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विवेकानंद- यह सोचना पागलपन है कि हिंदुओं को ज़बरदस्ती मुसलमान बनाया गया! 

विवेकानंद- यह सोचना पागलपन है कि हिंदुओं को ज़बरदस्ती मुसलमान बनाया गया! 

सांप्रदायिकता, संकीर्णता और धार्मिक उन्माद पर विवेकानंद ने जो कुछ कहा है, वह आज के दौर में पढ़ा जाना जरूरी है। 

हर देश-काल में ऐसी विभूतियां हुई हैं, जिन्हें बहुत छोटा जीवन मिला, लेकिन छोटे से जीवनकाल में ही उन्होंने अपने समय के समाज में हलचल पैदा करने का काम किया। सुदूर अतीत में ईसा मसीह और आदि शंकर, ज्ञानेश्वर, चैतन्य आदि हुए तो आधुनिक इतिहास में शहीद भगत सिह, मार्टिन लूथर किंग जूनियर और स्वामी विवेकानंद जैसे नाम सामने आते हैं। 

बाद की पीढ़ियों में ऐसे लोगों की 'लार्जर दैन लाइफ’ छवियां लोकमन में बनने लगती हैं। उनकी वैचारिक विरासतों को समझने, सहेजने और आगे बढ़ाने का सिलसिला भी चल पड़ता है। उनके सूत्र वाक्यों को उद्धरणों के तौर पर बार-बार पेश किया जाता है। 

समाज को इसका थोड़ा फायदा भी मिल जाता है, लेकिन ऐसे मनीषियों का दोहन जब सियासी प्रतीकों के रूप में होने लगता है, तो उनके जीवन का तटस्थ मूल्यांकन नहीं हो पाता। इससे नए अध्येताओं के लिए भी भटकाव की पूरी संभावना बन जाती है। स्वामी विवेकानंद के साथ भी ऐसा ही होता दिख रहा है। 

1960-70 के दशक के दौरान संघ के तत्कालीन सर संघचालक एम एस गोलवलकर ने विवेकानंद को अपनी हिंदुत्ववादी विचारधारा का आइकॉन बनाने की जो कोशिश शुरू की थी, वह आज भी जारी है। 

निर्लज्जता का चरम तो यह है कि सांप्रदायिक और जातीय नफरत की राजनीति में पले-बढ़े और प्रधानमंत्री बने नरेंद्र मोदी को भी अब विवेकानंद का 'अवतार’ बताया जा है।

यही कारण है कि राजनीति के प्रति विरक्ति का भाव रखने के बावजूद विवेकानंद कई राजनीतिकर्मियों के लिए प्रेरणास्रोत बनते रहे। इसी वजह से धर्म की आड़ में शोषणकारी समाज-सत्ता को बनाए रखने की इच्छुक ताकतें बेशर्मी के साथ इस योध्दा-संन्यासी को अपनी परंपरा का पुरखा बताकर उसे हथियाने की फूहड़ कोशिशें करती रही हैं और अब भी कर रही हैं, ताकि उसकी प्रखर सामाजिक चेतना का छद्म सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के पक्ष में इस्तेमाल किया जा सके। 

चूंकि इस खतरे का अंदाजा विवेकानंद को भी था, लिहाजा उन्होंने कहा था- ''कुछ लोग देशभक्ति की बातें तो बहुत करते हैं लेकिन मुख्य बात है-ह्रदय की भावना। यह देखकर आपके मन में क्या भाव आता है कि न जाने कितने समय से देवों और ऋषियों के वंशज पशुओं जैसा जीवन बिता रहे हैं? देश पर छाया अज्ञान का अंधकार क्या आपको सचमुच बेचैन करता है?...यह बेचैनी ही आपकी देशभक्ति का पहला प्रमाण है।’’ 

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शिकागो में भाषण 

12 जनवरी को 1863 को जन्मे विवेकानंद ने 11 सितंबर 1893 को महज 30 साल की उम्र में शिकागो (अमेरिका) में हुए विश्व धर्म सम्मेलन में अपने ऐतिहासिक वक्तव्य के माध्यम से भारत की एक वैश्विक सोच को सामने रखते हुए हिंदू धर्म का उदारवादी चेहरा दुनिया के सामने रखा था। पूरी दुनिया ने उनके भाषण को सराहा था। 

उस सम्मेलन में विवेकानंद ने कहा था-’’सांप्रदायिकता, संकीर्णता और इनसे उत्पन्न भयंकर धार्मिक उन्माद इस पृथ्वी पर काफी समय तक राज्य कर चुके हैं। इस उन्माद ने अनेक बार मानव रक्त से पृथ्वी को नहलाया है, सभ्यताएं नष्ट कर डाली हैं तथा समस्त जातियों को हताश कर डाला है। यदि ये सब न होता तो मानव समाज आज की अवस्था से कहीं अधिक उन्नत हो गया होता।’’ 

विवेकानन्द कोई राजनेता नहीं थे। वे संन्यासी थे- योद्धा संन्यासी और समाज विज्ञानी। वे हिंदू समाज की खूबियों और खामियों से भलीभांति परिचित थे। हिंदू समाज में व्याप्त बुराइयों और जड़ता पर निर्ममता से प्रहार करते थे। हिंदू समाज में व्याप्त कट्टरता के खतरे को विवेकानन्द की दी हुई चेतावनी से भी समझा जा सकता है।

धर्माचार्यों को ललकारा 

उन्होंने अपने समय के हिंदू कट्टरपंथियों और पाखंडी धर्माचार्यों को ललकारते हुए अपने प्रसिध्द व्याख्यान 'कास्ट, कल्चर एंड सोशलिज्म’ में कहा है- ''शूद्रों ने अपने हक मांगने के लिए जब भी मुंह खोला, उनकी जीभें काट दी गईं। उनको जानवरों की तरह चाबुक से पीटा गया। लेकिन अब आप उन्हें उनके अधिकार लौटा दो, वरना जब वे जागेंगे और आप (उच्च वर्ग) के द्बारा किए गए शोषण को समझेंगे, तो अपनी फूंक से आप सब को उड़ा देंगे। यही (शूद्र) वे लोग हैं जिन्होंने आपको सभ्यता सिखाई है और ये ही आपको नीचे भी गिरा देंगे। सोचिए कि किस तरह शक्तिशाली रोमन सभ्यता गॉलों के हाथों मिट्टी में मिला दी गई।’’

अपने इसी व्याख्यान में भारतीयजनों को आगाह करते हुए विवेकानंद ने कहा है- ''सैकड़ों वर्षों तक अपने सिर पर गहरे अंधविश्वास का बोझ रखकर, केवल इस बात पर चर्चा में अपनी ताकत लगाकर कि किस भोजन को छूना चाहिए और किसको नहीं, और युगों तक सामाजिक जुल्मों के तले सारी इंसानियत को कुचलकर आपने क्या हासिल किया और आज आप क्या हैं?...आओ पहले मनुष्य बनो और उन पंडे पुजारियों को निकाल बाहर करो जो हमेशा आपकी प्रगति के खिलाफ रहे हैं, जो कभी अपने को सुधार नहीं सकते और जिनका ह्रदय कभी भी विशाल नहीं बन सकता। वे सदियों के अंधविश्वास और जुल्मों की उपज है। इसलिए पहले पुजारी-प्रपंच का नाश करो, अपने संकीर्ण संस्कारों की कारा तोड़ो, मनुष्य बनो और बाहर की ओर झांको। देखो कि कैसे दूसरे राष्ट्र आगे बढ़ रहे हैं।’’ 

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धर्मांतरण पर विवेकानंद 

धर्मांतरण के बारे में स्वामी विवेकानंद ने भी स्वीकारा है कि भारत में मुसलिम शासकों के आगमन के बाद देश की आबादी का एक बड़े हिस्से ने इस्लाम कुबूल कर लिया लेकिन यह सब तलवार के जोर से नहीं हुआ। विवेकानंद कहते हैं- ''भारत में मुसलिम विजय ने शोषित, दमित और गरीब लोगों को आजादी का स्वाद चखाया और इसीलिए देश की आबादी का पांचवां हिस्सा मुसलमान हो गया। यह सोचना पागलपन के सिवाय कुछ नहीं है कि तलवार और जोर-जबर्दस्ती के जरिए हिंदुओं का इस्लाम में धर्मांतरण हुआ। सच तो यह है कि जिन लोगों ने इस्लाम अपनाया वे जमींदारों और पुरोहितों के शिकंजे से आजाद होना चाहते थे। बंगाल के किसानों में हिंदुओं से ज्यादा मुसलमानों की तादाद इसलिए है कि बंगाल में बहुत ज्यादा जमींदार थे।’’ संदर्भ: (Selected Works of Swami Vivekanand,Vol.3,12th edition,1979.p.294)

हिंदू राष्ट्रवाद के झंडाबरदार मुसलमानों के प्रति अपनी नफरतभरी विचारधारा को वैधानिकता का जामा पहनाने के लिए स्वामी विवेकानंद के नाम का भी बेशर्मी के साथ इस्तेमाल लंबे समय से करते आ रहे हैं।

लेकिन चूंकि ऐसे लोगों की क्षुद्र मानसिकता और मुसलमानों के प्रति उनकी द्बेषभावना से विवेकानंद भलीभांति परिचित थे, लिहाजा उन्होंने कहा था, ''इस अराजकता और कलह के बीच भी मेरे मस्तिष्क में संपूर्ण साबूत भारत की जो तस्वीर उभरती है, वह शानदार और अद्बितीय है, उसमें वैदिक दिमाग और इस्लामिक शरीर होगा।’’ इस्लामिक शरीर से उनका तात्पर्य वर्ग और जातिविहीन समाज से था। 

कहा जा सकता है कि इस समय हिंदू धर्म और हिंदुओं पर नकली खतरे का भय दिखा कर जिस तरह देश में सांप्रदायिक और जातीय नफरत का संगठित अभियान सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर चलाया जा रहा है, उसका मुकाबला विवेकानंद के विचारों के जरिए ही किया जा सकता है। 

आज अगर विवेकानंद होते तो इस नफरत भरे अभियान के खिलाफ सर्वाधिक मुखर वे ही होते।...और उनकी नसीहतें सुन कर हिंदू कट्टरता के प्रचारक उन्हें भी सूडो सेक्यूलर, वामपंथी या हिंदू विरोधी करार देकर पाकिस्तान चले जाने की सलाह दे रहे होते।

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