अस्पताल, एंबुलेंस, पानी की टंकी: इज़राइली बमबारी ग़ज़ा पट्टी में हरेक दीखती चीज़ को तबाह कर रही है। बहाना है उस न दीखती चीज़ की खोज जिसका नाम हमास है। दुनिया को बतलाया गया है कि उसके पास आधुनिकतम टेक्नॉलॉजी है जिसके सहारे उसे ठीक ठीक मालूम हो जाता है कि कौन कहाँ है। इसलिए हमें उसके हर दावे पर भरोसा करना चाहिए कि उसे निश्चित पता था कि उस एंबुलेंस में जिसमें बच्चे और ज़ख़्मी भरे हुए थे उसके भीतर और उसके नीचे हमास के लड़ाके थे; कि जिस हस्पताल पर उसने बम गिराया, वह हमास का ठिकाना था, उसके भीतर और उसके नीचे हमास था; कि वह कार जिसे उसने निशाना बनाया जिसमें एक परिवार जान बचाते हुए भाग रहा था, दरअसल हमास इस्तेमाल कर रहा था; कि वह शरणार्थी शिविर जिसे उसने तबाह कर दिया, हमास के लोगों के छिपने की जगह थी।
चूँकि इज़राइल की सरकार, उसकी फ़ौज अपनी अचूक टेक्नॉलॉजी के सहारे सब कुछ जानने का दावा करती है, अमेरिका, इंग्लैंड, कनाडा, फ़्रांस और भारत की सरकारें भी मजबूर हैं कि वे उसके इस दावे को स्वीकार करें जो कि दरअसल झूठ है कि उसका निशाना हमास के ‘आतंकवादी’ हैं ,ग़ज़ा के लोग नहीं।
यह वही इज़राइल है जिसकी अचूक, अभेद्य टेक्नॉलॉजी यह अन्दाज़ नहीं कर पाई कि हमास 7 अक्टूबर को कितना बड़ा हमला करनेवाला है और वह किस तरह का हमला होनेवाला है। इज़राइल की टेक्नॉलॉजी के अचूकपन के मिथ की पट्टी बाइडेन, सुनाक, त्रुदो ने जानबूझ कर अपनी आँखों पर बाँध रखी है जिससे उन्हें वे हज़ारों फ़िलिस्तीनी न दिखलाई पड़ें जिन्हें इज़राइल क़त्ल कर रहा है।
इन सारे नेताओं का कहना है कि चूँकि इज़राइल की टेक्नॉलॉजी पर शक नहीं किया जा सकता, वे मान नहीं सकते कि वह निहत्थे फ़िलिस्तीनियों पर हमले कर रहा है। वे मारे जा रहे फ़िलिस्तीनियों के लोगों के दावे भी स्वीकार नहीं कर सकते कि 10,000 फ़िलिस्तीनी क़त्ल कर दिए गए हैं। और यह इसलिए कि ये आँकड़े मारे जा रहे लोगों के अपने दे रहे हैं जो एकतरफ़ा है। वे तो इज़राइल के ब्योरों पर ही भरोसा कर सकते हैं।
इसलिए भी कि उनका कहना यह है कि मध्यकालीन असभ्य बर्बर अरब देशों के बीच पाश्चात्य सभ्यता के मूल्यों पर आधारित क़ानून का शासन माननेवाला अकेला जनतांत्रिक देश इज़राइल ही है। वह इस रेगिस्तान में यूरोपीय जनतांत्रिक नख़लिस्तान है।
इज़राइल बार-बार कह रहा है कि उसकी फ़ौज दुनिया की सबसे सभ्य और मानवीय फ़ौज है। उसके प्रतिनिधि आँकड़े दिखला रहे हैं कि उन्होंने ग़ज़ा के कितने हज़ार लोगों को फ़ोन किया और लिखा कि वे अपने घर, अपनी पनाहगाह छोड़ दें क्योंकि वे हमास को खोज रहे हैं और हमास उनके बीच में छिपा हुआ है, इसकी उनको पूरी ख़बर है।
अपनी जान की हिफ़ाज़त के लिए उन्हें इज़राइली बमों के सामने से हट जाना चाहिए। और पश्चिमी देशों के नेता भी सर हिला रहे हैं: क्या फ़िलिस्तीनियों को इज़राइल ने सावधान नहीं कर दिया था? और क्या हमास को नेस्तनाबूद करना इज़राइल का फर्ज नहीं है? और क्या उसे पूरा करने में इज़राइल के रास्ते में युद्धविराम की रुकावट डालना अपराध नहीं है?
अगर 1000 फ़िलिस्तीनियों का क़त्ल करने पर एक हमास का ‘दहशतगर्द’ मारा जाता है तो यह बड़ी क़ीमत नहीं। अभी यह लिखते-लिखते पढ़ा कि इज़राइल के विरासत मामलों के मंत्री ने सुझाव दिया है कि हमास को ख़त्म करने के लिए ग़ज़ा में परमाणु बम का इस्तेमाल करना भी एक तरीक़ा है। दहशतगर्दी को ख़त्म करने के लिए क्या 10 लाख जानों को क़ुर्बानी नहीं दी जा सकती? इज़राइली मंत्री के मुँह से क्या परमाणु बम की यह धमकी ग़ुस्से में, बेख़याली में निकल गई है? या यह इज़राइल के सोचने का एक तरीक़ा है?
मंत्री से पूछा गया कि इस परमाणु बम के हमले में इज़राइली बंधकों की जान भी जा सकती है तो उन्होंने कहा कि हर युद्ध की क़ीमत होती है। असल बात यह है कि इज़राइल को फ़िलिस्तीनियों से ख़ाली ग़ज़ा चाहिए। जो भी यह कह रहा है कि इज़राइल मजबूर है हज़ारों फ़िलिस्तीनियों को मारने के लिए क्योंकि वे उसके और हमास के बीच आ गए हैं, वह झूठ बोलता है। महीनों पहले इज़राइल के प्रधानमंत्री ने संयुक्त राष्ट्र संघ में मध्य पूर्व का नया नक़्शा पेश कर दिया था जिसमें फ़िलिस्तीन का नाम भी नहीं था। तो क्या ग़ज़ा से फ़िलिस्तीनियों की सफ़ाई की योजना 7 अक्टूबर के हमास के हमले के बहुत पहले नहीं बन गई थी?
यह सवाल कई बार कई लोग पूछ चुके हैं कि अगर ग़ज़ा में फ़िलिस्तीनियों की हत्या के लिए हमास ज़िम्मेवार है तो पश्चिमी तट में रोज़ रोज़ फ़िलिस्तीनियों का क़त्ल इज़राइल क्यों कर रहा है? क्यों पश्चिमी तट में फ़िलिस्तीनियों को गिरफ़्तार किया जा रहा है, क्यों उनके घर गिराए जा रहे हैं? वहाँ तो कोई हमास नहीं है? फिर वहाँ के फ़िलिस्तीनियों के साथ यह बर्ताव क्यों? क्या इसलिए कि बेचारे इज़राइल को हर फ़िलिस्तीनी में हिटलर नज़र आता है और इसलिए उसे वह ख़त्म कर देता है?
एक तरफ़ तो इज़राइल यह कह रहा है कि वह वास्तव में फ़िलिस्तीनियों की हिफ़ाज़त चाहता है इसलिए उन्हें ग़ज़ा से निकल जाने को कह रहा है। लेकिन हमास ने उन्हें ज़बर्दस्ती वहाँ रोक रखा है। दूसरी तरफ़ इज़राइल में ग़ज़ा के जो हज़ारों मज़दूर काम कर रहे थे, उन्हें इज़राइल जबरन ग़ज़ा वापस भेज रहा है। क्या वह हमास के लिए नए मानव कवच भेज रहा है?
सालों साल से ग़ज़ा के जो मज़दूर इज़राइल की सेवा कर रहे थे उन्हें अपनी निश्चित निशानेबाज़ी के लिए मशहूर बमों से इज़राइल मौत का पुरस्कार देना चाहता है। इज़राइल क्यों अपने लिए काम कर रहे मज़दूरों की रोज़ी छीनकर उन्हें निश्चित मौत की तरफ़ धकेल रहा है? उनकी कलाइयों और टखनों में उनके नंबरों की पट्टी के साथ उन्हें भगाया जा रहा है। कई लोगों को हिटलर के कैंपों में क़ैद यहूदियों की बाँहों पर खुदे नंबर याद आ गए। अब तक हमने जनतंत्र के पहरेदार नेताओं से इसके बारे में एक शब्द नहीं सुना है। अगर यह नस्लकुशी का एक उदाहरण नहीं है तो और क्या है?
दुनिया की सबसे ताकतवर और पेशेवर सेनाओं में भी अव्वल मानी जानेवाली वाली इज़राइली फ़ौज इन 3 हफ़्तों से ज़्यादा की बमबारी में हमास की मारक क्षमता को निर्णायक नुक़सान पहुँचा सकी हो, इसका कोई सबूत उसने नहीं दिया है। उसके सरपरस्त अमेरिका के मंत्री ब्लिंकेन से जब यह सवाल ‘अल जज़ीरा’ के संवाददाता ने किया कि आख़िर इन 3 हफ़्तों में इज़राइल ने क्या हासिल किया है तो इसका कोई जवाब उनके पास न था। इस सवाल के जवाब में कि आख़िर कितने हज़ार और फ़िलिस्तीनियों को मरना होगा कि अमेरिका इज़राइल को युद्ध विराम के लिए बोलेगा, जो उन्होंने कहा उसका मतलब यह था कि इसकी कोई सीमा नहीं है। इसका मतलब यही है कि इज़राइल का हासिल वही है जो वह चाहता है, यानी फ़िलिस्तीनियों का सफ़ाया। अपनी बमबारी से डराकर बड़ी आबादी को ग़ज़ा से भगाने की कोशिश और उन्हें बग़ल के अरब मुल्कों में धकेल देना। जो बच जाएँ उनका क़त्ल कर देना। और फिर ग़ज़ा पर पूरा क़ब्ज़ा।
’हमास’ सिर्फ़ एक बहाना है। यह बाइडेन को मालूम है, सुनाक और त्रुदो को भी और वे यह जानते हुए इज़राइल को बिना शर्त हथियार के लिए मदद दे रहे हैं जिससे उसे फिलिस्तीनियों की नस्लकुशी करने में किसी भी तरह साधनों की कमी न हो।