हिंदी अख़बारों और टेलीविज़न चैनलों से भारत के एक हिस्से में घट रही त्रासदी की गंभीरता का कोई अंदाज़ कर पाना मुश्किल है। तक़रीबन 7 रोज़ से मणिपुर जल रहा है। मणिपुर में बहुसंख्यक मैतेयी समुदाय और आदिवासी कुकी और नागा समुदायों के बीच हिंसा में 50 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं, सैकड़ों घायल हैं, हज़ारों अपने अपने इलाक़ों से विस्थापित किए जा चुके हैं। वे राहत शिविरों में रहने को मजबूर हैं।
हालत कितने बिगड़ चुके हैं, इसका अंदाज़ सिर्फ़ इस बात से लगाया जा सकता है कि मणिपुर में अनुच्छेद 355 का इस्तेमाल करके संघीय सरकार ने राज्य सरकार से क़ानून व्यवस्था का अधिकार ले लिया है। यह विडंबना है कि मणिपुर में भाजपा सरकार हिंसा को क़ाबू नहीं कर सकती लेकिन कर्नाटक में गृहमंत्री धमकी दे रहे हैं कि अगर उनकी सरकार न लौटी तो राज्य में दंगे होंगे। क्या इसी कारण औपचारिक रूपसे इस कदम की घोषणा नहीं की गई? न तो संघीय सरकार ने इसका ऐलान किया और न राज्य सरकार ने। जैसे बाकी कई काम भाजपा की सरकारें गुपचुप करती हैं, वैसे ही यह किया गया।
मणिपुर एक तरह से सेना और अर्ध सैन्य बल के हवाले है। देखते ही गोली मार देने का आदेश जारी किया गया है। लेकिन क्या भारत के हर हिस्से को अपना बना लेने को आमादा हिंदी अखबारों को उस आग की आँच भी लग रही है जिसमें मणिपुर झुलस रहा है? एक बड़े हिंदी अख़बार की सुर्ख़ी देखी कि मणिपुर पर शाह की सीधी नज़र है। उसके क़रीब दूसरी खबर में बतलाया गया था कि चूँकि अफ़ीम की खेती पर क़ाबू करने कि कोशिश की गई, हिंसा भड़क उठी। इसके विपरीत अंग्रेज़ी अख़बारों में यह समझने और समझाने की कोशिश की जा रही है कि मणिपुर की हिंसा के पीछे की वजहें क्या हैं। फ़ौरी और ऐतिहासिक।
यह भी कोई हिंदी या अंग्रेज़ी अख़बार नहीं पूछ रहा कि जब एक पूरा राज्य जल रहा है, क्यों प्रधानमंत्री की तरफ़ से अब तक शांति की अपील भी जारी नहीं की गई है। क्यों राष्ट्रपति भी चुपहैं? क्यों गृहमंत्री ने भी इस प्रकार का कोई बयान नहीं दिया है कि मणिपुर के प्रत्येक समुदाय के लोगों को हिंसा से बाज आना चाहिए और शांति बहाल करनी चाहिए? विपक्षी राजनीतिक दलों ने प्रधानमंत्री से मणिपुर में अमन क़ायम करने के उपाय करने की अपील की है।
क़ायदे से हर राज्य के नेताओं को मणिपुर की हिंसा से चिंता करनी चाहिए।अगर मानवीय प्रेरणा से नहीं तो इस कारण से हीकि वहाँ प्रायः हर राज्य के लोग रहते हैं और हिंसा का दुष्प्रभाव उन पर भी पड़ेगा। लेकिन मणिपुर के पड़ोसी राज्य असम के मुख्यमंत्री कर्नाटक में लोगों को इसके लिए बधाई दे रहे हैं कि उन्होंने टीपू सुल्तान की हत्या की थी। कांग्रेस लोग टीपू सुल्तान वंशज हैं इसलिए उन्हें वोट नहीं देना चाहिए, यह बतलाया जा रहा है। भाजपा को वोट देना चाहिए? अपना उदाहरण देकर कि कैसे वे राज्य में सारे मदरसों को ख़त्म कर रहे हैं, कर्नाटक के मतदाताओं को जैसे वे बतला रहे हैं कि यही करने के लिए उन्हें उनके दल भाजपा को वोट देना चाहिए। भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी कर्नाटक जाकर कह दे रहे हैं कि हिंदू धर्म से खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
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मणिपुर की हिंसा भी कोई अपने आप भड़क नहीं उठी बल्कि वह विभाजनकारी राजनीति का नतीजा है। जो दल कर्नाटक में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच विभाजन गहरा कर रहा है,वह मणिपुर के समाज में समुदायों के बीच दूरी को कम कैसे करेंगे? या वे यह करना ही क्यों चाहेंगे? फिर उनकी राजनीति का क्या होगा क्योंकि उसका आधार ही विभाजन है।
क्यों भाजपा के नेता मणिपुर की हिंसा को लेकर चिंतित नहीं दीख रहे, इसकी व्याख्या कठिन नहीं है। मणिपुर के जानकार बतलाते हैं कि घाटी में रहने वाले बहुसंख्यक मैतेयी समुदाय और पहाड़ों और जंगल में रहने वाले अल्पसंख्यक कुकी और नागा समुदायों में ऐतिहासिक रूप से एक दूसरे को लेकर संदेह और तनाव रहा है। भारतीय राज्य के इरादों को लेकर भी उनमें शक रहा है। उस वजह से मणिपुर में वैसे ही हिंसक समूह सक्रिय रहे हैं जैसे नागालैंड या मिज़ोरम या असम में।
इस हिंसा के लिए ज़मीन तैयार की जा रही थी। पहाड़ और जंगल में पारंपरिक रूप से भूमि अधिकार आदिवासी कुकी समुदाय के पास रहा है।वह अल्पसंख्यक है और उसमें अधिकतर लोग ईसाई मत को मानने वाले हैं।जंगल या पहाड़ में और कोई ज़मीन नहीं ख़रीद सकता। लेकिन कुकी चाहें तो घाटी या मैदान में ज़मीन ले सकते हैं।इस कारण बहुसंख्यक मैतयी क्षुब्ध भी रहते हैं। उन्हें लगता है कि उनकी ज़मीन कुकी ले लेंगे। उन्हें यह भी लगता है कि कुकी समुदाय को विशेषाधिकार प्राप्त हैं जिन्हें खत्म करना चाहिए।
जंगल या पहाड़ में भूमि अधिकार के लिए वे अनुसूचित जनजाति का दर्जा चाहते हैं। हाल में मणिपुर उच्च न्यायालय ने बहुसंख्यक मैतयी समुदाय को भी अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिलाने की सिफ़ारिश का निर्देश मणिपुर सरकार को दिया है। इसके बाद कुकी समुदाय की आशंका और गहरी हो गई कि उसे जंगल और पहाड़ से विस्थापित किए जाने की साज़िश चल रहीहै। इस आशंका का कारण भी था। हाल में सरकार ने कई कुकी घरों को अवैध कहकर ध्वस्त कर दिया था। म्यांमार में दमन झेल रहे चिन समुदाय के लोगों के साथ राज्य सरकार के व्यवहार से भी कुकी नाराज़ थे। कुकी इनसे कुरबत महसूस करते हैं। मिज़ोरम में सरकार उनके साथ सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार से ठीक उलटा बर्ताव मणिपुर सरकार का रहा है।
अदालत के इस फ़ैसले के बाद कुकी समुदाय की तरफ़ से इसका विरोध करते बड़ा प्रदर्शन किया गया। मणिपुर की भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री ने कुकी प्रदर्शन के खिलाफ़ जिस भाषा का इस्तेमाल किया, उस से वे बहुसंख्यक समाज के प्रतिनिधि की तरह नज़र आए। उनके इस रुख ने भी कुकी समुदाय के खिलाफ़ हिंसा की आग में घी का काम किया।
कुकी बहुल इलाकों में मैतई समुदाय के लोगों पर हमला किया गया। तुरंत ही यह हिंसा घाटी और मैदानी इलाकों में फैल गई। कुकी लोगों पर भी हमला हुआ। और अब तक 50 से ऊपर लोग मारे जा चुके हैं।
हिंसा का स्तर और हत्याओं की यह संख्या मामूली नहीं है। हिंसा धीरे धीरे जैसे थककर थम रही है। लेकिन यह भी साफ है कि अब भाजपा सरकार से कोई उम्मीद करना बेकार है। मणिपुर में सौहार्द और शांति कायम करने के लिए मणिपुर के लोगों को ही काम करना पड़ेगा।