सिलीगुड़ी पहुँचे। अमित शाह ने एक जनसभा में कहा कि तृणमूल कांग्रेस अफवाह फैला रही है कि सीएए लागू नहीं होगा, लेकिन मैं आपको बता रहा हूँ कि कोरोना के बाद हम सीएए लागू करेंगे। उन्होंने कहा कि सीएए एक वास्तविकता थी, एक वास्तविकता है और एक वास्तविकता रहेगी। उन्होंने आगे कहा कि कुछ भी नहीं बदला है।

संसद द्वारा पारित नागरिकता संशोधन क़ानून पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान में ग़ैर-मुसलिम अल्पसंख्यकों- हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई को उन देशों में उत्पीड़न से बचने के लिए भारतीय नागरिकता प्राप्त करने की अनुमति देता है। इस क़ानून के तहत इन समुदायों के वे लोग जो 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आए थे, उन्हें अवैध आप्रवासी नहीं माना जाएगा बल्कि उन्हें भारतीय नागरिकता दी जाएगी।

सीएए को लेकर गृह मंत्री ने कहा, 'ममता दीदी, क्या आप चाहती थीं कि घुसपैठ जारी रहे? लेकिन मैं आपको बताना चाहता हूं कि सीएए एक वास्तविकता थी और यह एक वास्तविकता बनी रहेगी और टीएमसी इसके बारे में कुछ नहीं कर सकती।'

अमित शाह के बयान पर ममता बनर्जी की भी फौरन प्रतिक्रिया आई है। एएनआई की रिपोर्ट के अनुसार ममता ने कहा, 'वे सीएए के बारे में बात कर रहे हैं। तब पीएम और सीएम चुनने वाले इस देश के नागरिक नहीं थे? सीएए बिल लैप्स हो गया है। वे इस बिल को संसद में क्यों नहीं ला रहे हैं? मैं नहीं चाहती कि नागरिकों के अधिकारों पर अंकुश लगे। हम सबको साथ रहना है, एकता ही हमारी ताकत है।'

सीएए को लागू करने के बारे में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए ममता ने दावा किया कि बीजेपी 2024 में सत्ता में नहीं लौटेगी और कोई सीएए लागू नहीं किया जाएगा।

बता दें कि सीएए 2019 के अंत में और 2020 की शुरुआत में देश में प्रमुख मुद्दा था। इसको लेकर देश के कुछ हिस्सों में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए थे। इस क़ानून को भेदभावपूर्ण क़रार दिया गया था और इसकी व्यापक रूप में आलोचना की गई थी। ऐसा इसलिए था कि यह धर्म के आधार पर नागरिकता देने की बात करता है। 

आलोचकों का कहना है कि नियोजित राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर या एनआरसी के साथ इस क़ानून से लाखों मुसलमान अपनी नागरिकता खो देंगे। हालांकि, केंद्र का कहना है कि कोई भी भारतीय अपनी नागरिकता नहीं खोएगा।

जब सीएए बहस के केंद्र में था, तभी 2020 की शुरुआत में कोविड के प्रकोप को लेकर लॉकडाउन लगाया गया था और इस वजह से देश में कई फ़ैसले प्रभावित हुए थे। सीएए लागू करने में देरी के लिए एक तर्क यह भी दिया गया।