चोटी के दो लोगों के बीच के झगड़े से हुई सीबीआई में लड़ाई?
सीबीआई के इतिहास में पहली बार रात 11:45 बजे निदेशक आलोक वर्मा को हटाए जाने के आदेश जारी किए गए। पहली बार सीबीआई के दो शीर्ष अधिकारियों को एक साथ रिश्वतखोरी के आरोप में हटाया गया। पहली बार एक एडिशनल डायरेक्टर एके शर्मा के होते हुए सीबीआई डायरेक्टर का प्रभार एक संयुक्त निदेशक नागेश्वर राव को दिया गया। पहली बार सीबीआई के निदेशक हटाए जाने के आदेश को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट गए।
दरअसल यह लड़ाई सीबीआई में नंबर 1 और 2 के बीच नहीं, बल्कि सत्ता प्रतिष्ठान में पहले और दूसरे स्थान पर बैठे लोगों के बीच है। इस लड़ाई की वज़ह से केंद्रीय मंत्रिमंडल प्रधानमंत्री कार्यालय नौकरशाही और जांच एजेंसियां सभी दो हिस्सों में बंट गये हैं।
हटाए गए विशेष निदेशक राकेश अस्थाना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बहुत करीबी लोगों में से हैं। लेकिन उनके ख़िलाफ़ डायरेक्टर आलोक वर्मा ने ही मुहिम छेड़ दी। अस्थाना ने एक के बाद एक सीवीसी को पत्र लिखकर वर्मा के खिलाफ शिकायतें की। वर्मा ने अस्थाना के भूत को खंगाल कर भ्रष्टाचार के सबूत जुटा लिए। इस तरह उन्होंने पूरा केस बना लिया कि जनवरी में उनके रिटायर होने के बाद प्रधानमंत्री अस्थाना को सीबीआई निदेशक ना बना पाएं।
लेकिन वर्मा ने यह किया क्यों? और किसके कहने पर? इन्हीं दो सवालों में इस लड़ाई का पूरा राज छुपा हुआ है।
माना जा रहा है कि वर्मा को हवा देने वाले प्रवर्तन निदेशालय के दो वरिष्ठ अधिकारी हैं। इनमें से एक भी अपने पद पर हैं जबकि दूसरे छुट्टी पर चल रहे हैं।
प्रवर्तन निदेशालय (एनफ़ोर्समेंट डाइरेक्टरेट) के संयुक्त निदेशक राजेश्वर सिंह और राजस्व सचिव हसमुख अधिया बिल्कुल आमने सामने है। सिंह ने अधिया को एक कड़ी चिट्ठी लिख कर पूछा कि 'क्या आप स्कैम करने वालों और उनसे जुड़े लोगों से सांठगांठ कर मुझसे दुश्मनी पाल रहे हैं?' उन्होंने राजस्व सचिव पर उनकी पदोन्नति जान बूझ कर टालने का आरोप भी लगाया है।
राजेश्वर सिंह एअरसेल मैक्सिस मामले की छानबीन कर रहे है। इस मामले में मनमोहन सिंह सरकार मे दूरसंचार मंत्री रहे दयानिधि मारन और वित्त मंत्री रहे पी चिदांबरम के नाम जुड़े हुए हैं। इस मामले को काफ़ी संवेदनशील माना जाता है।
सिंह ने यह आरोप भी लगाया कि उन्हें जानबूझ कर इस मामले की तहकीक़ात करने वाली टीम से बाहर करने की कोशिश की जा रही है ताकि वे चिदाबंरम के ख़िलाफ़ सबूत इकट्ठा न कर सकें। अधिया ने चिट्ठी का जवाब देते हुए तमाम आरोपों को सिरे से नकार दिया। उन्होंने यह भी कहा कि पदोन्नति नियम के मुताबिक़ ही होता है और उनके मामले में भी ऐसा ही होगा। बाद में सिंह लंबी छुट्टी पर चले गए।
सिंह पर वित्तीय अनियमितता के आरोप लगे। सुप्रीम कोर्ट ने उन आरोपों की जांच कराने को कहा है। लेकिन, भारतीय जनता पार्टी के सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने ट्वीट कर कहा कि अधिया सिंह को झूठे मामले में फंसा कर एअरसेल मैक्सिस मामले से बाहर करना चाहते हैं ताकि चिदंबरम को बचाया जा सके।
वित्त सचिव और वित्त मंत्री दोनों इस अधिकारी के ख़िलाफ़ सख़्त क़ार्रवाई चाहते थे। क्योंकि प्रवर्तन निदेशालय वित्त मंत्रालय के अंतर्गत ही आता है, कार्रवाई करना उनके अधिकार क्षेत्र में ही था। लेकिन 8 महीने गुजरने के बावजूद इस अधिकारी के ख़िलाफ़ अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हो पाई है। ज़ाहिर है कि उसे वित्त मंत्री से भी ऊपर बैठे किसी नेता का संरक्षण है।
वहीं दूसरी ओर यह अधिकारी अपने एक वरिष्ठ अधिकारी के साथ मिलकर पिछले एक साल से लगातार राकेश अस्थाना के ख़िलाफ़ मुहिम चलाए हुए है। इसमें उसका साथ आलोक वर्मा दे रहे थे। इसमें प्रधानमंत्री कार्यालय के भी कुछ ग़ैर गुजराती अफसर भी शामिल है। इन्हें बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता का संरक्षण प्राप्त है। इन्हीं की वजह से मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया घोटाले में कई बड़े नाम साफ़ बच निकले हैं जबकि उनके खिलाफ सीबीआई को ठोस सबूत मिल गए थे।
भले ही अभी इस लड़ाई में सीबीआई के दो अफसर दिख रहे हो लेकिन दोनों खेमों में कहीं ना कहीं आईबी,रॉ, इनकम टैक्स, रिजर्व बैंक जैसी संस्थाओं के चोटी के अफ़सर शामिल है।